वुहान से लौटे दंपति ने कहा- खाने में बचा था केवल नमक और चावल, बेटी को एक टाइम ही दूध मिल रहा था वह भी पाउडर वाला

इस समय दुनिया भर में हर चेहरे पर कोरोना का खौफ़ है, अगर पास में खड़ा व्यक्ति छींक दे तो लोग चौकन्ने हो जाते हैं। वुहान वो चर्चित और कुख्यात शहर है जहां से कोरोना वायरस फैलने की शुरुआत हुई। चीन में इस वायरस को लेकर कब क्या-क्या हुआ? वहां के लोगों को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा? जानिए वुहान में रहने वाले इस भारतीय दंपति से ...

Update: 2020-03-19 11:40 GMT

 "वुहान में दिसंबर के दूसरे सप्ताह से थोड़ी बहुत किसी फ्लू के आने की खबर हो गयी थी, पर यह फ्लू इतना विकराल रूप धारण कर लेगा इसका किसी को अंदाजा नहीं था।"

ये शब्द उन महेंद्र कुमार (46 वर्ष, बदला हुआ नाम) के हैं जो 19 जनवरी से 25 फरवरी तक वुहान शहर में अपने फ़्लैट में कोरोना के डर से आईसोलेशन (पूरी तरह से अलग रहना) में रहे। जबकि इनकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव थी। इन्होंने राहत की सांस तब ली जब इन्हें परिवार सहित 26 फरवरी को भारत के लिए रवाना किया गया।

महेंद्र ने वुहान के मुश्किल हालातों का जिक्र करते हुए गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया, "कोरोना के कहर से यहां का माहौल इतना डरावना हो गया था कि हर कोई यहां से निकलना चाहता था। मेरे पास फरवरी के तीसरे सप्ताह में खाने के लिए केवल चावल, जीरा और नमक ही बचा था। बेटी के दूध का पाउडर खत्म होने लगा था, हम उसे दिन में दो बार की बजाए एक बार ही दूध देने लगे थे।"

चीन के वुहान शहर से शुरू हुए कोरोना वायरस (Coronavirus disease - COVID-19) की चपेट में आज दुनिया के 145 से ज्यादा देश आ चुके हैं।

ये है वो छत जहाँ अभी महेंद्र अपने परिवार सहित बैठते हैं.

नाम न छापने की शर्त पर वुहान में 38 दिन तक परिवार के साथ अपने फ़्लैट में बंद रहे महेंद्र ने गाँव कनेक्शन के साथ वहां का आँखों देखा हाल साझा किया।

वुहान में इतनी तेजी से कोरोना वायरस फैलने की वजह आपको क्या लगी? इस पर महेंद्र ने बताया, "अगर आपका तापमान 37.3 या उससे ज्यादा है तो सरकारी गाड़ी आपको तुरंत घर से लेकर चली जायेगी, फिर आपको किसी कोरेन टाइन सेंटर में 14 दिन के लिए रखा जाएगा। शुरुआत में इस मानक को मानने की वजह से जिन्हें नार्मल बुखार भी था उन्हें भी कोरोना मरीजों के साथ रखा गया जिसकी वजह से तेजी से लोग इसकी चपेट में आ गये।"

इस तापमान के आधार पर शुरुआती दौर में लोगों को घरों से उठाया गया। नतीजा यह हुआ जिसमें कोरोना के लक्षण हैं वो भी और जिसमें नहीं हैं उन्हें भी एक साथ रखा गया। इस वजह से मरीजों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी।

महेंद्र मूलतः भारत के नोएडा शहर के रहने वाले हैं। ये चाइना के वुहान शहर में पेशे से इंजीनियर हैं। महेंद्र कुमार अपनी पत्नी और सात साल की बेटी के साथ उसी वुहान शहर में रहने वाले एक भारतीय हैं जहाँ जनवरी 2020 में कोरोना वायरस की महामारी शुरू हुई।

महेंद्र की खुशी का ठिकाना तब नहीं रहा जब वो अपने परिवार सहित भारत के लिए रवाना हुए.

