पोर्टेबल कार्प हैचरी सिस्टम : सिर्फ ढाई लाख रुपए में शुरु करें हैचरी ,  साल में कमा सकते हैं 40 लाख रुपए

Update: 2019-12-04 09:38 GMT
इस तकनीक को ढ़ाई लाख से भी कम लागत पर कोई भी व्यक्ति लगा सकता है। 

मछली पालन हमेशा से मुनाफे का सौदा रहा है। मछली पालन में हैचरी यानी बीज उत्पादन से सबसे ज्यादा मुनाफा होता है। लेकिन हैचरी के लिए पहले कई लाख रुपए के संसाधन और ज्यादा जमीन की आवश्यकता पड़ती थी, लेकिन वैज्ञानिकों ने एक ऐसा सिस्टम तैयार किया है जो सिर्फ 4 ड्रम में हो सकता है।

मछली बीज उत्पादन की इस तकनीकी को पोर्टबल कार्प हैचरी सिस्टम कहते हैं, इसकी लागत करीब ढाई लाख रुपए आती है और सामान्य परिस्थितियों में 40 लाख रूपए साल में कमाए जा सकते हैं।

ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर (सीफा) के वैज्ञानिकों ने इस तकनीक को किसान और कारोबारियों के लिए विकसित किया है। इसमें कम पानी, कम जगह और कम लागत से अच्छा मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है। इस तकनीक से हर तीसरे दिन स्पॉन (मछली के अंडे) प्राप्त किए जा सकते हैं।

इस तकनीक का नाम पोर्टेबल कार्प हैचरी सिस्टम है। सीफा के मुताबिक अब तक देश के 26 राज्यों में 400 से अधिक ऐसी हैचरी इकाइयां स्थापित की गई हैं। इस तकनीक को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए सीफा कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों को प्रशिक्षण दे रहा है। सीफा के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. बिकास चंद्र महोपात्रा द्वारा इस पूरी तकनीक को विकसित किया गया है।

पहले नदियों में प्राकृतिक तरीके से प्रजनन कराया जाता था, उसके बाद बांधों मे इनका प्रजनन शुरू किया गया। धीरे-धीरे सीमेंटेड टैंकों में इनका प्रजनन शुरू किया गया। इनमे खर्चा भी ज्यादा आता था और इतना लाभ नहीं मिला। इसलिए इस तकनीक को तैयार किया गया।
डॉ. सत्येंद्र कुमार, कृषि विज्ञान केंद्र, डिंडौरी, मध्य प्रदेश

प्रशिक्षण में हिस्सा ले चुके मध्य प्रदेश के डिंडौरी जिले में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. सत्येंद्र कुमार ने बताया, "पहले नदियों में प्राकृतिक तरीके से प्रजनन कराया जाता था, उसके बाद बांधों मे इनका प्रजनन शुरू किया गया। धीरे-धीरे सीमेंटेड टैंकों में इनका प्रजनन शुरू किया गया। इनमे खर्चा भी ज्यादा आता था और इतना लाभ नहीं मिला। इसलिए इस तकनीक को तैयार किया गया।"

तकनीक के बारे में जानकारी देते हुए डॅा. कुमार बताते हैं, "ढाई लाख से भी कम लागत पर इसको कोई भी व्यक्ति लगा सकता है। इस प्रणाली में चार ड्रम होते है। पहला स्पॉन्गिंग पूल (जहां मछलियां अंडे देती है।), दूसरा ऊष्मायन पूल (हैचिंग/अंडों को अलग करना), तीसरा स्पॉन संग्रह पुल (अंडे के बाद जीरा (स्पॉन) को रखना), और चौथा ओवरहेड भंडारण टैंक/जल आपूर्ति प्रणाली। इन ड्रमों में फिंगर लिंग तैयार करके उसे बाजारों में अच्छे कीमत में बेच सकता है।"

इस प्रणाली में चार ड्रम होते है। पहला स्पॉन्गिंग पूल (जहां मछलियां अंडे देती है।), दूसरा ऊष्मायन पूल (हैचिंग/अंडों को अलग करना), तीसरा स्पॉन संग्रह पुल (अंडे के बाद जीरा (स्पॉन) को रखना), और चौथा ओवरहेड भंडारण टैंक/जल आपूर्ति प्रणाली। इन ड्रमों में फिंगर लिंग तैयार करके उसे बाजारों में अच्छे कीमत में बेच सकता है।"

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इस तकनीक से बीज उत्पादन के मौसम में कम से कम 20-30 बार संचालित करके लाभ कमाया जा सकता है। इस तकनीक को एक स्थान से दूसरे स्थान आसानी से ले जाया जा सकता है। इसकी मरम्मत भी काफी आसान है। इसके अलावा इस तकनीक के जरिए सजावटी मछली पालन या आम कार्प प्रजनन या पानी भंडारण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। पोर्टेबल कार्प हैचरी तकनीक को बेरोजगार युवा, ग्राम पंचायत और सहकारी समिति द्वारा किराये के आधार पर संचालित किया जा सकता है।

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इस तकनीक से स्पॅान तैयार करने के बारे में डॉ सत्येंद्र बताते हैं, "एक बार में 20 से 25 किलो मछली को डालते है। फिर उन्हें एक रात में इंजेक्शन दिया जाता है। 72 घंटे में 10 से 12 लाख स्पॉन प्राप्त हो जाते है। बाजार में स्पॉन भी बिक जाता है लेकिन अगर किसान उसे तीन महीने रखकर फिंगरलिंग तैयार कर ले तो उसे बाजार में एक से डेढ़ रूपए में बेच सकता है।"

अपनी बात को जारी रखते हुए डॅा1 कुमार बताते हैं, "हर तीसरे दिन दस से 12 लाख स्पॉन प्राप्त किए है। मछलियों के प्रजनन का समय जून से सिंतबर तक रहता है। जुलाई से अगस्त प्रजनन का पीक समय होता है। ऐसे में किसान इस तकनीक को लगाकर अच्छी कमाई कर सकता है। इस तकनीक में पानी का बहाव को निरंतर बनाए रखना होता है वरना स्पॉन मरने लगते है।"

अगर कोई व्यक्ति इस तकनीक को लगाना चाहता है तो सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर (सीफा) भुवेनश्वर में संपर्क कर सकता है।

09437229487, 7894255176, 9337644346

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