कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से सब्जियों के निर्यात पर संकट

भारत के 5000 करोड़ से ज्यादा के कृषि व्यापार में सऊदी अरब और यूएई का योगदान 130-130 करोड़ रुपए से अधिक का है

Update: 2019-02-05 01:45 GMT
कीटनाशकों के ज्यादा प्रयोग से पहले भी कई देश भारत की खाद्य सामग्रियों पर सवाल उठा चुके हैं

लखनऊ। कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल का खामियाजा किसानों को हर ओर से उठाना पड़ सकता है। बासमती चावल और मछली के बाद भारतीय सब्जियों के निर्यात पर खतरा मंडराने लगा है।

सब्जियों में कीटनाशकों के अधिक प्रयोग से नाराज सऊदी अरब और यूएई (संयुक्त अरब अमीरात) ने भारत के खिलाफ सख्त कदम उठाने की चेतावनी दी है।

भारत के 5000 करोड़ से ज्यादा के कृषि व्यापार में सऊदी अरब और यूएई का योगदान 130-130 करोड़ रुपए से अधिक का है, ऐसे में अगर ये देश भारत से आयातित सब्जियों पर बैन लगाते हैं, तो भारत की कृषि निर्यात नीति को तगड़ा झटका लग सकता है। इससे पहले 2014 में सऊदी अरब ने भारत से आयात होने वाली हरी मिर्च पर बैन लगा दिया था।

सऊदी अरब और यूएई सरकार की ओर से जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि भारत सब्जियों में कीटनाशाकों का निश्चित मात्रा से ज्यादा प्रयोग कर रहा है, खासकर भिंडी और हरी मिर्च में।

एपीडा के जनरल मैनेजर यूके वत्स ने विज्ञप्ति जारी कर कहा, "भारत से निर्यात होने वाले बहुत से उत्पादों में नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। ऐसे में सऊदी फूड एंड ड्रग अथॉरिटी (SAUDA) ने सवाल उठाये हैं। यूएई ने भारत के निर्यातकों से कहा है कि वे खाद्य और सुरक्षा के सभी मानकों को लागू करें और कीटनाशाकों के प्रयोग की मात्रा कम करें। तभी होने वाले नुकसान से उनको बचा सकेगा।"

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अगर ये दोनों देश भारत से आयातित सब्जियों पर पाबंदी लगाते हैं कि अन्य देशों का रवैया भी सख्त हो सकता है। भारत सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करना चाहती है और इस अभियान में कृषि निर्यात का हिस्सा सबसे अहम है, ये बात केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह भी कई बार कह चुके हैं।

चीन के बाद भारत फल और सब्जियों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। वर्ष 2017-18 के दौरान भारत ने सब्जियों का 5,181.78 करोड़ रुपए का निर्यात किया था।

कीटनाशकों के ज्यादा प्रयोग के कारण भारत के अन्य कृषि उत्पादों की भी शिकायतें होती आई हैं। पिछले पांच वर्षों से विश्व का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश है, लेकिन निर्धारित अवशेष सीमा (एमआरएल) से अधिक कीटनाशकों के अवशेषों के पाए जाने के कारण पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका, यूरोप और ईरान जैसे बाजारों में निर्यातकों की परेशानी बढ़ गई।

प्रख्यात खाद्य एवं निवेश नीति विश्लेषक देविंदर शर्मा यूएई और सऊदी अरब के इस फैसले को सही बताते हुए कहते हैं "सरकार को तो हमारी सेहत की चिंता ही नहीं है। इन दोनों देशों ने सही कदम उठाया है, और अगर निर्यात रुकता है तो इसके लिए हमारी सरकार और किसान दोनों जिम्मेदार हैं। अगर दूसरे देश हमारी सब्जियों की गुणवत्ता पर सवाल उठा रहे हैं तो हमें भी इस पर सावधान हो जाना चाहिए।"