महेंद्र ने वुहान की कई उन बातों का जिक्र किया जिसकी अभी तक कहीं चर्चा नहीं हुई थी, "जिन परिवारों के लोग इस बीमारी से मर रहे थे उनकी लाशें परिवार को बिना बताये 24 घंटे के अन्दर इलेक्ट्रॉनिक तरीके से डिस्पोज की जा रही थीं जिससे इस वायरस का असर दूसरों में न पड़े।"

"शुरुआत में लोग मास्क नहीं पहनते थे, एक ही गाड़ी में संदिग्ध लोगों को घरों से उठाकर किसी भी कोरेन टाइन सेंटर में रख दिया जाता था। अगर एक घर के चार लोग हैं तो उन्हें अलग-अलग कोरेन टाइन सेंटर में रखा जाता था।"

महेंद्र के मुताबिक़ ये सब कदम इसलिए उठाये जा रहे थे जिससे इस वायरस का असर दूसरों में न हो सके पर इससे लोग भयभीत हो गये। तभी लोग अपना तापमान गलत फीड करने लगे जिससे इस वायरस में आये लोग कई दिनों तक बिना बताये अपने घरों में बंद रहे। जबतक मेडिकल टीम को पता चला तबतक लोग पूरी तरह से इसकी चपेट में आकर मरने लगे।

चीन में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या लगभग एक लाख पहुंच गयी है। यहां मरने वालों की संख्या 3,000 से ज्यादा हो गयी है।

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कोरोना की रिपोर्ट में निगेटिव होने के बावजूद सुरक्षा के मद्देनजर महेंद्र अपने परिवार समेत 38 दिन वुहान में अपने फ़्लैट में आईसोलेशन में रहे। भारत आने के बाद भी ये अभी भी आईसोलेशन में रह रहे हैं, अभी तक ये अपने घरवालों से नहीं मिले हैं। वुहान से लेकर भारत तक लगभग तीन महीने आईसोलेशन में रहने के बाद ये 25 मार्च को सभी से मिलेंगे।

स्थिति कैसे इतनी विकराल हो गयी इस पर महेंद्र ने कहा, "शुरुआती दौर में इस वायरस के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था इसलिए इसे हल्के में लिया गया। फरवरी के पहले दूसरे सप्ताह में जब स्थिति कंट्रोल से बाहर हो गयी तब सरकार ने सक्रियता दिखाई, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।"

"मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ने लगी, एक दिन में सैकड़ों लोग इसकी चपेट में आने लगे। लोगों के घरों का राशन खत्म होने लगा, भूख के कारण अपने फ़्लैट से कूदकर कुछ लोगों के आत्महत्या के वीडियो भी सामने आये। पूरी तरह से यहाँ का माहौल दहशत भरा हो गया था।"


वुहान में जैसे ही कोरोना का कहर बढ़ने लगा तभी वहां की सरकार ने 23 जनवरी को अलर्ट जारी कर दिया और लोगों को 14 दिन तक घर में रहने की सख्त हिदायत दी। दो हफ्ते बाद स्थिति ठीक हो जायेगी ऐसा सरकार ने भरोसा दिलाया था पर हालात और गम्भीर होते गये।

महेंद्र ने बताया, "अलर्ट जारी होने के पहले ही 19 जनवरी से हमने अपने फ़्लैट से बाहर निकलना बंद कर दिया था। दो तीन हफ्ते का राशन लेकर रख लिया था लेकिन 14 दिनों बाद स्थिति और भयावह हो गयी।"

हर बार दो-दो हफ्ते घर में रहने का निर्देश आता था लेकिन यहाँ के हालात में कोई सुधार नहीं हो रहा था।

जब अलर्ट जारी हुआ था तब हर परिवार से तीन चार दिन में एक व्यक्ति को घर से बाहर जाने की इजाजत थी जिससे वह राशन का सामान सुपर मार्केट से ला सके। सुपर मार्केट में जाने से भी यह वायरस और तेजी से बढ़ा क्योंकि यहां उस समय हर तरह के लोग आ रहे थे। बढ़ते मरीजों को देखते हुए कुछ दिनों बाद इस सुपर मार्केट को बंद कर दिया गया।

महेंद्र की सात साल की बेटी जिसने लगभग तीन महीने से बाहर की दुनिया नहीं देखी.

