वो सिनेमाई गांव जो यादों में हमेशा रहेंगे  

Update: 2018-04-11 11:24 GMT
Nadiya Ke Paar

हिंदी फिल्मों हर दौर में बदलती रही हैं। बदलते सामाजिक परिवेश और नए-नए विषयों के हमारी ज़िंदगी में शामिल होने को भी फिल्मों में दिखाया जाता रहा है। लेकिन आज हमारी मौजूदा फिल्मों से गांव गायब हो गए हैं। कहने वाले इसे शिकायती लहजे में भी कह सकते है, लेकिन इसका जवाब ये है कि क्या हमारी असल ज़िंदगी में भी गांव से दूरी नहीं बन गई है?

अर्बनाइज़ेशन की अंधी दौड़ में कंक्रीट के जंगल खड़े करके हम शिकायत करते हैं कि फिल्मों से गांव गायब क्यों हो रहे हैं। हालांकि हमारी स्मृतियों में आज भी कुछ ऐसी फिल्में ज़िंदा है जिन्हें ग्रामीण परिवेश में गढ़ा गया। वो फिल्में इतनी असरदार थी कि उनके गांवों के नाम हमें आजतक याद हैं और शायद हमेशा रहेंगे। आइये याद करते हैं कुछ ऐसी ही 'गांव वाली फिल्मों' को -

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1. मदर इंडिया

Mother India 

बहुत कम लोग जानते हैं कि 1957 में बनी मदर इंडिया दरअसल 1940 में बनी फिल्म 'औरत' की रिमेक है। भारतीय सिनेमा के इतिहास में अबतक बनी चंद मज़बूत फिल्मों में इसका शुमार होता है। महबूब खान की लिखी और निर्देशित इस फिल्म में नर्गिस, सुनील दत्त, राजेंद्र कुमार और राज कुमार मुख्य भूमिका में है।

गांव के परिवेश में बनाई गयी इस फिल्म में गरीबी से पीड़ित, गांव में रहने वाली राधा की कहानी है जो तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए अपने बच्चों को पालती पोसती है औऱ बाद में अपने डाकू बन चुके बेटे को खुद मार देती है। इस फिल्म में आज़ादी के बाद का ग्रामीण भारत बहुत बारीकी से सामने रखा गया है।

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2. तीसरी क़सम

Teesri Kasam

1966 में आई 'तीसरी कसम' को भले बॉक्स ऑफिस को इतनी कामयाबी नहीं मिली थी लेकिन इसे आज भी चंद बेहतरीन फिल्मों में शुमार किया जाता है। फिल्म को प्रोड्यूस किया था मशहूर गीतकार शैलेंद्र ने।

ये फिल्म हिंदी के महान लेखक फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफ़ाम' पर आधिरित है। 'तीसरी कसम' बिहार के अररिया ज़िले में फिल्माई गयी थी। ये एक गैर-परंपरागत फिल्म है जो भारत की देहाती दुनिया और वहां के लोगों की सादगी को दिखाती है।

3. शोले

Sholay

1975 मे आई शोले तो आपको याद ही होगी। 'रामगढ़' वो गांव है जो शायद शोले देखने वाले कभी नहीं भूलेंगे। जावेद अख्तर और सलीम खान की लिखी और रमेश सिप्पी की निर्देशित शोले भारतीय सिनेमा की चंद सबसे कामयाब फिल्मों में गिनी जाती है।

गांव के परिवेश को जिस खूबसूरती और मनोरंजक अंदाज़ में फिल्म में दिखाया गया है वही फिल्म को बेहतरीन फिल्म बनाता है। अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, हेमा मालिनी, धर्मेंद्र, संजीव कुमार और अमजद खान जैसे सितारों से सजी ये फिल्म भारतीय दर्शकों के ज़हन में शायद कभी धुंधली नहीं पड़ेगी।

4. सत्यम शिवम सुंदरम

Satyam Shivam Sundaram

978 में आई सत्यम शिवम सुंदरम अपने ज़माने की एक यादगार फिल्म है। गांव में रहने वाली एक लड़की रुपा (ज़ीनत अमान) जिसके चेहरा पर एक हादसे से निशान पड़ गया था, शहर से आए एक इंजीनियर रंजीत (शशि कपूर) को भा जाती है।

