पढ़ाई के साथ ही खेल-कूद में भी आगे हैं इस स्कूल के बच्चे

Update: 2018-12-21 10:33 GMT

लखनऊ। अमूमन सरकारी विद्यालयों में जितने बच्चों का नामांकन है उसके मुकाबले उपस्थिति बेहद कम होती है। अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजने की जिम्मेदारी नहीं निभाते। शिक्षक भी उपस्थिति के मामले में रुचि नहीं दिखाते। मगर माल ब्लॉक के पूर्व माध्यमिक विद्यालय में अभिभावक और शिक्षक दोनों की सहभागिता से बच्चों की उपस्थिति हमेशा 80 से 85 प्रतिशत से ज्यादा रहती है।

लखनऊ जिला मुख्यालय से लगभग 38 किलोमीटर दूर माल ब्लॉक के पूर्व माध्यमिक विद्यालय में 97 बच्चों का नामांकन है, इस विद्यालय में हर दिन 80 से 90 बच्चों की उपस्थिति रोजाना रहती है। नामांकन के बाद बच्चे रोजाना स्कूल आएं इसको लेकर विद्यालय में खुली बैठक हुई थी जहां सभी की सहमति से 'विद्यालय प्रबंधन समिति' का गठन किया गया ।

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विद्यालय के प्रधानाध्यापक मनोज कुमार शुक्ला बताते हैं, "पहले अभिभावकों को लगता था कि बच्चे हर दिन स्कूल जाएं इसकी जिम्मेदारी सिर्फ विद्यालय के अध्यापकों की होती है, लेकिन विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्य बनने के बाद अभिभावकों को अपनी जिम्मेदारी का अहसास हुआ।


वह आगे बताते हैं, "साल 2010 में जब मेरी नियुक्ति हुई तो स्थिति बहुत खराब थी, स्कूल में सिर्फ 32 बच्चे थे । बच्चों की उपस्थिति भी बेहद कम रहती थी। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में लोगों की सोच बदली है।"

साफ-सफाई के लिए बच्चे हो गए हैं जागरूक

पहले जहां बच्चे साफ-सफाई के लिए जागरूक नहीं थे अब वे स्वच्छता के महत्व को बहुत अच्छे तरीके से समझने लगे हैं। प्रधानाध्यापक बताते हैं, "वात्सल्य संस्था की तरफ से बच्चों और उनके अभिभावकों को साफ-सफाई के लिए जागरूक किया गया है। पहले बच्चे खाना खाने से पहले हाथ नहीं धोते थे, लेकिन अब साबुन न होने पर बच्चे कहते हैं कि साबुन कहां है, हमें हाथ धोना है।"

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एसएमसी सदस्य हैं सक्रिय

विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्य राम स्वरूप बताते हैं, "मेरी बेटी आठवीं में पढ़ती है। पहले स्कूल में बच्चों की उपस्थिति बेहद कम रहती थी। बच्चे खेलते रहते या घर में काम करते थे। जब से हर महीने मीटिंग होनी शुरू हुई है तबसे सभी लोगों की जिम्मेदारी बंट गयी है। समिति का कोई न कोई सदस्य खाना चेक करने के लिए आता है,वहीं जिस मोहल्ले के बच्चे स्कूल नहीं आते हैं तो उस मोहल्ले का सदस्य घर जाकर जानकारी लेता है।।"

राम स्वरूप कहते हैं, "हम हर सुबह एक चक्कर अपने मोहल्ले में लगा लेते हैं और सभी बच्चों के घर जाकर कहते हैं कि स्कूल जाने के लिए तैयार हो जाएं। हफ्ते में एक दिन स्कूल में खाना कैसा बन रहा है यह चेक करते हैं। खाने में कोई कमी होती है रसोइये को कहकर ठीक करने को कहते हैं।"  

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