कोरोना वैक्सीन को लेकर भ्रम दूर करने की कोशिश, एईएफआई के सलाहकार ने ट्विटर पर दिए सवालों के जवाब

टीकाकरण के बाद प्रतिकूल घटनाओं को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर बनी एईएफआई समिति के सलाहकार डॉ. एनके अरोड़ा ने आज कोरोना वैक्सीन को लेकर लोगों के मन में उपज रहीं कई भ्रांतियों को दूर किया। डॉ. अरोड़ा ने जानकारी दी कि आखिर कोरोना मरीजों के कम होते मरीजों के बावजूद क्यों टीका लगाया जाना जरूरी है, पढ़िए रिपोर्ट ...

Update: 2021-02-05 11:12 GMT
कोरोना वैक्सीन को लेकर राष्ट्रीय एईएफआई समिति के सलाहकार डॉ. एनके अरोड़ा ने दिया लोगों के सवालों के जवाब।

"ये सवाल अक्सर पूछे जाते हैं कि बीमार लोगों को वैक्सीन लेना चाहिए कि नहीं लेना चाहिए। मैं बताना चाहता हूँ कि जिन लोगों को पहले से गंभीर बीमारियाँ हैं और उन्हें कोरोना का इन्फेक्शन भी है, तो ऐसी स्थिति में मृत्यु या आईसीयू में एडमिट होने की संभावना 15 से 20 गुना बढ़ जाती है, ज्यादातर ये लोग 50 वर्ष के ऊपर होते हैं, और इन सबको कोरोना की ये वैक्सीन दी जा सकती है," टीकाकरण के बाद प्रतिकूल घटनाओं को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर बनी एईएफआई समिति के सलाहकार डॉ. एनके अरोड़ा ने कहा।

कोरोना टीकाकरण को लेकर लोगों के मन की भ्रांतियों को दूर करने के लिए 5 फ़रवरी को स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से राष्ट्रीय एईएफआई समिति के सलाहकार और आईसीएमआर में ऑपरेशंस रिसर्च ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. एनके अरोड़ा ने ट्विटर पर लाइव चैट कर कोरोना वैक्सीन को लेकर लोगों के सवालों के जवाब दिए।

गंभीर रोगियों को वैक्सीन दिए जाने के सवाल पर डॉ. एनके अरोड़ा ने कहा, "जो भी बीमारी आपको है और जो दवाएं लेते हैं, उन्हें वैसे ही लेते रहें क्योंकि उन दवाओं का इस पर वैक्सीन का कोई प्रभाव नहीं होता है," सवालों के जवाब के बीच डॉ. एनके अरोड़ा ने कुछ बीमारियों का जिक्र भी किया।

डॉ. एनके अरोड़ा ने बताया कि कुछ बीमारियों में व्यक्ति को खून पतला करने की दवाएं दी जाती हैं, तो ऐसे लोगों को भी वैक्सीन दी जा सकती है, बस जो आपको वैक्सीन लगाए उसे ज़रूर बताएं कि आप कौन सी दवाएं लेते हैं, और वैक्सीन लगने के बाद यदि रक्तस्त्राव होता है तो उसका इलाज किया जा सकता है, उससे परेशान होने की जरूरत नहीं है।   

"इसी तरह किसी को दमा या पुरानी सांस की बीमारी है, इन व्यक्तियों को भी कोरोना वैक्सीन लगाई जा सकती है। बहुत से लोगों को फेफड़ों की बीमारी बहुत ज्यादा होती है इसलिए ऐसे व्यक्तियों को भी वैक्सीन ज़रूर लगवानी चाहिए," डॉ. एनके अरोड़ा ने बताया। 

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इससे इतर अब तक कई राज्यों में टीका लगने के बाद 22 लोगों की मौत की ख़बरें भी सामने आ चुकी हैं। हालाँकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इन मौतों का टीकाकरण से कोई संबंध न होने की बात कही है। इस बीच देश के जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों और डॉक्टर्स ने 31 जनवरी को स्वास्थ्य मंत्रालय को पत्र लिख कर इन मौतों के पीछे छिपे कारणों की जांच करने की अपील की है। ट्विटर पर लाइव चैट के दौरान इन मौतों पर जांच को लेकर भी सवाल पूछे गए, मगर इस सवाल पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया।  

इस दौरान कोवैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल को लेकर भी सवाल पूछा गया कि कोवैक्सीन के तीसरे चरण के डाटा आए बिना टीकाकरण के लिए मंजूरी क्यों दी गयी? क्या इस बीच कोविशील्ड वैक्सीन दिया जाना ही बेहतर नहीं होगा?