रूपा अपना आधा चेहरा छुपाए रखती है। जब रंजीत उससे शादी करना चाहता है लेकिन जब वो उसे अपना असली चेहरा दिखाती है तो रंजीत उसे घर से निकाल देता है। उस दौर में जब सिनेमा पर चुलबुले प्रसंगों पर फिल्में बनाई जा रही थी, एक नए और संजीदा विषय ने भारतीय दर्शकों को समाज में औरत के हालत के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया था।

5. नदिया के पार

Nadiya Ke Paar

अपने गानों के लिए मशहूर 1982 में बनी 'नदिया के पार' भी अपने ग्रामीण पृष्ठभूमि के लिए जानी जाती है। ये फिल्म उत्तर प्रदेश और बिहार की स्थानीय भाषा में बनी हुई है। इसे भोजपुरी और अवधी बोलियों का मिला जुला रूप माना जाता है।

फिल्म को प्रोड्यूस किया था गोविंद मोनिस ने। मुख्य भूमिका में सचिन, साधना सिंह, इंद्र ठाकुर, मिताली औऱ सविता बजाज थी। राजश्री प्रोडक्शंस ने इस फिल्म को तेलगू में भी डब किया था। 1994 में राजश्री ने इस फिल्म का रिमेक 'हम आपके हैं कौन' के नाम से किया था।

6. मिर्च मसाला

Mirch Masala

1987 में आई 'मिर्च मसाला' को फोर्ब्स मैगज़ीन ने उन पच्चीस महान एक्टिंग वाली फिल्मों की लिस्ट में रखा था।

फिल्म गुलाम भारत के एक गांव को बेहद बारीकी से दर्शाती है जिसमें एक अख्खड़ सूबेदार, नसीरुद्दीन शाह टैक्स के नाम पर वहां के लोकल मज़दूरों को परेशान करता है। उसी गांव में रहने वाली सोनबाई (स्मिता पाटिल) जो कि खूबसूरत भी है और बुद्दिमान भी, किस तरह उस सूबेदार से संघर्ष करती है और जीतती है, यही फिल्म की कहानी है। फिल्म के निर्देशक केतन मेहता ने जिस बारीकी से फिल्म में ग्रामीण जीवन को दिखाया था, उसकी तारीफ आज भी की जाती है।

7. लगान

Lagaan

साल 2001 में आई आमिर खान प्रोडक्शंस की फिल्म 'लगान' आज़ादी से पहले के भारत और उसके संघर्षों को संजीदगी से दिखाती है। आशुतोष गोवारिकर के निर्देशन में बनी ये फिल्म चम्पानेर गांव की कहानी है, जहां अंग्रेज़ो के ज़ुल्म जारी है।

आमिर खान ने फिल्म में ज़बर्दस्त एक्टिंग की थी, साथ ही ग्रेसी सिंह, रघुबीर यादव, कुलभूषण खरबंदा और ए के हंगल ने भी बेहतरीन काम किया था। साल 2002 में ये फिल्म ऑस्कर अवार्डस की कैटगरी – बेस्ट फॉरन फिल्म के लिए नॉमिनेट भी हुई थी। उसी साल फिल्म ने बेस्ट फिल्म के लिए फिल्मफेयर भी जीता था।

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8. पीपली LIVE

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साल 2010 में आई फिल्म पीपली लाइव भी आमिर खान प्रोडक्शन्स की थी, इसे लिखा और डायरेक्ट किया था अनुषा रिज़्वी ने। कहानी में पीपली नाम के गांव पर फिल्माया गया था और ग्रामीण परिवेश को बेहद करीब से दिखाया गया था।

ये फिल्म देश में किसानों के बढ़ते खुदकुशी के मामलों और मौजूदा समाज में मीडिया की भूमिका पर सख्त सवाल करती है। फिल्म का गाना 'सखी सैंय्या तो खूब ही कमात है, मंहगाई डायन खाए जात है' काफी मशहूर हुआ था।

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