तस्वीरों में देखिए झारखंड के आदिवासी गांव Photos 

Update: 2018-04-23 10:00 GMT
झारखंड के पाकुर ज़िले के ग्रामीण क्षेत्र में शादी में वायलिन बजाते कलाकार (सभी फोटो- अभिषेक वर्मा)

अगर आप कभी झारखंड नहीं गए हैं तो संभव है कि इसका नाम यहां की खानों या फिर नक्सलियों के चलते सुना हो। लेकिन आदिवासी बाहुल्य ये राज्य अपने अंदर गजब की खूबसूरती समेटे हुए है। यहां की संस्कृति और पर्व त्योहार सब कुछ आपका मन मोह लेगा। गरीबी से लड़ते झारखंड के गांव आपको सुकून देंगे।

यहां के रीति रिवाज़ दुनिया से अलग हैं। वैसे तो आदिवासी महीने में कई त्योहार मनाते हैं, लेकिन सरहुल इनका मुख्य त्योहार है। अगर आप भारत के इस 28वें राज्य तक नहीं पहुंच पाएं हैं, यहां के गांव और जीवन से रूबरू नहीं हो पाएं हैं तो गांव कनेक्शन के फोटो जर्नलिस्ट अभिषेक वर्मा ने झारखंड को अपने कैमरे में कैद करने की कोशिश की है। देखिए गांव कनेक्शन की फोटो गैलरी

पूजा के लिए जल ले जाती महिलाएं। 
गेहूं की फसल काटने खेत जा रही महिलाएं साथ में गर्मी से बजने के लिये सर भी ढक रखी हैं।
पाकुड़ जिले के लिट्टीपारा ब्लाक के मुकरी गांव में जहां पीने के पानी के लिय़े सिर्फ यही एक कुआं हैं।
एक तरफ जहां हम डिब्बा बंद खाना खाने लगे हैं वहीं झारखंड की महिलाऐं आज भी मसाला ईमाम दस्ता में पीसती हैं।
मिट्टी के चूल्हे में खाना पकाती महिला।
बाज़ार से सामान लाने के लिए दूर तक पैदल चलना पड़ता है शायद  इसीलिए सर पर रख के लाना ज्यादा आसान है।
धान-गेंहू रखने के लिए लकड़ी के बड़े-बड़े बक्से नुमें बनाये जाते है जिसमें पानी धूप से बचने के पूरे इंतेजाम रहते हैं।
पशुपालन और खेती पर यहां लोगों की ज़िदंगी निर्भर है।
सरकारी सोलर लैंम्प का लाभ अधिकतर विधायलों के बच्चों को मिला है।
पढाई को लेकर अब की पीढ़ी ज्यादा जागरूक है।
सोलर लैम्प को धूप में चार्ज करते हुए।
आदिवासी घरों की सुदंरता शहर के महंगे घरों से कम नहीं हैं।
स्टोन क्रशर से हुए बड़े-बड़े गड्ढों में बारिश का जमा पानी लोगों की रोजमर्रा की ज़िंदगी में सहूलियत दे रहें हैं। 

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लगभग हर घर में मुर्गी और बकरी पालन होता  है।
घरों की दीवारों को इस तरह बनाया गया है कि उसमें मुर्गी आराम से रह सकती है।
प्याज की फसल काफी मात्रा में होती है।
घरों के बाहर इस तरह की डीजाईन शुभ मानते है यहां के लोग।
स्टोन क्रशिंग यहां सबसे बड़ा रोज़गार का साधन है।
पीने का पानी दूर से लाना पड़ता है इसलिए एक बार में अधिक से अधिक पानी ले आते हैं गांव वाले।

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