Budget 2019: किसानों के सबसे बड़े मुद्दों पर बात ही नहीं हुई

Update: 2019-07-05 09:34 GMT

लखनऊ। देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश का Union Budget 2019 (बही खाता) पेश कर दिया है। बजट से पहले उम्मीद की जा रही थी कि सूखे को लेकर सरकार बड़ा ऐलान कर सकती है, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बजट में न तो किसानों की आय दोगुनी करने के रोड मैप पर बात हुई और न ही एमएसपी का लाभ किसानों को कैसे मिलेगा इस पर। ऐसे में सवाल यह उठता है कि बजट 2019 से किसानों को क्या मिला ?

बजट से कुछ दिन पहले सरकार ने खरीफ फसलों की एमएसपी में बढ़ोतरी की थी। बजट के दौरान वित्त मंत्री ने ये जरूर कहा कि ये बजट गांव और किसानों पर केंद्रित है। लेकिन इस बजट में सूखे पर बात नहीं हुई। हालांकि सरकार ने कृषि बजट की राशि में 78 फीसदी तक बढ़ोतरी करते हुए 1.39 लाख करोड़ रुपए कर दिया है।

आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार, भारत में कुल 14.2 करोड़ हेक्टेयर जमीन पर कृषि होती है। इसमें से 52 फीसदी हिस्सा अनियमित सिंचाई और बारिश पर निर्भर है। यानि इस ओर और ज्यादा ध्यान देने की जरूरत थी।

कमजोर मानसून के कारण कृषि सेक्टर मुश्किलों से घिरा है। देश के 24 राज्यों में जून महीने में कम बारिश हुई। इस कारण देश के 250 जिलों में पानी की भारी किल्लत हो सकती है।

जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने एक समारोह में पत्रकारों से कहा था कि अभी तक कम बारिश हुई है, लेकिन हम बेहतरी की उम्मीद कर रहे हैं। ऐसे में उम्मीद की जा रही थी कि सूखे को लेकर सरकार बजट में राहत पैकेज जैसी घोषणाएं करेगी।

पिछले दिनों गांव कनेक्शन ने जब देश के 19 राज्यों के किसानों से पूछा कि उनकी बेहतरी के लिए सबसे जरूरी क्या है तो 41 फीसदी किसानों ने कहा था कि बेहतर सिंचाई की व्यवस्था होनी चाहिए। ऐसे में जब मानसून एक बार किसानों को धोखा दे सकता है तो मुश्किलें और बढ़ेगी ही।

किसानों की आय दोगुनी कैसे होगी, ये भी नहीं बताया गया। हां ये जरूर कहा गया कि सरकार का सरकार का लक्ष्य है कि किसानों को उनकी उपज की सही कीमत मिले, लेकिन कैसे ? उम्मीद की जा रही थी कि किसान सम्मान निधि की राशि में बढ़ोतरी होगी। ऐसा भी नहीं हुआ। MSP का लाभ किसानों को कैसे मिलेगा और आवारा पशुओं से निपटने की योजना पर भी कोई चर्चा नहीं हुई।

स्वराज इंडिया के संस्था पार्टी के संस्थापक और किसान नेता योगेंद्र यादव कहते हैं "किसान ने अपने नफे, नुकसान की चिंता किए बगैर देश की सुरक्षा के लिए वोट दिया, अब देश के लिए जरूरी है कि किसान की सुरक्षा के लिए सामने आए।"

इसके अलावा बजट पर निशाना साधते हुए उन्होंने अपने ट्वीट में कहा " कम से कम किसान के लिए तो यह "ज़ीरो बजट स्पीच" थी। न सूखे का जिक्र, न आय दोगुना करने की योजना, न किसान सम्मान निधि का विस्तार, न MSP रेट किसान को दिलवाने की पुख्ता योजना, न आवारा पशु से निपटने की कोई तरकीब।"

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बजट से ठीक पहले सरकार ने खरीफ की 13 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी की थी। लेकिन तमाम रिपोर्ट और खबरों में ये बात सामने आ चुकी है कि एमएसपी का लाभ 90 फीसदी से ज्यादा किसानों को नहीं मिल पाता। आर्थिक सर्वेक्षण में भी सरकार ने माना कि किसानों को सही मूल्य नहीं मिल पा रहा है।

गांव कनेक्शन के सर्वे में भी 43.6 फीसदी किसानों ने कहा था कि उनकी सबसे बड़ी समस्या फसलों की सही कीमत नहीं मिलना है। बावजूद इसके बजट में इस पर चर्चा नहीं हुई।

आर्थिक सहयोग विकास संगठन और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (OECD-ICAIR) की एक रिपोर्ट के अनुसार 2000 से 2017 के बीच किसानों को उत्पाद का सही मूल्य न मिल पाने के कारण 45 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।

वर्ष 2015 में भारतीय खाद्य निगम (FCI) के पुनर्गठन का सुझाव देने के लिए बनी शांता कुमार समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि एमएसपी का लाभ सिर्फ 6 प्रतिशत किसानों को ही मिल पाता जिसका सीधा मतलब है कि देश के 94 फीसदी किसान एमएसपी के फायदे से दूर रहते हैं।

बजट पर भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौ. नरेश टिकैत ने कहा "कृषि को आसान बनाने के लिए कम से कम 5000 कदम सुझाए जाने की उम्मीद थी, लेकिन यह बजट किसानों की आशाओं के विपरीत है। बजट में किसानों के लिए विभिन्न योजनाओं का कोई जिक्र नहीं किया है। देश में किसानों को उम्मीद थी कि बजट में किसानों की आत्महत्याओं, फसलों की समर्थन मूल्य पर खरीद, मंडियों व भण्डारण की क्षमता को बढ़ाना, कृषि ऋण को दीर्घकालिक व ब्याज मुक्त किए जाने के लिए सरकार कदम उठाएगी। सरकार ने बजट में इन मुद्दों को छुआ तक नहीं।"

छुट्टा पशु इस समय किसानों के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द बने हुए हैं। वर्ष 2012 में हुई अंतिम पशुगणना के अनुसार भारत में करीब 52 लाख छुट्टा पशु हैं। पिछले सात सालों में इनकी जनसंख्या में बढ़ोतरी ही हुई है।

वहीं 16 जुलाई 2018 में 'द वाशिंगटन पोस्ट' में छपी खबर के मुताबिक के भारत में 52 लाख छुट्टा गायें सड़कों पर घूमती हैं। शहरों में ये यातायात जाम करती हैं तो गांवों में ये खेतों को नुकसान पहुंचाती हैं। खबर के मुताबिक एक राज्य में दस लाख से अधिक छुट्टा पशु हैं।

गांव कनेक्शन के सर्वे में भी 18,267 लोगों में से 43.6 फीसदी लोगों ने कहा कि छुट्टा पशु उनके लिए बहुत बड़ी समस्या है। लेकिन बजट में इस पर भी कोई घोषणा नहीं हुई।

भोपाल स्थित केन्द्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक खेती का 90 फ़ीसदी काम मशीनों से हो रहा है और मानव और पशु श्रम 5-5 फ़ीसदी है। पंजाब राज्य के बरनाला जिले में रहने वाले कवलजीत सिंह का कहना हैं, "अभी तक खेत में बिजली, पानी, खाद बीज का खर्चा था वहीं अब छुट्टा पशुओं से फसल को बचाने के लिए तारबंदी करानी पड़ती जिसमें खर्च बहुत आता है खेती करना अब आसान नहीं रह गया।"

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