पुरुषों के काम को चुनौती देकर सुदूर गाँव की ये महिलाएं कर रहीं लीक से हटकर काम

सुदूर गाँव की रहने वाली सैकड़ों महिलाएं लीक से हटकर काम कर रही हैं। इनमे से कोई गैराज मालकिन है तो कोई रानी मिस्त्री, कोई पशु सखी है तो कोई सटरिंग का काम करती हैं। किसी ने मौरम, सरिया, गिट्टी सीमेंट की दुकान खोली है तो कोई सफल मैकेनिक है। कुछ टेंट हाउस चलातीं तो कुछ आटा चक्की और दाल मील चलातीं।

Update: 2018-09-15 10:20 GMT

पलामू/रांची (झारखंड)। सुदूर गाँव की ये महिलाएं अब घर की चाहरदीवारी और चूल्हा चौका तक ही सीमित नहीं रह गयी हैं। ये अपनी आजीविका को सशक्त करने के लिए न केवल लीक से हटकर काम कर रही हैं बल्कि पुरुषों के काम को चुनौती भी दे रही हैं। ये ग्रामीण महिलाएं देश की उन लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणाश्रोत हैं जो आज भी सिर्फ महिलाओं वाले निर्धारित कार्यों तक ही सीमित हैं।

"पंचर ठीक करने का हुनर आता था, सोचा एक दुकान खोलकर पंचर बनाने लगूं। एक मोटर गैराज में क्या-क्या सामान होना चाहिए मुझे सब पता है। जब बस में बैठकर गैराज का सामान बाजार से लेने जाती तो जिसकी भी नजर पड़ती है वो ऊपर से नीचे तक निहारने लगता।" कमला देवी ने गैराज खोलने के शुरुआती दौर का अनुभव साझा किया, "जब गैराज शुरू की थी तब लोग कहते थे अब रोटी बनाने वाले हाथ पंचर बनाएंगे। सब लोग मजाक बनाते थे कि जो काम औरतों का है वो औरतें करें, पुरुषों का काम उन्हें करने दें। बुरा लगता था ये सब सुनकर, पर सोचती थी अगर इनके कहने पर घर बैठ गयी तो बच्चों को कैसे पालूंगी।" कमला देवी पलामू जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर करमा गाँव की रहने वाली हैं और एक गैराज की मालकिन हैं। जिनकी सीजन में 1000-1200 रुपए आमदनी होती है और सामान्य दिनों में 400-500 रुपए कमा लेती हैं।

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झारखंड में कमला देवी की तरह सुदूर गाँव की रहने वाली सैकड़ों महिलाएं लीक से हटकर काम कर रही हैं। इनमे से कोई गैराज मालकिन है तो कोई रानी मिस्त्री, कोई पशु सखी है तो कोई सटरिंग का काम करती हैं। किसी ने मौरम, सरिया, गिट्टी सीमेंट की दुकान खोली है तो कोई सफल मैकेनिक है। कुछ टेंट हाउस चलातीं तो कुछ आटा चक्की और दाल मील चलातीं। इनमे से कई सफल किसान हैं तो कई सफल उद्यमी। कुछ सफल ड्राइवर हैं तो कुछ राशन कोटे का संचालन बखूबी कर रही हैं।

इन मेहनती जुझारू ग्रामीण महिलाओं के लिए अब ऐसा कोई काम नहीं बचा है जो करना इनके लिए आज चुनौती हो। ऐसा नहीं है कि ये महिलाएं बहुत पढ़ी-लिखी हैं और इनके लिए पुरुषों वाले काम करना सामान्य रहा होगा। हर ग्रामीण महिला की तरह इनके सामने भी हजारों चुनौतियां आईं हैं, तमाम महिलाओं ने पतियों की मार बर्दाश्त की है। इन्होंने पुरुषों के कामों पर जब एकाधिकार जमाना शुरू किया तो अपनों से और समाज से लड़ना पड़ा, ताने सुने। तब कहीं जाकर आज ये पुरुषों के कामों को इतनी आसानी से कर पा रही हैं।

