अनीता ने गाँव में बच्चों का ग्रुप बनाकर रोक दिया सरिता का बाल विवाह

Update: 2017-11-14 23:38 GMT
फोटो साभार: इंटरनेट

बलरामपुर। कक्षा आठ में पढ़ने वाली सरिता अभी और पढना चाहती थी, लेकिन उसके मां-बाप उसकी शादी कर देना चाहते थे। सरिता ने अपने साथ पढ़ने वाली अनीता से ये बात भी बताई। अनीता उम्र में भले छोटी रही हो, लेकिन उसका हौसला बड़ा था। तब अनीता ने अपने साथ के बच्चों के साथ ग्रुप बनाया और सरिता के घर पहुंच गई।

बच्चों के हक के लिए काम करने वाली विश्वस्तरीय संस्था यूनिसेफ और गाँव कनेक्शन के साझा प्रयास से बाल दिवस के अवसर पर उत्तर प्रदेश के छह जिलों में हो रहे अलग-अलग कार्यक्रमों में से बलरामपुर जिले के एक कार्यक्रम में अनीता ने अपनी कहानी बताई।

पहले बात की तो बात नहीं बनी

बलरामपुर जिले के विशनापुर प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाली अनीता बताती हैं, “उस समय सरिता की उम्र 16 थी, जबकि शादी करने के लिए लड़की की उम्र 18 और लड़के की 21 होनी चाहिए थी, ये सुनकर हम लोग उसके मां-बाप से बात करने गए। मैंने उसकी मम्मी से कहा कि आंटी सरिता अभी छोटी है, इसे स्कूल भेजिए, ये उम पढ़ने की है, शादी की नहीं।“

तब ससुराल वालों से की बात

मीना मंच की अनीता ने उठाई बच्चों के हक की आवाज।

अनीता आगे बताती हैं, “फिर भी जब वो नहीं मानी तो हमने लड़की के ससुराल वालों से बात की, तब हमने कहा कि आपको जेल हो सकती है, ये शादी न कराइए, लड़की अभी बहुत छोटी है।“ काफी प्रयास के बाद अनीता सरिता का बाल विवाह रोक पाने में सफल रही। मीना मंच के इन बच्चों ने समाज को सुधारने का बीड़ा उठा लिया है। वो घर-घर जाकर संदेश देते हैं कि लड़कियों को पहले पढ़ाएं फिर उनकी शादी सही उम्र आने पर करें।

ग्रामीण इलाकों में यह औसत 55 फीसदी

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में औसतन 46 फीसदी महिलाओं का विवाह 18 वर्ष होने से पहले ही कर दिया जाता है, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह औसत 55 फीसदी है। वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक, कुल मिलाकर विवाह योग्य क़ानूनी उम्र से कम एक करोड़ 18 लाख (49 लाख लड़कियां और 69 लाख लड़के) लोग विवाहित हैं। इनमें से 18 वर्ष से कम उम्र की एक लाख 30 हज़ार लड़कियां विधवा हो चुकी हैं और 24 हज़ार लड़कियां तलाक़शुदा या पतियों द्वारा छोड़ी गई हैं।

बाल विवाह में राजस्थान सबसे आगे

वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक, राजस्थान देश के उन सभी राज्यों में सर्वोपरि है, जिनमें बाल विवाह की कुप्रथा सदियों से चली आ रही है। राज्य की 5.6 फ़ीसदी नाबालिग आबादी विवाहित है। इसके बाद मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, उड़ीसा, गोवा, हिमाचल प्रदेश और केरल आते हैं।

मीना मंच की बालिकाओं ने उठाई आवाज

मीना मंच की समन्वयक डॉ. रमन श्रीवास्तव ने बच्चों में ड्रॅाप आउट बालिका को स्कूल में नामांकन कराने और उनका ठहराव बढ़ाने को प्रेरित किया। इसके साथ ही सामाजिक कुरीतियों जैसे अंधविश्वास, लिंग भेदभाव और बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाने को प्रेरित किया। मीना मंच की बालिकाओं द्वारा दहेज प्रथा, बाल विवाह, लिंग भेदभाव, शिक्षा व सामाजिक कुरीतियां व अंधविश्वास आदि को दूर करने को लेकर चर्चा की।

प्रिया ने भी किया जागरुक

कक्षा सात की प्रिया बताती हैं, ”हमारे गाँव में एक लड़की थी, जिसको पढ़ना अच्छा लगता था, लेकिन उसके पापा उसकी शादी करना चाहते थे, क्योंकि वो कई बहन थीं। हम लोग ने उनके घर जाकर बहुत समझाया कि पहले उसका पढ़ना जरूरी है, शादी जल्दी करने से उसका बचपन खत्म हो जाएगा।“

सर्वे करके बच्चों ने जाना अपने गाँव का हाल

मीना मंच के बच्चों ने अपने गाँव में सर्वे करके ये पता किया कि कौन सा बच्चा स्कूल नहीं जा रहा है और क्यों? गाँव-गाँव में रैली निकालकर बच्चों ने अपने बड़े-बुजुर्गों को ये समझाने की कोशिश की कि पढ़ाई हर बच्चे के लिए कितनी जरूरी है।

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