सरकार की खरीद-फरोख्त सख्ती से पशुपालक परेशान

Update: 2017-06-17 17:49 GMT
प्रतीकात्मक फोटो।

पंकज त्रिपाठी,

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

गाज़ियाबाद । सरकार के द्वारा पशुओं की खरीद-फरोख्त के नियमों में कड़ाई का सीधा असर पशुपालकों पर पड़ता दिख रहा है। किसानों की तंगी, आत्महत्या की समस्या अभी दूर भी नहीं हुई और एक कानून बना दिया। इससे पशुपालन करने पाले किसान खासे नाराज़ हैं।

किसान जहां पशुओं की तादाद बढ़ने की बात कहते हुए चारे के संकट का अंदेशा जता रहे हैं, वहीं नॉन प्रोडक्टिव मवेशियों को आश्रय देना भी चुनौती से कम नहीं है। उधर, मीट के कारोबार से जुड़े लोग लगातार परिवार के भूखे मरने की कगार पर पहुंचने की दुहाई दे रहे हैं।

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सूबे में सत्ता में आते ही भाजपा ने अवैध बूचड़खानों पर शिकंजा कसना शुरू किया। केंद्र सरकार ने नियमों में तब्दीली करते हुए सख्ती की तो खरीद-फरोख्त पर भी सीधा असर पड़ना तय माना जा रहा है। गांव-कस्बों मे भी पशुओं को बेचने-खरीदने पर सख्ती के मुद्दे पर बहस जारी है। हालांकि गाँव में अभी भी जान-पहचान वालों को ही पशु बेचे जा रहे हैं। बावजूद इसके कई मुद्दों पर किसान मंथन भी कर रहे है।

खेती का रकबा कम होगा तो किसानों के सामने पशुओं के चारे का संकट बढ़ेगा। दूसरा बड़ा सवाल पशुओं के आश्रय का भी है। मौजूदा वक्त में नगर निकायों में पशुओं को आश्रय देने के पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं। शहर की सड़कों पर आवारा पशु आसानी से घूमते दिख जाते हैं। पशुओं की संख्या बढ़ेगी तो सड़कों पर इनकी मौजूदगी में भी निश्चित रूप से इजाफा होगा। ऐसे में पशुओं को आश्रय देना भी सरकार औरपालकों के लिए परेशानी का सबब बनना तय है।

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पशुपालक ब्लॉक मोदीनगर के जलालाबाद गाँव के सजीवन (46वर्ष) का कहना है,“ सरकारें बस फरमान सुनाती हैं, उससे किसी को क्या तकलीफ हो रही इसका अंदाजा उन्हें नहीं है। कोई भी कानून लोगों की सहूलियत के लिए बनना चाहिए, न कि परेशानी के लिए।”

इसी गाँव के पशुपालक धर्मपाल (52वर्ष) का कहना है, “अगर नियमों में ढील नहीं दी गई तो गैर उत्पादक मवेशी पालकों के लिए सबसे बड़ी समस्या बनेंगे। सरकार ने पशुओं के अवैध कटान पर रोक लगाईतो मीट कारोबार पर लगभग ताला लटक गया। पशु की खुराक का इंतजाम नियत समय पर करना छोटे किसानों के लिए भारी लग रहा है।”

दूध के लिए यदि कोई पशुपालक पशु खरीदता है किसी प्रकार प्रतिबंध नहीं है। वध के लिए पशु खरीदना प्रतिबंधित है। मीट के लिए कोई गाय भैंस नहीं खरीद सकता।

डा. वी के सिंह, उपनिदेशक, पशुपालन विभाग

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