बसंत कुमार/दीपांशु मिश्रा, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। पिछले वर्ष 28 अक्टूबर को करंट लगने से एक मजदूर की मौत हो गई थी और इस मामले में अभी तक हजरतगंज पुलिस जांच ही कर रही है। छह महीने बीत जाने के बाद भी पीड़ित परिवार को एक रुपए भी मुआवजा नहीं मिल पाया।
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बहराइच जिले के रहने वाले शकूर के कमाने से ही उनका परिवार चलता था। उनके बीवी और चार बच्चे अब भी न्याय के लिए भटक रहे हैं। यह सिर्फ शकूर की कहानी नहीं है। गाँव से आए कम पढ़े-लिखे मजदूर बिना किसी कागज़ के मजदूरी करने चले जाते हैं और किसी घटना के बाद उनकी जिम्मेदारी कोई नहीं लेता है।
संजय कुमार चक्रवर्ती (18 वर्ष) सीतापुर से लखनऊ मजदूरी करने आए हैं। संजय शहर में चल रहे एक भवन के निर्माण में टाइल्स लगाने का काम करते हैं। आठवीं तक पढ़ाई करने वाले संजय बताते हैं, “हम चौराहे पर काम मांगते हैं तो कोई ठेकेदार हमें काम देने के लिए ले जाता है। वहां तो मजदूरी तय करते हैं। सुरक्षा को लेकर कुछ बोलते नहीं लेकिन अगर कुछ होता है तो दवा दिला देते हैं। अब तक कोई बड़ी घटना तो हुई नहीं है।”
सरकार द्वारा कार्यस्थल पर काम करने वाले मजदूरों की सुरक्षा के नियम बनाए गए हैं, लेकिन ज्यादातर जगहों पर सुरक्षा नियमों की धज्जियां उड़ाई जाती हैं। राजधानी में चाहे बिल्डिंग निर्माण हो या सीवर की सफाई, हर एक जगह नियमों का उल्लंघन हो रहा है। शहर में सीवर की सफाई करने के लिए मजदूर बिना किसी सुरक्षा के सीवर के अंदर घुस जाते हैं, जिससे उनकी जान को खतरा रहता है।
पिछले साल फरवरी में सचिवालय में बन रही बिल्डिंग से गिरने से दो मजदूरों की भी मौत हो गई थी। सचिवालय के निर्माणाधीन बिल्डिंग पर काम कर रहे रवि और और राजन सातवीं मंजिल पर बीम बांध रहे थे, तभी यह घटना घटी और उनकी मौत हो गई। तब दोनों के परिजनों ने मौत का कारण सुरक्षा के इंतजाम न होना बताया था।
राजधानी में सीवर का काम करने वाले शिवम (26 वर्ष) बताते हैं, “सीवर में बिना किसी सुरक्षा उपकरण के घुसने पर अगर हम मौत से बच जाते हैं तो कई बिमारियों और पैर कटने से नहीं बच पाते हैं। सीवर के अंदर अंधेरा होता। कई दफा लोग सीवर में कांच फेंक देते हैं, जब हम अंदर काम करने जाते हैं तो पैर कट जाता है।”
शिवम काफी वर्षों से सीवर का काम कर रहे हैं। भवन निर्माण कर्मकार मजदूर यूनियन के अध्यक्ष रह चुके रामधार ने बताया, “कम्पनियां आजकल बेहद चालाकी से काम कर रही हैं। जब काम करने के लिए कोई ठेकेदार हमें ले जाता है तो किसी भी रजिस्टर में वो हमारा नाम दर्ज नहीं करता है। हमें एक उपस्थिति कार्ड थमा दिया जाता है। जिसपर न ही कम्पनी का नाम लिखा होता है और न ही ठेकेदार का। ऐसा कंपनियां इसलिए कर रही हैं ताकि किसी मजदूर की मौत के बाद उसे मुआवजा न देना पड़े।”
अखिल भारतीय मजदूर मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष लक्ष्मी राज सिंह बताते हैं, “कम्पनियां मजदूरों की सुरक्षा से हमेशा खिलवाड़ करती हैं। जहां काम हो रहा हो होता है वहां मजदूरों की सुरक्षा के लिए कोई इंतजाम नहीं होता है। कार्यस्थल पर डॉक्टर और एम्बुलेंस होनी चाहिए, लेकिन मजदूरों को तो हेलमेट और ग्लब्स ही नहीं मिल मिल पाता है तो बाकी इंतजामों के बारे में क्या बोला जाए।”
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