इस सवाल के जवाब में डॉ. एनके अरोड़ा ने कहा, "जब कोई वैक्सीन बाजार में आती है तो उससे पहले तीन चीजों को देखना होता है, पहली वैक्सीन बिल्कुल सुरक्षित होनी चाहिए, दूसरा यह देखना कि प्रोटेक्टिव एंटी बॉडीज उचित मात्रा में पैदा होती हैं कि नहीं और तीसरा यह कि अगर हम लोगों को वैक्सीन देते हैं तो कितने प्रतिशत सुरक्षा हो सकेगी।"

"वैक्सीन के तीनों ट्रायल में यह तीनों बातें ही आधार होती हैं, यहाँ मैं आपको आश्वस्त करना चाहूँगा कि कोविशील्ड में यह डाटा उपलब्ध है लेकिन कोवैक्सीन में पहले दो डाटा उपलब्ध हैं यानी कि यह वैक्सीन सुरक्षित है और दूसरा इसमें एंटी बॉडी बहुत अच्छी पैदा होती हैं, यह भी देखा गया है कि कोवैक्सीन में बाकी वैक्सीन की तुलना में ये एंटी बॉडीज़ ज्यादा हैं," डॉ. एनके अरोड़ा ने कहा। 

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एक अन्य सवाल के जवाब में डॉ. अरोड़ा ने बताया कि रेगुलेटर्स के पास ये नियम हैं, क्योंकि यह एक अलग स्थिति है और लोगों की असामयिक मृत्यु हो रही है, ऐसे समय में सिर्फ एक वैक्सीन से हमारी सप्लाई पूरी नहीं हो रही है, इसलिए कोवैक्सीन को सप्लीमेंट के तौर पर लिया गया है। "मैं आश्वस्त कर दूँ कि वैक्सीन के लिए कोई भी शॉर्टकट नहीं लिया गया है, जो सारी वैज्ञानिक प्रक्रिया है, उन्हें पूरा किया गया है और उसके बाद ही दोनों वैक्सीन को अनुमति दी गयी है," उन्होंने कहा।

सितम्बर में कोरोना संक्रमण का शिकार हो चुके एक व्यक्ति ने पूछा कि क्या उन्हें टीका लगवाने की जरूरत है और एंटीबॉडीज कितने समय तक चलते हैं?

जवाब में डॉ. एनके अरोड़ा ने कहा, "आपको टीका ज़रूर लगवाना चाहिए, क्योंकि हमने भारत के लोगों में देखा है कि जिन लोगों को कोविड का संक्रमण हुआ है, उनमें से एक तिहाई लोगों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली एंटी बॉडीज़ पैदा नहीं होती हैं, और ये प्रतिरोधक क्षमता पैदा भी हुईं तो कितने दिन चलेगी इसका भी अंदाजा नहीं है, इसलिए यह बहुत जरूरी है कि ऐसे लोगों को कोरोना वैक्सीन की दोनों खुराक लेनी चाहिए।"   

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देश में कोरोना के कम होते मामलों और कोरोना मरीज़ों की घटती संख्या के बीच कोरोना टीकाकरण अभियान चलाने की आवश्यकता और वायरस के कम होते प्रभाव को लेकर भी राष्ट्रीय एईएफआई समिति के सलाहकार डॉ. अरोड़ा ने लोगों के मन की भ्रांतियों को दूर किया।

एक वीडियो में डॉ. एनके अरोड़ा बताते हैं, "किसी भी वायरस का इन्फेक्शन ऊपर और नीचे किसी लहर की तरह होता है, कभी यह बहुत ऊपर जाता है और कभी यह नीचे होता है, हर एक वायरस इसी तरह से व्यवहार करता है। जब सबसे कम इन्फेक्शन हो तो वायरस कमजोर होता है, और अगर उस समय हम अच्छी तरह से टीकाकरण करें तो वायरस को सिर उठाने का दोबारा मौका उतना नहीं होता है।"  

भारत में पांच फरवरी तक कोरोना संक्रमण के कुल सक्रिय मामलों की संख्या घटकर 1.51 लाख पर आ गयी है और भारत प्रति दस लाख की आबादी पर सक्रिय मामलों और मौतों के मामले में विश्व में सबसे कम आंकड़ा दर्ज करने वाले देशों में शामिल हो गया है।

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