वो फसलें जिनके भाव कम या ज्यादा होने पर सरकारें बनती और बिगड़ती रही हैं

"सऊदी अरब के राज्यों ने शिकायत की है कि भारत से आयात होने वाली सब्जियों में तय मात्रा से ज्यादा कीटनाशकों का प्रयोग किया जा रहा है। इसे हर हाल में घटाया जाना चाहिए। एपीडा ने निर्यातकों से सऊदी अरब के सवालों के बारे में बता दिया है। ऐसे में अब अगर निर्यातक इस पर ध्यान नहीं देते वे आने वाले समय में कड़ा कदम उठा सकते हैं," यूके वत्स ने बताया।

भारत में 2014-15 में 56.12 हजार टन, 2015-16 में 50.41 हजार टन और 2016-17 में 52.75 हजार टन (तेलंगाना और असम का डाटा नहीं) कीटनाशक का इस्‍तेमाल किया गया। ये आंकड़े 20 नवंबर 2017 तक के हैं।

गुजरात अहमदाबाद के निर्यातक और एसके कोल्ड स्टोरेज फाउंडर संदीप के ठक्कर कहते हैं "इस मामले में एपीडा की ओर से पहले भी गाइडलाइंस जारी की जाती रही हैं, लेकिन निर्यातकों के ही हाथ में सब कुछ नहीं होता। स्थानीय व्यापारियों और किसानों को भी इस पर ध्यान देना होगा।"

लखनऊ नवीन गल्ला मंडी के सब्जी व्यापारी और किसान राजकरण सिंह मुन्ना कहते हैं "सब्जियों में कीटनाशकों का प्रयोग तो होगा ही, हां हमें यह नहीं पता कि इसकी मात्रा कितनी होनी चाहिए। हम किसानों से तो ऐसे ही खरीद लेते हैं। लेकिन जब हमारी फसल बाहर नहीं जाएगी तो इससे परेशानी तो बढ़ेगी ही।"

अक्टूबर-2018 में किसान कल्याण मंत्रालय ने एक रिपोर्ट जारी करके कहा था कि देश में कीटनाशकों का प्रयोग लगातार घट रहा है। कृषि सांख्यिकी 2017 के आंकड़ों के अनुसार, 2013-14 में 60.28 हजार टन कीटनाशक का इस्‍तेमाल हुआ था, जो कि साल दर साल कम होता रहा है।

यूएई को खाद्य सामग्री निर्यात करने वाला भारत सबसे बड़ा देश है। भारत इसके बाद यूके, नीदरलैंड, ओमान अमरिका, थाईलैंड और इटली को खाद्य सामग्री निर्यात करता है। यूएई को जितना खाने का सामान चाहिये होता है भारत उसकी 20 फीसदी आपूर्ति करता है।

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यूएई ने भारत सरकार से यह भी मांग की है कि सभी खाद्य उत्पादों में ब्रांड नेम का लेबल जरूर होना चाहिए। इसके अलावा हेल्थ और जैविक सर्टिफिकेट होना भी अनिवार्य कर दिया है।

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने निर्यातकों के लिए एक सर्कुलर जारी कर सावधानी बरतने को कहा है, साथ ही चेतावनी दी कि निर्यातक इस ओर लापरवाही बरत रहे हैं जो नुकसानदेय साबित हो सकता है।

इस बारे में संदीप ठक्कर कहते हैं "एपीडा के प्रयोगशालाओं में पहले यह जांच नहीं होती थी। जबकि ये व्यवस्था तो पहले से ही होनी चाहिए। मैं आलू ज्यादा निर्यात करता हूं, उसकी भी इस तरह की कोई जांच नहीं होती।"

भारत से बाहर जाने वाली मछलियों को भी बैन करने की मांग कई देश करते आये हैं। मछली उत्पादन में धड़ल्ले से हो रहे एंटीबोटिक के इस्तेमाल के कारण आवश्यक जांच संख्या जो पहले 10 फीसदी थी उसे बढ़ाकर 50 फीसदी तक कर दिया गया। इस दायरे में झींगा मछली ज्यादा है जिसके कारोबार से लगभग 14 मिलियन लोगों को रोजगार मिला हुआ है।

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