बीआरडी में 24 घंटों में 15 बच्चों की मौत सामान्य है : सीएमएस

Update: 2017-11-06 18:28 GMT
बीआरडी में भर्ती अपने घर के बच्चे को निहारता एक बुजुर्ग, यहां आने वाले ज्यादातर लोग दुवा मांगते नजर आते हैं। फोटो- विनय गुप्ता

लखनऊ / गोरखपुर। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौत का सिलसिला जारी है। 48 घंटों में यहां 30 मासूमों की मौत हो गई। बच्चों की मौत को लेकर अस्पताल से लेकर सरकार पर सवाल उठ रहे हैं। लेकिन अस्पताल प्रशासन मौत के आंकड़े को सामान्य बता रहा है।

एक बार फिर इतने बच्चों की मौत पर सवाल करने पर बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आरएस शुक्ला ने बताया, ''मेडिकल कॉलेज में रोजाना 100 मरीज गंभीर अवस्था में आते हैं जो आईसीयू में भर्ती होते हैं। औसतन यहाँ पर 15 बच्चे मरने मरते हैं। इनमें से ज्यादातर बच्चे वो होते हैं जो तुरंत जन्म लेते हैं। ये बच्चे बहुत ज्यादा गंभीर अवस्था में होते हैं।''

अगस्त 13 अगस्त को इसी अस्पताल में 24 से 48 घंटों में डेढ़ दर्जन से ज्यादा बच्चों की मौत पर बवाल मचा था। उस दौरान उत्तर प्रदेश की योगी सरकार से लेकर केंद्र सरकार पर सवाल उठे थे। उस दौरान मामला आक्सीजन गैस की सप्लाई से जुड़ा था, जिसमें कई डॉक्टरों पर गाज गिरी थी।

हर साल आता है मौत का सीजन

पूर्वांचल में पिछले कई दशकों से अगस्त से लेकर नवंबर तक के मौसम को बच्चों के लिए मौत का सीजन कहा जाता है। एई और जेई के चलते अब तक हजारों बच्चों की जान जा चुकी है। आंकड़े बताते हैं कि बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज में वर्ष 2014 में 51 हजार 18 बच्चे भर्ती हुए थे जिनमें से 5,850 बच्चों की मौत हुई थी। अगले साल 2015 में 61 हजार 295 बच्चे भर्ती हुए थे जिनमें से 6,917 बच्चों की मौत हो गई थी।

पिछले साल 2016 में 60 हजार 891 बच्चे मेडिकल कॉलेज में भर्ती हुए थे जिनमें से 6,121 बच्चों की मौत हो गई थी। इस साल अगस्त तक प्रतिदन औसतन छह से अधिक बच्चों की मौत हुई जो यह दिखाता है कि पूर्व के वर्षों की तुलना में इस साल बच्चों की मौत के मामलों में काफी गिरावट आई है।

बीआरडी अस्पताल की फाइल फोटो।

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उन्होंने आगे बताया, ''रोज आठ से दस जिलों से रेफर होकर आते हैं उनकी हालत बहुत ज्यादा गंभीर होती है उनको भी हम लोग बचाने में असफल हो जाते हैं। हम 24 घंटो की बात करें तो औसतन 15 बच्चों की मौतें होती हैं। ये जो आंकड़ा चल रहा है इनमें सभी मौते इंसेफिलाइटिस से नहीं है। इंसेफिलाइटिस से लगभग 10-11 मौतें ही हुई हैं।''

बीआरडी मेडिकल कॉलेज से प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस वर्ष जनवरी महीने में 152 बच्चों की मौत हुई, फरवरी में 122, मार्च में 159, अप्रैल में 123, मई में 139, जून में 137, जुलाई में 128 तथा अगस्त में 325 बच्चों की मौत हुई है। सितंबर माह के पहले दो दिन की 32 मौतों को मिला लें तो इस साल अब तक मेडिकल कॉलेज में 1317 बच्चों की मौत हुई है।

अगस्त माह में बीआरडी में रोगी ज्यादा भर्ती होते हैं, क्योंकि इस दौरान केवल गोरखपुर तथा आसपास के जिलों के अलावा बिहार और नेपाल तक के रोगी भर्ती होते हैं। अगस्त 2016 में मेडिकल कॉलेज में 6,699 रोगी भर्ती हुए जिनमें से 587 रोगियों की मौत हो गई।

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गोरखपुर के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ आरएन सिंह ने बताया, ‘’जो बच्चे जन्म लेते हैं और जन्म लेने से 28 दिनों के बीच अगर पूरे देश की बात करें तो 1000 में करीब 40-50 बच्चों की मौत हो जाती है, लेकिन उत्तर प्रदेश के पूर्वी एरिया में ज्यादा है क्योंकि यहाँ पर कुपोषण, शिक्षा, गरीबी और सुविधाओं की कमीं बहुत ज्यादा है। मेडिकल कॉलेज में सबसे ज्यादा मौतें जो होती हैं वो नवजात बच्चों की ही होती हैं।‘’