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शहर की चकाचौंध से कोसों दूर वंचित तबके की सपना देवी अपने क्षेत्र की सफल रानी मिस्त्री हैं जो शौचालय का निर्माण करती हैं। हाथ में कन्नी (शौचालय निर्माण का औजार) पकड़े ये बड़ी फुर्ती से शौचालय निर्माण की दीवार में ईंट के ऊपर गारा लगा रही थी। सपना देवी के लिए पुरुष बाहुल्य क्षेत्र में पुरुषों के काम को चुनौती देकर रानी मिस्त्री बनना इतना आसान नहीं था। वो आज भी अपने पति से मार खाकर आयी थी लेकिन चेहरे में सिकन की बजाए आत्मविश्वास भरी मुस्कान थी।


सपना देवी ने हाथ में कन्नी दिखाते हुए कहा, "जब से इन हाथों ने औजार उठाया है पति की चार दिन मार खाई है। पति कहता है कि ये काम हमारा है, जो तुम्हारा काम है वो काम करो। आज भी मार खाकर आयी हूँ पर शौचालय बनाना नहीं छोडूंगी। पहले दिनभर लकड़ी बीनकर 100 रुपए भी कमाना मुश्किल होता था लेकिन रानी मिस्त्री बनने के बाद अब दिन का 200-250 रुपए कमा लेते हैं।" सपना देवी बोकारो जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर जरीडीह ब्लॉक के अराजू ग्राम पंचायत के कमलापुर गांव की रहने वाली हैं।

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सपना देवी की तरह झारखंड में 50 हजार से ज्यादा रानी मिस्त्री हैं जो अबतक डेढ़ लाख से ज्यादा शौचालय निर्माण कर चुकी हैं। इनमे से कई रानी मिस्त्री घर निर्माण कर लेती हैं तो कई अच्छी सटरिंग कर लेती हैं। कई रानी मिस्त्री चापानल मैकेनिक भी हैं। ये शौचालय निर्माण से लेकर नल मैकेनिक बनाने का हुनर जानती हैं। जिन हाथों में कभी बेलन और कंछुल था आज उन्हीं हाथों में औजार पकड़ ये महिलाएं विकास की कहानी गढ़ रही हैं।


लातेहार जिला के बरवाडीह प्रखंड की कई महिलाएं अपने आसपास के नल ठीक करने जाती हैं। सामुदायिक पत्रकार नेहा कुमारी ने बताया, "गाँव के जो नल महीनों खराब पड़े रहते थे मिस्त्री न मिलने की वजह से ठीक नहीं हो पाते थे, अब वही नल खराब होने पर तुरंत ये दीदी ठीक कर देती हैं। इससे जो पैसा मिलता है उससे इन्हें आमदनी का एक जरिया मिला है।"

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झारखंड ग्रामीण विकास विभाग के मंत्री नीलकंठ सिंह मुण्डा ने महिलाओं के रानी मिस्त्री के चयन पर अपनी राय देते हुए कहा, "ग्रामीण महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त हों इसलिए इन्हें रानी मिस्त्री बनाकर शौचालय निर्माण का काम सौंपा गया। महिलाओं को जो भी जिम्मेदारी दी जाती है वो ईमानदारी से गुणवत्ता का ख़ास ध्यान रखती हैं। आने वाले समय में इन्हें प्रधानमन्त्री आवास योजना के निर्माण कार्य से भी जोड़ा जाएगा।"

ये ग्रामीण महिलाएं इतनी मेहनती और हुनरमंद हैं अगर किसी भी चीज का प्रशिक्षण दिया जाए तो ये अपनी रोजी-रोटी के लिए उस काम को मन लगाकर करना शुरू कर देती हैं। इन ग्रामीण महिलाओं की गरीबी को दूर कर उन्हें हुनरमंद बनाने के लिए झारखंड ग्रामीण विकास विभाग और झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी पिछले कई वर्षों से काम कर रहा है। महिलाएं हर काम कर सकें जिससे उनकी आजीविका सशक्त हो इसके लिए जेएसएलपीएस इन्हें लगातार प्रशिक्षित करता रहता है। जिन महिलाओं ने कभी स्मार्ट फोन नहीं चलाए थे आज वो टैबलेट और माइक्रों एटीएम पोर्टेबल मशीन के जरिए पैसों का लेनदेन करती हैं। पांच हजार से ज्यादा महिलाएं पशु सखियाँ बन गयी हैं जो साइकिल से गाँव-गाँव जाकर बकरियों का इलाज करती हैं।

