आखिर किसान ऐसा क्या करें कि उनकी बात ‘सरकार’ तक पहुंच जाए

Update: 2018-03-12 15:20 GMT
अलग-अलग तरीके प्रदर्शन करने किसान।

लखनऊ। किसान आखिर ऐसा करे कि उसकी बात सरकारों तक पहुंच जाए। किसानों ने कभी पेशाब पिया तो कभी नर कंकालों के साथ प्रदर्शन किया। कभी जल समाधि ली तो कभी शवआसन किया। अब महाराष्ट्र के 35000 किसान सैकड़ों किमी पैदल चलकर महाराष्ट्र विधानसभा को आज घेरने की तैयारी कर रहे हैं। बावजूद इसके किसानों की बात सरकार सुनने को तैयार नहीं है।

पिछले दिनों तो राजस्थान के जयपुर में किसान भू-समाधि ले रहे हैं। किसानों की बातें इसलिए भी शायद नहीं सुनी जाती क्योंकि वे असंगठित हैं।

किसानों को ऐसा क्यों करना पड़ रहा है। ऐसा भी नहीं है कि किसानों ने शुरू से ही ये विरोध के ये तरीके अपनाएं होंगे। पहले उनके प्रदर्शन के ये तरीके नहीं थे। उन्होंने साधाराण तौर पर अपनी मांगें रखी होंगी। जब उसे अनसुना/अनदेखा किया तब किसानों ने विरोध के नए तरीके अपनाए।

मुंबई में हो रहे किसान मार्च में शामिल किसान।

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हद तब हो जाती है कि जब विरोध के विचित्र तरीकों के बावजूद किसानों की बात सरकार के कानों तक नहीं पहुंचती। अब राजस्थान के नींदड़ को ही देख लीजिए। वहां किसान महीनों भू-समाधि में रहे। पूरे देश को इसकी खबर थी, बस सरकार को छोड़कर। किसानों का प्रदर्शन कब तक चलेगा, कब तक वो समाधि मे रहेंगे, ये किसी को नहीं पता। सैकड़ों की संख्या में किसान अपनी खेतीहर जमीन को सरकार को आवास बनाने के लिए नहीं देना चाहते। लेकिन सरकार तो कब्जा करने के लिए उतारू है, वो भी कौड़ियों के भाव। 4 करोड़ बीघे वाली जमीन सरकार 30 लाख रुपए प्रति बीघे में चाहती है।

ये तो रही राजस्थान की बात। इससे पहले भी किसानों को अपनी बात मनवाने के लिए जान खुद को नुकसान पहुंचाने वाले विरोध प्रदर्शन करने पड़े हैं। आइए नजर डालते हैं कुछ ऐसे ही अनोखे विरोध प्रदर्शनों पर............

भूमि अधिग्रहण के खिलाफ किसानों ने ली भू-समाधि

राजस्थान के जयपुर जिले के गांव नींदड़ में जयपुर डेवलपमेंट अथॉरिटी के भूमि अधिग्रहण के खिलाफ किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। ये प्रदर्शन पिछले 40 दिनों से चल रहा है। ये प्रदर्शन इसलिए खास है क्योंकि किसान जिस मिट्टी में अनाज उगाते हैं, उसी में खुद को गाड़ कर प्रदर्शन कर रहे हैं। जयपुर डेवलपमेंट अथॉरिटी यहां किसानों के 1350 बीघे जमीन का अधिग्रहण कॉलोनी बनाने के लिए कर रही है। इससे लगभग 18 हजार किसान प्रभावित होंगे। किसानों ने अपनी पीड़ा कई स्तर पर सुनाई, लेकिन उनकी बात कोई सुनने को तैयार नहीं है। जिसके बाद किसानों ने जमीन में गड्ढा खोदकर खुद को उसमें गाड़ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया।

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प्रदर्शन कर रहे किसानों का कहना है कि जब तक उनकी मांग नहीं मानी जाएंगी, तब तक प्रदर्शन जारी रहेगा। किसानों ने इस दौरान दिवाली, भैयादूज, एकादशी जैसा त्योहार यहीं तो मनाया ही, अब बेटियों की शादी भी यहीं से हो रही है। अभी कल ही एक किसान की बेटी की शादी यहीं से हुई। इस बारे में नींदड़ बचाओ युवा किसान संघर्ष समिति के संयोजक डॉ नगेंद्र सिंह शेखावत कहते है "जब किसान की बातें नहीं सुनी जातीं तभी वो पद्रर्शन करता है। वरना आप ही सोचिए कि भला किसान अपना खेत छोड़कर सड़कों पर क्यों आएगा। सरकार ही किसानों को मजबूर करती है कि वो अपनी जान जोखिम में डाले।"

योग दिवस के विरोध में किसानों शवासन

देश भर में सरकार के योग दिवस के विरोध में किसानों ने ‘शवासन’ कर अपना गुस्सा ज़ाहिर किया था। सरकार के विरोध में किसानों ने देश में जगह-जगह ‘शवासन’ करके सरकार का ध्यान खींचने की कोशिश की। छह जून को किसान आंदोलन के दौरान मंदसौर में पुलिस गोलीबारी में 6 किसानों की मौत के बाद किसानों का गुस्सा बढ़ गया था। ऐसा प्रदर्शन महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरिद्वार में किसानों ने किया।

देश के कुछ राज्यों में किसान क़र्ज़ के चलते बैंक और सूदखोरों की प्रताड़ना का शिकार हैं। उनकी फ़सलों के उचित दाम न मिलने और उपज कम होने से किसान और भी परेशान हैं। इसके चलते बड़ी संख्या में किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में किसानों ने एक जून से आंदोलन शुरू किया था। बात तब बिगड़ गई जब मध्य प्रदेश में मंदसौर में पुलिस फायरिंग में 6 किसानों की मौत हो गई थी। पूरे देश में किसानों ने इसका अलग-अगल तरीके से किया था।

