बुंदेलखंड से ग्राउंड रिपोर्ट : मुआवज़े की मांग करते-करते फिर किसान ने तोड़ा दम
बुंदेलखंड के महोबा के डॉ. बीआर अंबेडकर पार्क में जिले के 18 गाँवों के लगभग 2 हजार किसान बीती 11 अगस्त से सरकार के खेतिहर जमीन के बदले चार गुना मुआवजे देने का वादा पूरा न करने के खिलाफ धरना दे रहे थे।
महोबा। सरकार से पिछले दस सालों से अपनी खेतिहर ज़मीन के बदले चार गुना मुआवजे और नहर की आस लगाए बैठे बुंदेलखंड के किसानों का गुस्सा प्रदर्शन कर रहे एक और किसान की मौत के बाद और भड़क उठा है।
महोबा के डॉ. बीआर अंबेडकर पार्क में जिले के 18 गाँवों के लगभग 2 हजार किसान बीती 11 अगस्त से सरकार के खेतिहर जमीन के बदले चार गुना मुआवजे देने का वादा पूरा न करने के खिलाफ धरना दे रहे थे। धरना देते समय ही 23 अगस्त को किसान मैयादीन की दोपहर में तबियत ख़राब हो गयी। अस्पताल ले जाने से पहले ही रास्ते में किसान ने दम तोड़ दिया।
मौत के बाद 12 दिनों से खामोश बैठा जिला प्रशासन तुरंत हरकत में आ गया और किसानों के तम्बू उखाड़ फेंके। कुछ किसानों को अस्पताल में भर्ती करा दिया गया। किसान नेता को जेल में डाल दिया गया। इस तरह अपनी मांगों को लेकर धरना दे रहे किसानों के आन्दोलन को कुचल देने का प्रयास हुआ।
अब लखनऊ में धरना देनेे की तैयारी
अब महोबा के इन 18 गाँवों के किसान अब प्रदेश की राजधानी में धरना देने की तैयारी कर रहे हैं। इस बारे में भारतीय किसान यूनियन के किसान नेता निरंजन सिंह राजपूत कहते हैं, "जितने किसानों की जमीन ली गयी है, वे सभी अपनी मांगों को लेकर अब लखनऊ जाने की तैयारी में हैं। हमारे साथ अन्याय हुआ है। जमीन लेते समय सरकार ने कहा था कि सर्किल रेट का चार गुना मुआवजा दिया जायेगा, लेकिन अभी तक एक गुना ही दिया गया है। अब हम लखनऊ जाकर इसकी मांग करेंगे।"
यह भी पढ़ें: पत्थलगड़ी: विरोध का नया तरीका या परंपरा का हिस्सा, आखिर क्या है पत्थलगड़ी?
इससे पहले उचित मुआवजे की मांग को लेकर महोबा के ही झिर सहेवा गाँव के एक किसान राममिलन ने करीब डेढ़ साल पहले आत्मदाह कर लिया था। तब से लेकर अब तक किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है।
एक ही बेटी की शादी हो पाई
"बाऊ जी चाहते थे कि मेरी तीनों बेटियों की शादी उनके रहते हुए हो जाये। लेकिन मुआवजे का जो पैसा मिला था उससे एक ही बेटी की शादी हो पाई। बाकी के बचे पैसे तो कर्ज चुकाने में ही ख़त्म हो गये। लेकिन बाऊ जी की इच्छा पूरी नहीं हो पाई और वे हमें छोड़कर चले गये।" इतना कहते-कहते राजबहादुर फफक पड़े।
मजदूर राजबहादुर कुशवाहा (45 वर्ष) के पिता किसान मैयादीन कुशवाहा (72 वर्ष) की बीती 23 अगस्त को महोबा में उस समय मौत हो गई, जब वे अपने खेत के मुआवजे के लिए अन्य किसानों के साथ धरने पर बैठे थे। योजना में उनकी 4.5 बीघा जमीन ले ली गयी। राज बहादुर अब भूमिहीन हैं।
यह भी पढ़ें: 295 किसान परिवारों का 2 करोड़ रुपए का कर्जा भरेंगे अमिताभ बच्चन
वर्ष 2009 में अर्जुन सहायक परियोजना की शुरुआत की गई थी। इस परियोजना में 2150 हेक्टेयर जमीन नहर निर्माण के लिए अधिग्रहित की जानी थी। इसमें 550 हेक्टेयर जमीन आपसी समझौते के आधार पर ले ली गई जबकि 1600 हेक्टेयर जमीन नहर की खुदाई के लिए अधिग्रहीत की जानी थी, जिसके चलते मुआवजा आड़े आ गया और काम अब भी रुका है।