डॉ आरएन सिंह ने बताया, ‘’मौतों के कारण में माँ का कुपोषित होना, प्रसव से पूर्व सभी स्वास्थ्य सुविधाओं और सलाहों का न लेना, और घर में प्रसव करवाना, घर में प्रसव करवाने के बाद जब बच्चे की हालत बिगड़ जाती है या फिर बच्चा की किसी जन्मजात बीमारी का शिकार हो जाता है तब उसे अस्पताल लेकर भागना।

कैसे होगा सुधार

सबसे पहले लोगों को खुद जागरूक होना पड़ेगा कि हम बच्चों की देखभाल कैसे करें जिससे उसे हर एक बीमारी से बचाया जा सके। लोगों को अस्पताल में ही प्रसव करवाना होगा और कुपोषण को खत्म करना होगा। एम्स यहाँ पर बनने वाला है। एम्स बनने के बाद यहाँ पर बच्चों की मौत के आंकड़ों में जरुर कमीं आएगी। गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में 500 बेड का एक बाल रोग विभाग भी बनाया जा रहा है। ये बन जाने से बच्चों के लिए सुविधाएँ बढेंगी।

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अकेले गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज के आंकड़ों के अनुसार 1978 से लेकर अब तक 39,100 इंसेफेलाइटिस के मरीज भर्ती हुए इनमें9,286 बच्चों की मौत हो गई। बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर में इन्सेफ्लाइटिस के सर्वाधिक (पूरे देश के एक तिहाई) मरीज आते हैं। यहां बस्ती, आजमगढ मंडल के अलावा बिहार और नेपाल से भी इन्सेफ्लाइटिस के मरीज आते हैं।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हर वर्ष जेई/एईएस के 2500 से 3000 मरीज बीआरडी मेडिकल कॉलेज आते हैं। अगस्त, सितम्बर और अक्टूबर में मरीजों की संख्या 400 से 700 तक पहुंच जाती है, लेकिन मेडिकल कॉलेज को कई प्रकार की समस्याओं से जूझना पड़ता है।

पांच करोड़ की आबादी में हैं मात्र एक सरकारी एनआईसीयू

डॉ आरएन सिंह ने बताया, ‘’मेडिकल कॉलेज का एनआईसीयू जो है वो लगभग पांच करोड़ की आबादी में एक मात्र सरकारी एनआईसीयू है। इसमें नेपाल, बिहार और उत्तर प्रदेश के कई जिले आते हैं, जब इन सभी जगहों से मरीज यहाँ आ जाते हैं और प्राइवेट संस्थान में भी भर्ती बच्चों की हालत बिगढ़ने पर मेडिकल कॉलेज भेज दिया जाता है। ये सभी मिलाकर कर मौतें ज्यादा हो जाती हैं। ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि सिर्फ मेडिकल कॉलेज के ही बच्चों की मौतें होती हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं की कमीं तो रहती है लेकिन मरीजों का दबाव ज्यादा है इस वजह से मौतों का आंकड़ा बढ़ जाता है।‘’

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एक तरफ इतनी बड़ी संख्या में बच्चें यहां इलाज के लिए आ रहे हैं तो दूसरी तरफ बाल रोग विभाग के पास चार वार्डों में सिर्फ 228 बेड ही उपलब्ध हैं। मेडिकल कॉलेज में इलाज के लिए आने वाले इन्सेफ्लाइटिस मरीजों में आधे से ज्यादा मरीज आधे बेहोश होते हैं और उन्हें तुरन्त वेंटीलेटर की आवश्यकता होती है। यहां पर बाल रोग विभाग आईसीयू में 50 बेड हैं।

वार्ड संख्या 12 में कुछ वेंटीलेटर हैं। एसएनसीयू में सिर्फ 12 वार्मर हैं, जबकि यहां जरूरत 30 से अधिक वार्मर की है। वार्मर की कमी के कारण एक-एक वार्मर पर चार-चार बच्चों को रखना पड़ता है, जिससे एक दूसरे को संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

स्वास्थ्य शिक्षा महानिदेशक उत्तर प्रदेश डॉ के के गुप्ता ने बताया, “ये मौसम ऐसा है जो बीमारियों का मौसम है जिनमें बच्चों की मौते हो रही हैं। गोरखपुर मेडिकल कॉलेज पूर्वी उत्तर प्रदेश में हैं जहां पर बीमारियां ज्यादा हैं। वैसे वहां पर आठ नौ से लेकर 22 तक रोज बच्चे मरने के आंकड़े हैं तो आंकड़ा बिल्कुल सामान्य है।‘’

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