"मैंने सुपर मार्केट से सामान नहीं खरीदा। मैंने सोचा पहले हमारे पास जो स्टाक है उसे खत्म करें बाद में देखा जाएगा। सुपर मार्केट के बंद होने के बाद होम डिलीवरी शुरू हो गयी जो सामान्य दाम से चार से पांच गुना महंगी थी, हमने उसे भी वायरस के डर की वजह से नहीं लिया।" महेंद्र ने बताया, "हम फरवरी में इतने दहशत में आ गये थे कि बस हमें ये लग रहा था कि कुछ भी हो जाए बस हम यहां से निकल जाएं। हम नमक, जीरा चावल खाकर पेट भर रहे थे पर बाहर का कुछ भी नहीं खरीद रहे थे।"

आप स्वस्थ्य हैं या नहीं इसकी जानकारी सरकार तक कैसे पहुंचती थी इस पर महेंद्र ने बताया, "हर सुबह हमारे पास एक ऑटो रिकॉर्डिंग काल आती थी जिसमें परिवार समेत सबका तापमान पूछा जाता था। यह तापमान 37.3 या उससे ज्यादा है तो तुरंत टीम आपको घर से ले जायेगी। अगर परिवार में चार लोगों का तापमान संदिग्ध पाया गया तो सभी को कहां किस सेंटर में रखा जाएगा कुछ पता नहीं था?"

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने इसे महामारी घोषित कर दिया है।

"मैंने अपने जीवन में पहली बार इतने डरावने हालात देखे थे। कोरोना के भय से लोग मानसिक रूप से चिंतित थे। फरवरी तक ऐसे हालत हो गये थे कि हर कोई यहां से भागना चाह रहा था। 90 फीसदी से ज्यादा लोग अपने देशों को लौट गये थे। वहां वही लोग फंसे हैं जिनके देश उन्हें वापस नहीं बुला रहे जैसे पाकिस्तान।" महेंद्र ने बताया।

ये वो जहाज था जिसमें महेंद्र के परिवार समेत 112 लोग 27 फरवरी को सुबह 6:30 पर भारत आये थे.

वुहान से 27 फरवरी को 112 लोग भारत आये। जिसमें महेंद्र का परिवार भी शामिल था।

वुहान से भारत आये लोगों को 27 फरवरी से 14 दिन के लिए सेंटर दिल्लीम के छावला में आईटीबीपी (भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल) में बने आइसोलेशन सेंटर में रखा गया। जहाँ इनकी दो बार न्यूक्लिक एसिड की जांच हुई।

दिल्ली में कोरोना टेस्ट में निगेटिव आने के बाद ये उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर आ गये हैं। अभी भी यह परिवार एक मकान में सुरक्षा के मद्देनजर 14 दिन के लिए आईसोलेशन में हैं।

महेंद्र ने वुहान से परिवार समेत भारत वापसी पर विदेश मंत्रालय के सहयोग की सराहना करते कहा, "जब 38 दिन घर में बंद रहने के बाद 26 फरवरी को हम वहां से भारत के लिए रवाना हुए तभी हमें लगा कि अब हम सुरक्षित हैं। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने मुझे बहुत जल्दी वुहान शहर से निकाला, ऐसे मुश्किल हालातों में इतनी त्वरित प्रक्रिया होगी इसका मुझे भी अंदाजा नहीं था।"

"मेरे पास बीजा था, मेरी पत्नी के पास ओसीआई कार्ड (भारतीय विदेशी नागरिकता) था पर बेटी के पास भारत आने का कोई कार्ड नहीं था। विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर को सूचना देने के तीन दिन के अन्दर मेरी बेटी का बीजा बन गया।" महेंद्र ने भारत सरकार के विदेश मंत्रालय की इस त्वरित प्रक्रिया की तारीफ़ की।

लखनऊ के बलरामपुर अस्‍पताल के आइसोलेशन वार्ड की टीम.