वर्ष 2009 में 850 करोड़ रुपए की लागत से शुरू हुई इस परियोजना 2015 में पूरा होना था। लागत बढ़कर 2593.93 करोड़ पहुंच गयी। बजट के अभाव में दो साल से परियोजना का कार्य अधर में लटका था। योगी सरकार ने 161 करोड़ का बजट पास करके काम आगे बढ़ाने के प्रयास किया। इस परियोजना में 90 प्रतिशत पैसा केंद्र सरकार और 10 प्रतिशत पैसा राज्य सरकार को व्यय करना था लेकिन किसानों को मांग के मुताबिक मुआवजा न मिलने से नहर का निर्माण कार्य बंद पड़ा है।
अतिरिक्त मुआवजा भी नहीं दिया
महोबा के थाना कबरई के राम भरोसे (55) कहते हैं, "2010 में जिला प्रशासन ने मेरी 20 बीघे जमीन को 87 हजार प्रति बीघा के हिसाब से ले लिया। आज उसी जमीन की कीमत 9 से 10 लाख रुपए हो गयी है। अभी एक किसान ने मेरे बगल के खेत को इसी रेट में लिया, उसे भी अतिरिक्त मुआवजा नहीं दिया गया, हमें नियमानुसार लाभ नहीं मिला। मेरे पास अब जमीन भी नहीं है और इतने पैसे भी नहीं हैं कि आगे का जीवन कट जाये।"
कबरई के ही 28 वर्षीय गया प्रसाद मजदूरी करते हैं। साल 2015 में 7.5 बीघा खेत को सरकार ने योजना के लिए 2.30 लाख रुपए प्रति बीघा के हिसाब से खरीद लिया और उसी साल उनके पिता रामसेवक की भी मौत हो गयी। गया बताते हैं, " मेरे पिताजी को तो बताया ही नहीं गया था कि सर्किल रेट से चार गुना ज्यादा पैसा मिलता है। मुझे अब पता चला। इसलिए मैं मजदूरी छोड़कर अपने हक़ की मांग कर रहा हूं ताकि बूढी होती मां के लिए कुछ रुपए रख सकूँ।"
धरौना गाँव के मल्टू (70) कहते हैं, "पहले मैं किसान था और अब मजदूरी करता हूं। मेरे साथ पांचों बेटे भी मजदूरी कर रहे हैं। सरकार ने जमीन लेते समय वादा किया था कि उन्हें चार गुना मुआवजा दिया जायेगा। उस समय के डीएम ने आश्वासन दिया था कि अभी एक गुना ले लीजिये, बाकि बाद में मिलेंगे। लेकिन 5 साल बाद भी कोई सुनवाई नहीं है जबकि हमने न जाने कितनी बार अधिकारियों से गुहार लगायी।"
इस मामले में कुछ भी होना मुश्किल है। मार्च 2015 के बाद जिनकी जमीन ली जा रही है, उन्हें चार गुना सर्किल रेट (ग्रामीण) दिया जा रहा है। - सर्वेश कुमार श्रीवास्तव, अधीक्षण अभियन्ता, सिंचाई निर्माण मण्डल, महोबा
मृतक किसान मैयादीन के बेटे राजबहादुर का कहना है, "बाऊजी अनपढ़ थे। उनसे जमीन बैनामा करा लिया गया। हम वर्षों से उचित मुआवजे की मांग कर रहे हैं लेकिन हमारी कोई सुनवाई ही नहीं हो रही है।"
वहीं इस मामले में जिला कलेक्टर सहदेव कहते हैं, "मेरे हाथ में कुछ नहीं है। सरकार जो फैसला करेगी वैसा ही होगा। किसानों से मेरी कई बार बात हो चुकी है। मैंने उन्हें समझाया भी है। अब आगे देखते हैं कि क्या हो सकता है।"
दूसरी ओर, अधीक्षण अभियन्ता (सिंचाई निर्माण मण्डल महोबा) सर्वेश कुमार श्रीवास्तव गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "मैंने ऊपर तक बात कर ली है, इस मामले में कुछ भी होना मुश्किल है। मार्च 2015 के बाद जिनकी जमीन ली जा रही है, उन्हें चार गुना सर्किल रेट (ग्रामीण) दिया जा रहा है।"