कई महिलाएं चलाती हैं आटा चक्की और दाल मील


गैराज मालकिन कमला देवी की तरह पलामू जिले के मेदिनीनगर ब्लॉक के खनवाँ गाँव की रहने वाली हसरत बानों (40 वर्ष) आटा चक्की को चला रही हैं। तराजू पर तौल रही बोरी को नीचे रखते हुए कहा, "अगर आटा चक्की न खोलते तो आज अपने सात बच्चों को पाल-पोसकर लिखा पढ़ा न पाते। जब दुकान नहीं थी तब हर दिन मजदूरी मिलती नहीं थी, अब तो घर बैठे अपना रोज का काम है। पैसे की जरूरत पड़ने पर साहूकार के पास जाते और फिर सालों उनके तले दबा हुआ महसूस करते।"

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हसरत बानो आज जिस पक्की दुकान पर खड़ीं थीं इसी दुकान को तीन साल पहले इन्होंने नौ खूंटे और तिरपाल डालकर शुरू की थी। उन्होंने बताया, "आटा मील पर बोरी तौलने से लेकर पिसाई तक का काम हम खुद ही करते हैं। मजदूर रखेंगे तो हमे बचेगा क्या। घर बैठे रोजाना की आमदनी है, अब रोज न तो मजदूरी के लिए भटकना पड़ता है और न ही महाजन के आगे हाथ फैलाना पड़ता।"

हसरत बानो की तरह लातेहार जिला के ग्रामीण सेवा केंद्र मुक्का में सखी मंडल से जुड़ी 11 महिलाएं दाल मील से दाल बनाती हैं और उसकी पैकेजिंग करके बाजार में बेचती हैं। समूह की अध्यक्ष सोमारी देवी (35 वर्ष) ने कहा, "कोई भी काम छोटा बड़ा नहीं होता, काम हमने बाँट दिए हैं कि ये महिला करेगी ये पुरुष करेंगे। अब देखिए हम महिलाएं ही दाल मील चलाते हैं, अरहर खरीद से लेकर दाल बनाकर उसको बाजार बेचना सब काम हमें आता है।"

ये महिलाएं बांस के देसी कोल्ड स्टोर भी बना लेती


बांस के बने देसी कोल्ड स्टोर को दिखाते हुए गीता देवी (42 वर्ष) ने कहा, "इस कोल्ड स्टोर में नौ कुंतल आलू एक साथ रख देते हैं जो छह से सात महीनें तक नहीं सड़ते हैं। इस कोल्ड स्टोर को हमारे गाँव की कई दीदी बना लेती हैं। यहां आसपास कोई कोल्ड स्टोर नहीं है, इसलिए ये कोल्ड स्टोर हमारे लिए बड़े काम की चीज है।" गीता देवी रामगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर मांडू ब्लॉक के मांडूडीह गाँव की रहने वाली हैं।"

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झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसायटी के अंतर्गत गीता देवी की तरह अबतक 400 से ज्यादा किसान देसी बम्बू बना चुके हैं। वर्ष 2018 तक 5000 देसी कोल्ड स्टोर बनाने का लक्ष्य रखा गया है। गीता देवी की तरह अब सैकड़ों किसानों को आलू रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज के चक्कर नहीं काटने पड़ते हैं। ये देसी कोल्ड स्टोर का न सिर्फ खुद लाभ ले रहे हैं बल्कि गाँव-गाँव जाकर दूसरे किसानों को भी बनाना सिखा रहे हैं।  

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