महेंद्र ने कोरोना के लिए बनाये गये आइसोलेशन सेंटर की तारीफ़ में कहा, "दिल्ली के हमें आइसोलेशन सेंटर में एक कमरा दिया गया था। इस वार्ड में सुविधाओं के अच्छे इंतजाम थे। वुहान में हमारे परिवार ने एक हफ्ते तक जीरा, नमक और चावल खाकर गुजारा था। दिल्ली के आइसोलेशन वार्ड में खाने के काफी अच्छे इंतजाम थे।"

महेंद्र को भारत आने पर दिल्ली के आईटीबीपी के आइसोलेशन सेंटर में रखा गया जो विदेश से भारत आये लोगों के लिए बनाया गया है, यहाँ पर आने और दो हफ्ते यानि 14 दिन रखने के बाद दो बार कोरोना की जांच होती है अगर टेस्ट में निगेटिव आया तो उन्हें अपने घर जाने की अनुमति मिल जाती है।

दुनियाभर में फैले कोरोना वायरस से बचाव के लिए अभी तक कोई दवा इजाद नहीं हुई है। ऐसे में मरीजों को आइसोलेट (अलग रखना) करके उनकी देखभाल और इलाज करने की व्यवस्था ही एक मात्र इलाज है। इसके लिए देशभर में आइसोलेशन सेंटर तैयार किए गए हैं जहां पर ऐसे मरीजों को रखा जाता है।

चीन के हालात कबतक ठीक हो सकते हैं इस पर महेंद्र कहते हैं, "जबतक 30 दिन तक इस वायरस से कोई मौत न हो, कोई भी मरीज इस वायरस की गिरफ़्त में न आये। तब लोग अपने काम पर जाना शुरू कर सकते हैं लेकिन मुझे लगता है लोग धीरे-धीरे अपने काम पर जाना शुरू करेंगे।"

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वापस जाने को लेकर अभी आपका क्या प्लान है इस महेंद्र ने बताया, "मैं एक साल तक अभी वापस जाने की नहीं सोचूंगा। वहां इतने डरावने हालात से गुजर कर आए हैं अब जब तक सब कुछ सामान्य नहीं होगा तब तक कुछ भी कह पाना मुश्किल है।"

महेंद्र जबसे आइसोलेशन में हैं तबसे इनका परिवार कई तरह की सावधानियां बरत रहा है। ये दिन में 20-25 बार साबुन से हर बार 30 सेकेण्ड हक हाथ धुलते हैं। बाहर का खाना नहीं खाते। सब्जियों को गरम पानी में धुलने के बाद पांच छह घंटे धूप में रखने के बाद बनाते हैं। इनके घर का कोना-कोना बिलकुल साफ़ है। दिन में भी ये एक दो बार घर में एल्कोहल से छिड़काव करते हैं। कपड़े धूप में सुखाते हैं। सुरक्षा के हर तरह के इंतजाम इस परिवार ने किये हैं।

महेंद्र कहते हैं, "इस बीमारी के बचाव का एक ही इलाज है साफ़-सफाई और सामाजिक दूरी। बाहर जाना जरूरी न हो तो घर में ही रहें, बाहर के खाने से परहेज करें, शाकाहारी भोजन करें। बाहर जब भी जाएं मास्क पहनकर ही निकलें, दिन में दो मास्क पहने।"

उन्होंने आगे कहा, "अगर बाहर जाते हैं तो सर्जिकल ग्लब्स पहनकर जरुर जाएं। जब मौका लगे उसे धुलते रहें। लोगों से एक दो मीटर की दूरी बनाकर रखें। आँखों में चश्मा पहने। खांसी, बुखार, गले में दर्द नाक निकलने जैसी कोई भी बीमारी के लक्षण हों तुरंत डॉ के पास जाएं।"

"मुंह, हाथ, नाक और आँख की साफ़-सफाई पर ख़ास ध्यान दें। अगर आपका तापमान 37.3 है तो बिना देरी किये डॉ के पास जाएं। अगर आपने लापरवाही बरती तो द्वाइयों की डोज बढ़ेगी।" महेंद्र ने बताया। 

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