आखिर बीएसएफ के जवानों से भेदभाव क्यों ?

Update: 2017-01-10 12:00 GMT
bsf soldiers 

लखनऊ। हाल में पाकिस्तान के हमलों में हमारे देश के कई जवान शहीद हुए। 18 सितंबर को एक तरफ उरी में आतंकी हमले में हमारे 19 जवान शहीद हुए वहीं, 2 अक्टूबर को बारामुला में हमारे देश का एक बीएसएफ जवान शहीद हो गया, जबकि एक जवान घायल हो गया। मगर आज आपका ध्यान हमारे जवानों की सेवाओं और केंद्र से मिलने वाली सुविधाओं पर खींचना चाहते हैं। ऐसा इसलिये क्योंकि आज भी हमारी सरकार भारतीय सेना से इतर बनी विंग जैसे, बीएसएफ, एसएसबी और आईटीबीपी के जवानों की सेवाओं से भेदभाव कर रही है। आईये आपको बताते हैं हमारे जवानों से किस तरह किया जा रहा है यह भेदभाव।

तब बनाई गई बीएसएफ

अगर हम बीएसएफ की बात करें तो वास्तव में बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल) का गठन वर्ष 1965 में पाक से घोषित युद्ध के बाद किया गया। इस युद्ध के बाद सबसे बड़ी समस्या यह थी कि हमारी देश की सीमाओं को मजबूत कैसे किया जाए। बता दें कि उस समय संयुक्त राष्ट्र के नियमों के अनुसार, सीमाओं पर सेना को तैनात नहीं किया जा सकता था। ऐसे में सीमा पर उस राज्य की पुलिस के ऊपर सीमा की रक्षा की जिम्मेदारी थी। मगर यह व्यवस्था सीमा की सुरक्षा के लिए सही नहीं थी। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तीनों जनरलों की स्वीकृति से बीएसएफ (बार्डर सिक्योरिटी फोर्स) यानी सीमा सुरक्षा बल का गठन किया। ऐसे में बीएसएफ के जवानों का काम तो आर्मी का हुआ, मगर संगठन पुलिस के अंतर्गत रखा गया। यानी बीएसएफ का काम सीमाओं की रक्षा करने के साथ युद्ध के समय भारतीय सेना का साथ देना था, मगर सुविधाएं पुलिस की। बस यहीं से शुरू हुआ हमारे जवानों के साथ भेदभाव।

आर्मी और बीएसएफ की सेवाओं में बड़ा अंतर

जैसे कि पहले बताया गया है कि संयुक्त राष्ट्र के नियमों के अनुसार, सेना को देश की सीमाओं पर तैनात नहीं किया जा सकता है। इस आधार पर बीएसएफ का गठन किया गया और बीएसएफ को पुलिस के अंतर्गत रखते हुए सीमा की सुरक्षा पर तैनात किया गया। ऐसे में भारतीय सेना और बीएसएफ की सेवाओं के बारे में बात करें तो आप इस अंतर को पढ़कर हैरान रह जाएंगे। आईये आपको दोनों की सेवाओं में अंतर बताते हैं।

बीएसएफ के जवानों की सेवाएं

बीएसएफ के जवान न सिर्फ सीमाओं पर सेवाएं देते हैं, बल्कि देश के आंतरिक मामलों में भी बीएसएफ के जवानों ने बखूबी भूमिका निभाई हैं। 1970-80 के दशक में नागालैंड समस्या, 1986 में पंजाब समस्या, 1990 में उल्फा के विरुद्ध ऑपरेशन समेत कश्मीर में शांति व्यवस्था कायम रखने के लिए आतंकियों के खिलाफ बीएसएफ ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इतना ही नहीं, आसाम, ओडीसा, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में नकसलियों के खिलाफ भी आतंरिक मामलों में भी बीएसएफ के जवान न सिर्फ सीना तान कर खड़े रहे।वहीं, बीएसएफ के जवानों ने आपात स्थितियों बाढ़, भूकंप और चुनाव ड्यूटी के समय भी काम किया। इन हालातों में बड़ी संख्या में न सिर्फ बीएसएफ के जवान शहीद हुए ब्लकि घायल भी हुए। इतना ही नहीं, पूर्वोत्तर में बांग्लादेश की सीमा पर आसाम के घने जंगलों में, मेघालय में, त्रिपुरा, निजोरम और नागालैंड में भी तैनात किया गया। बीएसएफ के जवानों की इन सेवाओं के बावजूद उनको सुविधाएं सिर्फ पुलिस के आधार पर सरकार द्वारा दी गई।

आर्मी के जवानों की सेवाएं

संयुक्त राष्ट्र के नियमों के मुताबिक आंतरिक मामलों में आर्मी तैनात नहीं की जा सकती और यह नियमों का उल्लंघन माना जाता है। ऐसे में आर्मी को चार दशाओं में तैनात किया जा सकता है। एक, किसी विवादित क्षेत्र पर जिस पर दोनों देश दावा करते हों दूसरा, किसी देश के हमला करने पर, तीसरा प्राकृतिक प्रकोप की स्थिति पर और अंतिम, देश में इमरजेंसी लागू किये जाने पर। बता दें कि देश की स्वतंत्रता उपरांत पांच बार युद्ध किया गया। ऐसे में वेतन आयोग द्वारा इन जवानों को आर्मी के बराबर सुविधाएं न देकर इन जवानों को हतोत्साहित किया गया। सिर्फ बीएसएफ ही नहीं, एसएसबी और आईटीबीपी के जवानों को भी आर्मी के बराबर सुविधाएं नहीं दी गईं।

ड्यूटी और सेवाओं को किया गया अनदेखा

सातवें वेतन आयोग में जमीनी स्तर पर जवानों की ड्यूटी और सुविधाओं को अनदेखा किया गया। हालांकि कुछ समय पहले वन रैंक, वन पेंशन के अंतर्गत सुविधाओं की मांग भी की गई, मगर इसके बावजूद इनकी सेवाओं को अनदेखा किया गया। मसलन इन जवानों को सिविल के मुताबिक ड्यूटी के घंटो, ओवरटाइम, अवकाश, अलग-अलग भत्ते समेत राजपत्रित और अराजपत्रित अवकाशों पर छुट्टी समेत आर्मी के जवानों से इतर मूलभूत सुविधाओं से परे रखा गया। वहीं, बीएसएफ के जवानों को पुलिस के अंतर्गत रखते हुए सिविल का दर्जा दिया गया। न्यायविद माथुर की अगुवाई में समिति के सदस्यों ने देश के जवानों के साथ भेदभावपूर्ण रवैया का परिचय दिया।

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