बदलाव: घर के अहम फैसलों में अब महिलाएं भी देती हैं अपनी राय

Update: 2017-10-11 17:44 GMT
फोटो: इंटरनेट

लखनऊ। दिल्ली की रहने वाली प्रिया गौतम (55 वर्ष) ने हाल ही में अपनी बेटी की शादी की है। प्रिया बताती हैं, मेरी दो बेटियां हैं और उसके लिए लड़का पसंद करने में हम पति पत्नी दोनों की राय शामिल थी। हमने बेटी से भी उसकी पसंद पूछी उसपर जबरन रिश्ता थोपा नहीं।

ये एक सकारात्मक बदलाव है, जो शहरों के साथ साथ अब गाँवों में भी दिख रहा है। घर के बड़े फैसले शादी ब्याह, जमीन बेचना या खरीदना आदि मामलों में अब महिलाएं भी अपनी राय रखती हैं। यहां तक की जहां पहले जमीन पर महिलाओं का मालिकाना हक कम होता था अब उनके नाम पर जमीन भी खरीदी जाती है।

अब बात करते हैं गाँव की महिलाओं की , बारांबकी के भुईहरा गाँव की रहने वाली सीमा (32 वर्ष) को इस बात की खुशी है कि उनके पति घर के फैसलों में उन्हें शामिल करते हैं और उनसे बिना राय मशवरे के कोई बड़ा कदम नहीं उठाते हैं।

लखनऊ की पूर्व दिशा में 33 किलोमीटर दूर भुहरिया गाँव की सीमा देवी बताती हैं, ''घर के छोटे-बड़े सभी कामों में मेरे पति मेरी सलाह लेते हैं। चाहे वो कोई कार्यक्रम हो या फिर जमीन जायदाद का मामला। वो आगे बताती हैं, ''अभी हाल ही में घर पक्का कराने के लिए पैसे की जरूरत थी इसलिए खेत बेंचना था और इसके लिए उन्होनें घर के बड़े बुर्जुगों की राय के साथ हमसे भी सलाह ली।

जहां पहले महिलाएं केवल घर के चूल्हे चौके में उलझी रहती थी और घर के सभी फैसले लेना का हक केवल पुरूषों को होता था। महिलाओं को ऐसे फैसलों से दूर ही रखा जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं है। गाँव में ये बदलाव देखने को मिल रहा है कि महिलाएं भी अब घर के बड़े फै सलों में अपनी राय देती है।

गाँव कनेक्शन ने जब बाराबंकी के भुईहरा पंचायत के उरगदरिया, समुंदरपुर, भुईहरा और लखनऊ के गोसाईगंज के कासिमपुर, कबीरपुर गाँव की लगभग सत्तर महिलाओं से बात की तो लगभग 60 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि उनके परिवार के फैसलों में उनकी भागीदारी रहती है।

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इस बदलाव का कारण कहीं न कहीं महिलाओं का शिक्षित और जागरूक होना है। लखनऊ के अमेठी गाँव की रामावती (65 वर्ष) बताती हैं, ''हमारे जमाने में तो हमसे कुछ नहीं पूछते थे। घर के बड़ों में भी केवल पुरूषों की ही राय ली जाती थी। हमें तो बस बता दिया जाता था। हमारा काम केवल घर के काम काज करना था बाहर के मामलों से हम लोग कोसो दूर रहते थे।”

वो आगे बताती हैं, ''अब जमाना बदल गया नई बहुएं पढ़ी लिखी आने लगी तो उन्हें घर की पूरी हाल खबर रहती है।”

इस बदलाव से पुरुष भी सहमत दिखते हैं। बाराबंकी के ही के उरगदरिया गाँव के रहने वाले कौशल किशोर (42 वर्ष) बताते हैं, ''हम तो अपने पत्नी से पूछ के ही घर के बड़े फैसले लेते हैं और मेरे खयाल से ऐसा ही होनी भी चाहिए वो हर दुख सुख में साथ देती है तो उसका अधिकार केवल चूल्हा जलाने का ही नहीं है बल्कि घर के अन्य मामलों को जानना भी है।”

कहीं न कहीं महिलाओं का आर्थिक रूप से सशक्त व शिक्षित होना भी इस बदलाव पर असर डालता है। लखनऊ की रहने वाली अनीता सिंह (45 वर्ष) बताती हैं, “जमाना बदल रहा है और महिलाएं भी अब कमा रही हैं, घर का खर्च चलाने में मदद करती हैं तो उनका भी हक है कि वो बड़े फैसलों में अपनी राय दे सकें।”

वो आगे बताती हैं, “ हमारे घर में जब भी कोई बड़ी बात जैसे कोई प्रापर्टी का मामला हुआ तो मेरे पति मुझसे भी सलाह लेते हैं, क्योंकि मैं भी परिवार का हिस्सा हूं और ऐसा होना भी चाहिए ये हमारे आत्मविश्वास को भी बढ़ाता है।”

इस बदलाव पर बनारस के महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय के समाजशास्त्री डॉ भारती रस्तोगी अपनी राय बताती हैं, ''महिलाएं अब हर के छोटे-मोटे फैसलों में अपनी राय देती हैं लेकिन अभी भी कहीं न कहीं परिवार में वर्चस्व पुरूषों का ही होता है। वो निर्णायक आज भी पूरी तरह से नहीं बन पाई हैं।” उनका आगे कहना है कि हां घर के छोटे मोटे फैसलों जैसे पूजा पाठ, कोई आयोजन आदि में सलाह ले लेते हैं लेकिन आज भी बेटी की शादी, बच्चों की शिक्षा और संपत्ति के मामलों में महिलाओं की राय को वरीयता नहीं दी जाती है।”

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वो आगे कहती हैं, ''हां पहले की अपेक्षा बदलाव देखा जा रहा है लेकिन अभी बहुत बड़े पैमाने पर सुधार की जरूरत है। इसका एक कारण यह भी है कि वो आर्थिक रूप से अपने घर के पुरूषों पर आश्रित होती हैं इसलिए उन्हें हस्तक्षेप करने का अधिकार भी नहीं होता और एक डर यह भी है कि महिलाएं फैसले लेने से कतराती हैं क्योंकि उनके गलत निर्णय पर परिवार के पुरूष उन पर हावी हो जाते हैं।”

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