जलवायु परिवर्तन से लड़ने में किसानों की मदद करेगा ये केंद्र

ये केंद्र जीपीएस टैगिंग की मदद से जलवायु परिवर्तन से लगने वाले कीट-पतंगे और बीमारियों पर नजर रखेगा...

Update: 2018-10-17 07:37 GMT

नई दिल्ली। कृषि क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से होने वाली अनियमितताओं से किसानों को परेशान होने की जरूरत नहीं है, जल्द ही उन्हें जलवायु परिवर्तन से होने वाली बीमारियों और कीटों की जानकारी मिलती रहती रहेगी।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टिट्यूट फॉर द सेमी एरिड ट्रॉपिक्स (ICRISAT) हैदराबाद में उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना की है। इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन की अनियमितताओं के लिए कृषि को अधिक जागरूक बनाना है।


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केंद्र जीपीएस टैगिंग की मदद से कीट और बीमारियों पर नजर रख सकेंगे। यह पौधों की बीमारियों और कीट-पतंगों के किसी भी बदलाव की चेतावनी दे देगा। इसके अलावा, ये भविष्य में जलवायु परिवर्तन की भविष्यवाणी पर करेगा और जोनल, क्षेत्रीय और राज्य स्तर पर रोग व कीट-पतंगों के लिए जीआईएस आधारित जोखिम मानचित्र विकसित करेगा।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सलाहकार और जलवायु परिवर्तन के प्रमुख डॉ. अखिलेश गुप्ता द्वारा इस केंद्र की शुरूआत की गई है। इक्रीसेट के कार्यकारी महानिदेशक डॉ. पीटर कैरेबेरी कहते हैं, "छोटे-छोटे किसानों के लिए उन्नत सूचना और उपकरण उपलब्ध कराना अब जरूरी हो गया है।"

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संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की जलवायु परिवर्तन पर जारी की गई ताजा रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि वैश्विक तापमान उम्मीद से अधिक तेज गति से बढ़ रहा है। कार्बन उत्सर्जन में समय रहते कटौती के लिए कदम नहीं उठाए जाते तो इसका विनाशकारी प्रभाव हो सकता है।


ग्लोबल वॉर्मिंग से बुरी तरह प्रभावित होने वाले देशों में भारत भी शामिल होगा, जहां बाढ़ तथा सूखे जैसी आपदाओं के साथ-साथ जीडीपी में गिरावट भी हो सकती है। मानवीय गतिविधियों की वजह से वैश्विक तापमान (औद्योगिक क्रांति से पूर्व की तुलना में) पहले ही एक डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ गया है। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि इसी दर से धरती गरम होती रही तो वर्ष 2030 और 2052 के बीच ग्लोबल वार्मिंग का स्तर बढ़कर 1.5 डिग्री तक पहुंच सकता है।

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एशिया एक्रीसेट के कार्यक्रम निदेशक डॉ. पीएम गौर इस बारे में बताते हैं, "पौधों की बीमारियों और कीट-पतंगों में बदलते स्वरूप पर अनुसंधान किया जाएगा, इसके बाद जलवायु से होने वाले बदलाव की स्थिति के बाद क्रॉप ब्रीडिंग कार्यक्रमों को मजबूत करेगा और इससे हमें कीट प्रतिरोधी फसलों की किस्मों को पहचानने में भी मदद मिलेगी।"

ये केंद्र एक संघ की तरह काम करेगा, इसके सहयोगी के रूप में केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय रायचूर, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, तमिलनाडू कृषि विश्वविद्यालय, जो कि कृषि क्षेत्र में काम कर रहे हैं।

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जलवायू परिवर्तन के वर्तमान अनुमान वैश्विक रूप से में 2025 तक वार्षिक तापमान एक डिग्री सेल्सियस और 2100 तक तीन डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। बारिश के पैटर्न में बदलाव की वजह से नए कीट और बीमारियों की संख्या बढ़ गई है। जलवायु परिवर्तन से पौधों में लगने वाली बीमारियों व कीटों से वार्षिक 8.6 अरब डॉलर का नुकसान होगा।

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