खेती का तरीका बदल बाराबंकी का ये किसान काट रहा मुनाफे की फसल
दौलतपुर गांव का एक किसान अपने खेतों में मुनाफे की फसल काट रहा है,जिसे देखने कई जिलों से लोग आते हैं…
अरविंद शुक्ला/वीरेंद्र सिंह
दौलतपुर (बाराबंकी)। कभी अमिताभ बच्चन की जमीन को लेकर सुर्खियों में रहने वाला गांव फिर चर्चा में है। चर्चा की वजह फिर खेत हैं, लेकिन इस बारे में बातें किसानों के बीच हो रही हैं। दौलतपुर गांव का एक किसान अपने खेतों में मुनाफे की फसल काट रहा है,जिसे देखने कई जिलों से लोग आते हैं।
लखनऊ विश्वविद्यालय और फैजाबाद से पढ़ाई करने वाले अमरेंद्र प्रताप सिंह बाराबंकी में सूरतगंज ब्लॉक के दौलतपुर गांव में केले, तरबूज, मशरूम, खरबूजा, हल्दी और खीरा समेत करीब एक दर्जन फसलों की खेती करते हैं। इस इलाके के बाकी किसानों की तरह उनके घर में पारंपरिक तरीकों से खेती होती थी, लेकिन जिस अनुपात में खेती थी, उसके मुकाबले आमदनी काफी कम थीं।
लेकिन 3-4 साल पहले जब से खेती की कमान इन्होंने संभाली, खेती के मायने और मुनाफे के नंबर बदल गए हैं। पहले जहां पूरे साल में 15-20 लाख रुपए मिलते थे, अब एक फसल ही इतने रुपए देकर जाती है। अमरेंद्र प्रताप सिंह (32 वर्ष) बताते हैं, "हमारे घर में करीब 250 बीघा जमीन है, जो आंकड़ों में काफी है। लेकिन 2015 तक जब पिता जी और चाचा लोग धान, गेहूं, गन्ना उगाते थे, मुश्किल से 15-20 लाख रुपए मिलते थे, 2016 में मैंने खेती शुरू की। पिछले साल 45 लाख रुपए की आमदनी हुई थी, इस बार 2018 ये आंकड़ा 80-85 लाख रुपए सालाना तक पहुंच जाएंगा।"
अमरेंद्र के पास इस वक्त 12 हेक्टेयर यानी (सवा सौ बीघा) केला है। तीन विदेशी किस्मों के तरबूज, खीरे और खरबूजे करीब 7 हेक्टेयर में लगा रखे हैं। केले के साथ वो हल्दी की सहफसली खेती करते हैं। अरमेंद्र बताते हैं, " मेरी पढ़ाई लिखाई लखनऊ में हुई, फिर शिक्षा मित्र के रूप में नौकरी कर ली, गांव में रहना शुरू किया तो सोचा क्यों ना खेती अपने हाथ में लूं। लेकिन खेती शुरू करने से पहले मैंने कई किसानों के खेतों को देखा, उनके अनुभव, वैज्ञानिक और कृषि अधिकारियों से मिला। फिर वो खेती शुरू की, जिसका नतीजा आज है। पिछले वर्ष मेरे खेत में बाराबंकी का सबसे बड़ा और बेहरतीन केला हुआ था, इस बार भी मेरे पूरे खेत में फरवरी महीने में ही फ्लावरिंग (फूल) हो गई थी।"Full View
अमरेंद्र की देखादेखी घर के कई युवक भी खेती करने लगे हैं। अमरेंद्र एक भाई ने पंजाब के एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय से कृषि में बीएससी करने के बाद मशरूम की बड़े पैमाने पर खेती शुरू की है।
अमरेंद्र बताते हैं, "हमारे पास सालाना 500 कुंतल मशरुम उत्पादन की यूनिट हैं। हम लोग 100 कुंतल कंपोस्ट वाले 10 बंगले (अस्थायी-खरपतावार और भूसे वाली यूनिट) बनाते हैं। जिसमें करीब 50 लोगों को रोजगार मिलता है। हमारी देखा-देखी की और ग्रामीणों ने मशरुम उगाना शुरू किया है।"
5 से 8 महीने चलने वाला मशरूम पैकिंग प्लांट लगाने की तैयारी
अमरेंद्र मशरूम की खेती को कारोबारी रूप देना चाहते हैं। वो बताते हैं, "हम लोग जल्द यूपी का दूसरा पॉवर पैक मशरुम पैकेजिंग सेंटर बनाने वाले हैं। 400 कुंतल भूसे की क्षमता वाला पक्की यूनिट तैयार है। इसकी लागत करीब 40 लाख रुपए आएगी,लेकिन इसमें पैक हुआ मशरूम 5 से 8 महीने तक खराब नहीं होगा। यूपी में अभी ऐसी यूनिट सिर्फ हाथरस में है।"
अमरेंद्र ने जब लखनऊ छोड़ गांव की नौकरी और खेती शुरु किया था, तो घरवाले राजी नहीं थी। अमरेंद्र के मुताबिक पिताजी चाहते थे, शहर में कोई अच्छी नौकरी या बड़ा कारोबार किया जाए, क्योंकि खेती घाटे का सौदा है। लेकिन मुझे लगता था खेती का पैटर्न बदला जाए तो मुनाफा होगा।
कृषि और बागवानी अफसरों को दिया धन्यवाद
अपनी खेती के लिए स्थानीय कृषि और बागवानी अधिकारियों के सहयोग को धन्यवाद देते हैं। अमरेंद्र बताते हैं, "हमारा गांव बाराबंकी और सीतापुर बार्डर के पास नदियों के बीच है। यहां पहले कोई अधिकारी आता ही नहीं था, लेकिन जब से मैने खेती शुरु की। हमारे जिला उद्यान अधिकारी जयकरण सिंह और दूसरे अधिकारियों ने कई बार मौके पर पहुंचकर सहयोग किया।' खेती में अच्छे प्रयोगों के लिए उन्हें नाबार्ड और इफकों समेत कई संस्थाओं को पुरस्कृत भी किया जा चुका है।
अमरेंद्र के खेतों पर अब कई जिलों के किसान पहुंचते हैं। खेती और बागवानी से जुड़े कॉलेज के छात्र भी यहां खेती की बारीकियां सीखने पहुंचते हैं। अमरेंद्र बताते हैं, " हमारा इलाका बहुत पिछड़ा है, अभी भी ज्यादातर किसान पारंपरिक खेती ही करते हैं। ये अच्छी बात है कुछ किसान अब नगदी फसले उगाने लगे हैं। मैं चाहता हूं कुछ किसान एक साथ आएं ताकि समूह में योजना बनाकर खेती हो बल्कि उसके खरीददार भी मिलें। इसके लिए मैं किसान उत्पादक समूह बनाने के लिए प्रयासरत हूं।'
किसान से ऐसे संपर्क करें- 9415323000