‘कहानी सुनी तो नानी की याद आ गई’ पहली बार ऑडिटोरियम में कहानी सुनकर बोल पड़े झुग्गी के बच्चे

Update: 2016-10-04 19:04 GMT
लखनऊ के जयपुरिया इंस्टीट्यूट में दान उत्सव के दौरान मशहूर किस्सागो नीलेश मिसरा की कहानियां सुनते बच्चे

लखनऊ। फैज़ुल्लागंज क्षेत्र में झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले अभयजीत (16 वर्ष) को जब एक ऑडिटोरियम में कहानी सुनने का मौका मिला तो उनके लिये यह पल हमेशा के लिए यादगार बन गये।

अभी तक अपने गाँव से बाहर भी नहीं निकले अभयजीत के लिए यह मौका एक सपने जैसा था, जो दान उत्सव की मदद से पूरा हुआ है। इस उत्सव को पूरे देशभर में मनाया गया जिसमें लोगों ने अपनी खुशी से समाज के हाशिए पर जी रहे गरीब, झुग्गी-बस्ती व गाँवों के बच्चों के लिए तरह-तरह की चीज़ें भेंट की। एक हफ्ते में करीब पांच लाख लोग इस मुहिम से जुड़े

इसी उत्सव के लखनऊ संस्करण में अभयजीत और उसे जैसे कई बच्चों को मौका मिला देश के सबसे मशहूर किस्सागो नीलेश मिसरा से कहानियां सुनने का।

मुस्कुराता हुआ अभयजीत कहता है कि बचपन में सोते समय नानी कहानी सुनाती थीं, तब बहुत अच्छा लगता था। आज जब सर ने कहानी सुनाई तो नानी की याद आ गई।

यह समारोह देश के 110 शहरों में आयोजित हो रहा है। लखनऊ में दो से आठ अक्टूबर तक मनाए जा रहे दान उत्सव के दूसरे दिन समारोह में विभिन्न सामाजिक संस्थाओं की मदद से आए बच्चों और संस्थाओं से जुड़े लोगों ने बाल कहानियों का लुत्फ उठाया।

कहानियों को सुनकर समारोह में आए बच्चों के साथ-साथ दान उत्सव को सफल बनाने के लिए तैनात लखनऊ के कई कॉलेजों से आए छात्र कार्यकर्ताओं ने खुशी जाहिर की। लखनऊ के मॉर्डन कॉलेज में पड़ने वाली अनुश्री को दान उत्सव में वॉलेंटियर बनने का मौका मिला।

आज के दौर में गाँवों में रहने वाले बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए ऐसे समारोह बहुत ज़रूरी हैं। वो इस तरह के प्रोग्राम से न सिर्फ उन बच्चों को बाहरी दुनिया के बारे में पता चलता है, बल्कि इसकी मदद से हम जैसे कॉलेज जाने वाले छात्रों को यह जानने में मदद मिलती है कि हम कैसे किसी संस्था से जुड़ कर गाँवों में रहने वाले बच्चों की मदद कर सकते हैं।
अनुश्री, वॉलेंटियर- दान उत्सव

दान उत्सव में लखनऊ, बाराबंकी व अन्य जिलों से आई कई सामाजिक संस्थाओं (प्रोजेक्ट पहल, स्वतंत्रता तालीम, पारस फाउंडेशन, सार्थक फाउंडेशन, सनतकदा और एहसास) से जुड़े लोगों और बच्चों ने समारोह को खूब पसंद किया।

ऐसे बच्चों को बाहरी माहौल में लाकर ही हम उनके अंदर छिपे संकोच को कम कर सकते हैं। बच्चों के साथ-साथ नीलेश सर की कहानियों को सुनकर बचपन की याद आ गई।
लवलीन गुप्ता, क्षेत्रीय अधिकारी सामाजिक संस्था पारस फाउंडेशन (बाराबंकी)

दान उत्सव को सफल बनाने के लिए देश भर के 1,700 स्कूल और 450 कॉलेज भी अपना योगदान दे रहे हैं। इसके अलावा इस समारोह में 1000 से ज़्यादा कंपनियों ने हिस्सा लिया है। इस दौरान उत्सव संयोजिका रिद्धि अग्रवाल भी मौजूद रहीं।

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