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किसानों को पेशाब पीना पड़ा

नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर तमिलनाडु के सैकड़ों किसानों ने कई दिनों तक धरना दिया। वे केंद्र सरकार से कर्ज माफी की मांग कर रहे थे। वे चाहते थे कि राज्य सरकार के साथ वो मामले में हस्तक्षेप करें। लगभग 39 दिनों तक जब सरकार ने उनके प्रदर्शन को नजरअंदाज किया तो उन्होंने अपना पेशाब पीकर विरोध प्रदर्शन किया। इससे पहले किसानों ने अपने आधे मूंछें और बाल निकाल दिए थे, चूहों और सांप अपने मुंह में दबाए रखे, रूपक अंतिम संस्कार को अंजाम दिया, खुद को कोड़े लगाए और कर्ज़‌ दबाव के कारण आत्महत्या कर चुके अन्य किसानों ने खोपड़ियां भी अपने सामने रखकर विरोध किया।

छत्तीसगढ़ का टमाटर आंदोलन

नवंबर 2016 में हुई नोटबंदी के बाद लगभग पूरे देश के किसानों का बुरा हाल था लेकिन छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए यह सबसे मुश्किल साबित हुआ। छत्तीसगढ़ में टमाटर की बंपर पैदावार हुई। टमाटर का ज़्यादा उत्पादन और नोटबंदी के बाद बाज़ार में आई मंदी का प्रभाव यह पड़ा कि यहां के किसानों को टमाटर की कीमत सिर्फ 50 पैसे प्रति किलो मिल रही थी। हताशा भरे किसानों का सब्र का बांध टूट गया और उनके गुस्से ने एक टमाटर आंदोलन को जन्म दिया। विरोध प्रदर्शन करने के लिए किसानों ने अपनी सैकड़ों टन की पूरी की पूरी टमाटर की फसल को ट्रकों के आगे सड़कों पर डाल दिया। आलम यह था कि सड़कों पर बस टमाटर ही टमाटर नज़र आ रहे थे।

तेलंगाना में किसानों ने जलाई मिर्च की फसल

28 अप्रैल को तेलंगाना की खम्मम कृषि मंडी में गुस्साए किसानों ने अपनी फसल को आग लगा दी और कुछ कार्यालायों का भी सफाया कर दिया। ये किसान मिर्च की खेती करते हैं और वे अपनी फसल के लिए सही कीमत की मांग कर रहे थे। पिछले साल जहां उनकी फसल 12,000 रुपये प्रति कुंतल बिकी थी वहीं इस साल उन्हें इसके लिए 2000 से 4000 रुपये ही मिल रहे थे। कीमतों में इतनी गिरावट से किसान हताश हो गए थे इसीलिए गुस्से में आकर उन्होंने अपनी फसल को ही आग लगा दी। हालांकि केंद्र ने आखिरकार पिछले महीने यह घोषणा की कि वह 2017 के दौरान बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत दो राज्यों से 1.22 लाख टन लाल मिर्च की खरीद करेगी, जिससे घाटे की भरपाई हो सके।

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हजारों टन दूध सड़क पर बहा दिया

1 जून 2017 को महाराष्ट्र के किसानों ने एक सरकार के खिलाफ उग्र आंदोलन की शुरुआत की और इसको नाम दिया 'किसान क्रांति'। आंदोलनकारियों ने चेतावनी दी थी कि वे एक जून से शहरों में जाने वाले दूध, सब्जी समेत अन्य उत्पाद रोकेंगे। महाराष्ट्र के किसानों में यह गुस्सा राज्य सरकार की नीतियों को लेकर है। इन किसानों की मांग है कर्ज़ से मुक्ति जबकि राज्य सरकार किसानों की भलाई के लिए कई फैसले लेने का दावा किया। किसानों का आरोप था कि अब उनके लिए खेती सिर्फ घाटे का सौदा साबित हो रही है लेकिन सरकार उनके हालात पर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रही है, किसान धीरे-धीरे कर्ज़ में डूबता जा रहा है।

किसानों को मनाने के लिए महाराष्ट्र सरकार की तरफ से कृषिमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक सभी ने कोशिश की, लेकिन इसका इन किसानों के ऊपर कोई असर नहीं पड़ा। इस आंदोलन के दौरान किसानों ने हजारों टन दूध सड़क पर बहा दिया और बाकी खाद्य उत्पादों को भी सड़क पर फेंका जिसकी कई लोगों द्वारा आलेचना भी की गई।

ऐसा नहीं है कि इन आंदोलनों पर आवाज नहीं उठी। कुछ लोगों ने इसका विरोध भी किया। तो वहीं कुछ लोगों ने इन प्रदर्शनों को राजनीति से प्रेरित बताया। इस पर भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह कहते हैं "किसान कभी किसी पार्टी या नेता के उकसावे में आकर आंदोलन नहीं करते। सरकार की कुनीतियों की वजह से किसानों को सड़कों पर उतरना पड़ता है। किसानों का यह आंदोलन राजनीति से प्रेरित नहीं है।”

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वहीं आम किसान यूनियन के अध्यक्ष और किसान केदार सिरोही कहते हैं " किसानों की बात जब सरकार नहीं सुनेगी तो किसान क्या करेंगे। सरकार किसानों को हीरो क्यों बनाना चाहती है। किसान तो कभी हिंसक नहीं होन चाहता। जब मांगें नहीं मानी जातीं तो किसानों को अलग तरीका अपनाना पड़ता है। किसान असंगठित हैं। इसलिए इनकी बातें नहीं मानी जातीं। हमें संगठित होना पड़ेगा।

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