कर्नाटक: प्रवासी मजदूरों के लिए प्रस्तावित ट्रेंन रद्द, अब मजदूरों-किसानों के दर्द पर आर्थिक मदद का 'मरहम'

Update: 2020-05-06 10:52 GMT

कर्नाटक में प्रवासी मजदूरों के लिए चलाई जाने वाली ट्रेनों को रद्द करने वाली बी एस येदियुरप्पा सरकार को सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा रहा है। मजदूर संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता सरकार के इस कदम की निंदा कर रहे हैं। वहीं कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदुयरप्पा ने कहा है कि निर्माण क्षेत्र में जुटे मजदूरों की आर्थिक मदद करेगी। सरकार ने मजदूरों को 3000 रुपए अतिरिक्त देने का ऐलान किया है तो नाई,धोबी और ट्रैक्सी ड्राइवर के लिए कई घोषणाएं की हैं। लॉकडाउन के चलते नुकसान उठाने वाले फूलों के किसानों को भी सरकार ने मदद का ऐलान किया है।

कर्नाटक में 6 मई से 10 मई तक रोज 2 ट्रेने प्रवासी मजदूरों के लिए चलाई जानी थी, लेकिन 5 मई को कर्नाटक में प्रमुख सचिव एन मंजूनाथ प्रसाद ने दक्षिणी पश्चिमी रेलवे (हुबली) के जनरल मैनेजर को खत लिखकर कहा कि उन्हें ट्रेनों की अब आवश्यकता नहीं है। इसलिए ये ट्रेने रद्द कर दी जाए। पूर्व सूचना के अनुसार बैंगलौर से 6 मई को तीन ट्रेनों को बिहार के लिए रवाना होना था। बैंलगौर से मंगलवार को एक ट्रेन करीब 1200 प्रवासी मजदूरों को लेकर राजस्थान के जयपुर रवाना हुई थी, लेकिन अब बिहार, झारखंड, यूपी और दूसरे राज्यों के प्रवासी कामगारों और मजदूरों के घर वापसी मुश्किल हो गई है।

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कर्नाटक के प्रमुख सचिव के द्वारा रेलवे को लिखा पत्र, जिसमें ट्रेन रद्द करने की बात कही गई है।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा ने कहा है कि उनकी सरकार निर्माण के क्षेत्र में पंजीकृत 15.80 लाख मजदूरों को 3000-3000 रुपए की मदद करेगी। अपने ट्वीटर पर सीएम ने लिखा कि 3000 रुपए की ये मदद पहले इन श्रमिकों के खातों में भेजे गए 2000 रुपए से अतिरिक्त है।

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मंगलवार को मुख्यमंत्री कार्यालय के ट्वीटर हैंडल से बताया गया कि मुख्यमंत्री के साथ बिल्डरों की बैठक में प्रवासी मजदूरों को लेकर चर्चा हुई है। रेड जोन को छोड़कर बाकी जगहों पर निर्माण और औद्योगिक कार्य शुरू हो गए हैं। ऐसे में मजदूरों के लिए गैरजरुरी यात्रा नियंत्रित की जाएगी। बिल्डरों ने भरोसा दिलाया है कि वो मजदूरों और कामगारों को सभी आवाश्यक सुविधाएं देंगे। मंत्रियों को निर्देश दिए गए हैं कि वो प्रवासी मजदूरों को उनके राज्यों में न जाने के लिए मनाएं। मजदूरों के लिए आवश्यक कदम भी उठाए जाएंगे। बैंगलोर रीयल स्टेट हब के रूप में जाना जाता है। खनन और निर्माण में यहां लाखों मजदूर कार्यरत हैं।  बैंगलुरू टाइम्स के मुताबिक कर्नाटक में बैंगलुरु समेत दूसरे क्षेत्रों में कार्यरत दूसरे राज्यों के 2.4 लाख मजदूरों अपने घर जाने के लिए आवेदन किया है।

कर्नाटक में प्रवासी मजदूर काफी परेशान हैं क्योंकि पिछले डेढ़ महीने से उनके पास काम और पैसे दोनों नहीं हैं। यूपी, बिहार, असम, झारखड, पश्चिम बंगाल के बहुत सारे लोग वापस जाना चाहते हैं लेकिन सरकार जाने नहीं दे रही है, क्योंकि यहां बैंगलुरु मेट्रो का काम पहले से जारी था और अब हाउसिंग साइट (कंस्ट्रशन) पर काम शुरु हो गया है।" सुधा, सामाजिक कार्यकर्ता, हम भारत के लोग

बैंगलुरू में पिछले डेढ़ महीने से मजदूर और लॉकडाउन से प्रभावित दूसरे लोगों की मदद करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता सुधा फोन पर बताती हैं, "कर्नाटक में प्रवासी मजदूर काफी परेशान हैं क्योंकि पिछले डेढ़ महीने से उनके पास काम और पैसे दोनों नहीं हैं। यूपी, बिहार, असम, झारखड, पश्चिम बंगाल के बहुत सारे लोग वापस जाना चाहते हैं लेकिन सरकार जाने नहीं दे रही है, क्योंकि यहां बैंगलुरु मेट्रो का काम पहले से जारी था और अब हाउसिंग साइट (कंस्ट्रशन) पर काम शुरु हो गया है। हमने लॉकडाउन के दौरान करीब 15 हजार मजदूरों और प्रवासी लोगों की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्षतौर मदद की है। तो मैं समझ सकती हूं कि वो किस हाल में हैं।" सुधा, सामाजिक संगठन हम भारत के लोग और मजदूर किसान संगठन से जुड़ी हैं।

