'संजीवनी बूटी' की खेती के लिए भारत और पाकिस्तान मिलकर करेंगे काम

Update: 2018-07-09 06:47 GMT
सीबकथार्न।

भारत, चीन, पाकिस्तान और नेपाल ने चमत्कारिक गुणों से युक्त औषधीय वनस्पति फल लेह बेरी (सीबकथार्न) के जरिये हिमालय क्षेत्र की ग्रामीण आबादी की आय बढ़ाने के लिए हाथ मिलाया है। इस पौधे के चमत्कारिक गुणों को देखते हुए इसे संजीवनी बूटी के समान माना जाता है। अंतर्राष्ट्रीय संस्था इंटरनेशनल सेंटर फार इंटिग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट के सदस्य इन देशों ने हिंदुकुश हिमालय क्षेत्र की ग्रामीण आबादी की आजीविका बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने में मदद के लिए यह पहल की है। इसके लिए चीन में हाल में आयोजित एक बैठक में परस्पर सहयोग के वास्ते एक करार पर हस्ताक्षर भी किए गए।

डिफेंस रिसर्च एंड डेवपलमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) के डॉ. भुवनेश कुमार कहते हैं "लेह में यह पौधा गोल्ड माइन के नाम से चर्चित है। इंस्टीट्यूट ने इस पौधे से लेह बेरी जूस, कैप्सूल, चाय, जैम और सेक्रीकॉट जूस तैयार किया है। इनका प्रयोग लोगों को हृदय संबंधी सभी बीमारियों समेत डायबिटीज से मुक्त करेगा। चूंकि इस वक्त इन फलों के लिए हम केवल जंगल पर आश्रित हैं, ऐसे में भविष्य में ज्यादा सप्लाई को लेह-लद्दाख में 12 हजार हेक्टेयर में उक्त पौधों के बगीचे लगाए जा रहे हैं। उन्होंने प्रजेंटेशन में दावा किया कि लेह-लद्दाख में उक्त पौधों के खेती से क्षेत्र के लोगों के रोजगार बढ़ेंगे, जिससे माइग्रेशन रूकेगा।"

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सम्मेलन में भाग लेकर लौटे भारत के प्रतिनिधि सीएसके हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वीरेंद्र सिंह ने बताया "4000 से 14000 फुट की ऊंचाई पर उगने वाले इस पौधे के फलों के चमत्कारिक गुणों के कारण यह संजीवनी बूटी के समान है और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी खासी मांग है।" सीबकथार्न पर करीब दो दशकों तक अध्ययन कर चुके प्रोफेसर सिंह ने बताया कि ये सभी देश इसके फल से विभिन्न उत्पाद तैयार करने पर सहमत हो गए हैं।

उन्होंने बताया कि चीन ने अपने यहां वन विभाग की बेकार पड़ी जमीनों पर सीबकथार्न की वाणिज्यिक पैदावार करके, इसके फल का प्रसंस्करण करके जूस, चाय और पौष्टिक खाद्य पदार्थाें की बिक्री के जरिये स्थानीय लोगों की आय बढ़ाने का मॉडल तैयार किया है। इसके लिए उसने वन विभाग के अधिकारियों, वैज्ञानिकों, किसानों, खाद्य प्रसंस्करण कंपनियों तथा विश्वविद्यालयों का एक समूह बनाया है। उसने 30 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में इसकी पैदावार करने तथा इस पर आधारित 500 से अधिक उद्योग-धंधे लगाने का सफल प्रयोग किया है।

प्रोफेसर सिंह ने बताया कि करार के तहत चीन इन तीनों देशों के अधिकारियों, वैज्ञानिकों तथा विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों को इस मॉडल का अल्प एवं दीर्घकालिक प्रशिक्षण देने को तैयार हुआ है। यह योजना अंतरराष्ट्रीय सीबकथार्न संगठन के जरिये लागू की जाएगी।

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उन्होंने बताया कि जम्मू कश्मीर के लेह, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम जैसे पर्वतीय राज्यों में सीबकथार्न उगता है। यह कैंसर, मधुमेह, यकृत की बीमारियों के लिए रामबाण है। ऐंटी आक्सिडेंट तथा तमाम विटामिनों से भरपूर यह फल बढ़ती उम्र के प्रभाव को रोककर खून की कमी को दूर करने में मददगार है। इसके अलावा यह ग्लेशियर को पिघलने से रोकने, तथा भू-क्षरण रोकने में भी सहायक है जिससे यह जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने में भी कारगर है।

हर्बल आचार्य दीपक आचार्य कहते हैं "डिफेंस रिसर्च एंड डेवपलमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) की लेबोरेट्री डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हाई एल्टीट्यूड रिसर्च (डीआईएचएआर) ने इस पौधे से लेह बेरी जूस तैयार किया है। लेह बेरी जूस में आंवले से ज्यादा विटामिन सी एवं भरपूर मात्रा में एंटी-ऑक्सीडेंट होता है।"

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