एसएमसी सदस्य ने एक सत्र में कराए चालिस नए नामांकन

बस्तौली में प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय एक ही परिसर में है। कभी स्कूल के मुख्य द्वार पर ही कूड़े का ढ़ेर लगा रहता था। मोहल्ले के लोग अपने घर का कूड़ा यहां लाकर फेंक जाते थे। कूड़े से निकलने वाली दुर्गंध से यहां पढ़ने वाले बच्चों और अध्यापकों के लिए परेशानी का सबब था

Update: 2018-11-05 09:32 GMT

लखनऊ। भाभी अगर अपने बच्चे को पढ़ने नहीं भेजोगी तो वह गलत कामों में लग जाएगा। वह आपके लिए ही परेशानी का कारण बनेगा। कुछ ऐसे उदाहरण देकर बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करते हैं पूर्व माध्यमिक विद्यालय गाजीपुर बस्तौली के एसएमसी सदस्य वीरेंद्र कुमार। विरेंद्र ने सत्र 2018 में अकेले 40 नए नामांकन कराए हैं।

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" मैं बस सातवीं तक पढ़ सका। पिता जी अकेले कमाने वाले थे और पूरे परिवार की जिम्मेदारी उनके ऊपर थी। पिता की मदद के लिए मैंने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। मुझे इस बात का मलाल है कि मैं आगे की पढ़ाई नहीं कर सका, लेकिन मैं नहीं चाहता कि मेरे मोहल्ले का कोई बच्चा अनपढ़ रहे। मैं चाहता हूं कि हर बच्चा कम से कम 12वीं पास हो। मेरी पांच बेटियां हैं, जिसमें से चार पढ़ने जाती हैं। " ये कहना है पूर्व माध्यमिक विद्यालय गाजीपुर बस्तौली के एसएमसी सदस्य वीरेंद्र का।

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कभी स्कूल के बाहर लगा रहता था कूड़े का अंबार

वीरेंद्र ने बताया, "बस्तौली में प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय एक ही परिसर में है। कभी स्कूल के मुख्य द्वार पर ही कूड़े का ढ़ेर लगा रहता था। मोहल्ले के लोग अपने घर का कूड़ा यहां लाकर फेंक जाते थे। कूड़े से निकलने वाली दुर्गंध से यहां पढ़ने वाले बच्चों और अध्यापकों के लिए परेशानी का सबब था।

लोग गंदगी के नाते अपने बच्चों का नाम यहां नहीं लिखवाते थे। वर्ष 2013 में मुझे एसएमसी सदस्य चुना गया। मैंने अपने अन्य साथियों के साथ खूब लड़ाई लड़ी। हम लोगों ने नगर निगम में जाकर समस्या के बारे में बताया, सभासद से मिले तब जाकर यहां से कूड़ा हटा। "

बच्चे पर रखते हैं ध्यान, बखूभी निभाते हैं ज़िम्मेदारी

घर-घर जाकर लोगों को किया जागरूक

विद्यालय की इंचार्ज प्रधानाध्यापिका मीना रावत ने बताया, " विद्यालय में कभी न के बराबर थी। जिन बच्चों का नामांकन था वे भी विद्यालय बहुत कम आते थे। मोहल्ले के ज्यादातर लोग मजदूर हैं इसलिए वे पढ़ाई महत्व को नहीं समझते थे। फिर हमने एसएमसी सदस्यों के सहयोग से घर-घर जाकर लोगों को जागरूक करना शुरू किया।

लोगों को पढ़ाई के महत्व के बारे में बताया। अब हमारे विद्यालय में 121 बच्चे पंजीकृत हैं। विद्यालय में बच्चों की संख्या बढ़ाने में एसएमसी सदस्य वीरेंद्र की काफी अहम भूमिका है। वीरेंद्र ने अकेले इस सत्र में 40 नए बच्चों का नामांकन कराया है।"

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मोहल्ले में रहने वाले अजीद (40वर्ष) ने बताया, " मेरे दो बच्चे हैं और दोनों स्कूल नहीं जाते थे। ये बात जब वीरेंद्र भाई को पता चली तो वे मेरे पास आए। उन्होंने बच्चों को स्कूल नहीं भेजने का कारण पूछा तो मैंने बताया कि मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि मैं बच्चों को स्कूल भेज सकूं। तब वीरेंद्र से मुझे बताया कि सरकारी स्कूल में फ्री में पढ़ाई होती है। बच्चों को मुफ्त में किताबें, ड्रेस जूते और मोजे भी मिलते हैं। वीरेंद्र ने खुद ले जाकर मेरे बच्चों का नाम लिखवाया।" 

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