सुधा बताती हैं, "कल मैं मार्केट गई थी तो मुझे यूपी के तीन लड़के (मजदूर) मिले जो साइकिल खरीदने आए थे, ताकि वो यूपी के इलाहाबाद पैदल जा सके। वो जिस फैक्ट्री में काम कर रहे थे वहां उन्हें पैसे नहीं मिल रहे और उनके पास अब जो पैसे हैं अगर उन्होंने खाने में खर्च कर दिए तो आगे क्या होगा? ऐसे बहुत सारे लोग हैं। दूसरी बात सरकार अगर निर्माण मजदूरों को पैसे देने की बात कह रही है तो संख्या काफी कम बता रहा है,जितने मजदूर सरकार के पास रजिस्टर्ड हैं उससे कहीं ज्यादा ऐसे हैं जो किसी रजिस्टर में नहीं है क्योंकि उन्हें जानकारी नहीं है।"

सिर्फ कर्नाटक ही देश के लगभग सभी राज्यों में ऐसे मजदूर और और कामगार की संख्या लाखों में हैं जो पंजीकृत नहीं है। उन्हें ये भी नहीं पता कि कि इस मुश्किल वक्त में घर कैसे पहुंचना है। उत्तर प्रदेश के मथुरा और हाथरस जिले में रहने वाले 5 मजदूर बैंगलूर में फंसे हुए हैं। प्रवासी मजदूरों की मदद के लिए फेसबुक पर बनाए गए कोरोना वरियर्स ग्रुप में एक दीपक अवस्थी नाम के व्यक्ति इन मजदूरों के पंतर पलिया मसहूर रोड सिप्ला फार्म बैंगलोर में फंसे होने की और खाना उपब्लध कराने किए पोस्ट लिखी थी। गांव कनेक्शन ने दिए नंबरों पर फोन किया तो कैलाश यादव से बात हुई तो हाथरस में मुरसान ब्लॉक के चंद्रपा गांव के रहने वाले हैं।

कैलाश बताते हैं, हम पांच लोग 7 मार्च ये यहां फंसे हैं, कुछ दिन खाना मिला था लेकिन अब हम अपने पैसे से राशन का इंतजाम कर रहे हैं। हमें अपने घर जाना है, क्योंकि हम जिस फैक्ट्री में काम करते थे वहां काम तो शुरु हुआ है लेकिन ठेकेदार हमारे पुराने पैसे ही नहीं दे रहा है। घर कैसे जाएं ये समझ नहीं आ रहा है।'

कैलाश और उनके साथियों को ये भी नहीं पता कि कोई ट्रैन प्रवासी मजदूरों के लिए चलाई जाने वाली थी जो अब कैंसल हो गई है।

बैंगलौर में रहने वाली एक और सामाजिक कार्यकर्ता कविता श्रीकृष्णन ने फोन पर कहा, "मैं तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी मजदूरों की फोन पर मदद कर रही हूं। हमारा एक ग्रुप ऐसे मजदूरों के लिए पास बनवाने और उन्हें राज्यों तक भिजवाने में मदद कर रहा है। कई जगह ऐसा हो रहा है जैसे सरकारें नहीं चाहती हैं कि दूसरे राज्यों का लेबर जाए, क्योंकि इनता सस्ता लेबर उन्हें मिलेगा नहीं। अब फैक्ट्री और दूसरे काम शुरु हो रहे हैं तो उनकी जरुरत है। लेकिन इस दौरान सरकारें मजदूरों की जरुरतों को पूरा करने में नाकाम रही हैं।"

येदियुरप्पा सरकार ने ये उठाए हैं कदम

फूलों की खेती करने वालों को 25000 रुपए प्रति हेक्टेयर मुआवजा

6 मई को मुख्यमंत्री ने अपने ट्वीटर पर लिखा की लॉकडाउन में राज्य में फूलों की खेती करने वाले किसानों को भारी नुकसान हुआ, इसकी भरपाई के लिए सरकार किसानों को प्रति हेक्टयेर 25000 रुपए का मुआवजा देगी। सरकार के मुताबिक इससे राज्य में 11687 हेक्टेयर में फूलों की खेती होती है।

नाई और धोबी को 5000 रुपए की आर्थिक मदद

कर्नाटक सरकार लॉकडाउन में अपनी आजीविका गंवाने वाले नाई और धोबी जैसे कामकारों को एक बार 5000 रुपए की आर्थिक मदद करेगी, सरकार के मुताबिक इससे 60,000 धोबी और दो लाख 30 हजार नाईयों को फायदा मिलेगा। 


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