दिवाली स्पेशल: एक बार तेल डालने पर रातभर जलता है ये दीपक, अनोखा दिया बनाने वाले कारीगर को मिल चुका है राष्ट्रीय पुरस्कार

आमतौर पर मिट्टी के दीपक में जो तेल या घी डाला जाता है वो जलकर खत्म हो जाता है, जिसके बाद दीपक बुझ जाता है लेकिन छत्तीसगढ़ के कुम्हार ने ऐसा दीपक बनाया है जिसमें बार बार तेल डालने का झंझट नहीं करना होता

Update: 2021-11-01 05:19 GMT

इस बार दीपावली में आप अपने घर मिट्टी के ऐसे दीये ला सकते हैं जो आपके घर को 24 घंटे तक रोशन कर सकते हैं। इन दीयों में सिर्फ एक बार तेल डालने के बाद ये चौबीस घंटे तक आराम से जल सकेंगे।

मिट्टी के इन ख़ास दीयों को तैयार करने वाले हैं छत्तीसगढ़ के कोंडागांव ज़िले के कुम्हारपारा गाँव के रहने वाले शिल्पकार अशोक चक्रधारी। इस पारम्परिक कला में विज्ञान के सिद्धांत को जोड़ कर अजय चक्रधारी ने इस अनोखे दीये को तैयार किया है।

यही वजह है कि अशोक के बनाए गए इन दीयों की वजह से उन्हें न सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है, बल्कि आज वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सुर्खियाँ बटोर रहे हैं।

गाँव में अशोक चक्रधारी की कार्यशाला में इन ख़ास दीयों को तैयार करतीं महिलाएं। फोटो : गाँव कनेक्शन 

अशोक चक्रधारी 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "हम लोग कुम्हार जाति के लोग हैं, जहाँ लोगों में शिक्षा की कमी है, जो हम लोग मिट्टी का काम भी करते हैं, वो काम भी सिमटता जा रहा है क्योंकि युवा पीढ़ी के लिए बाज़ार में फैंसी स्टील, प्लास्टिक के सामान उपलब्ध हैं। मगर आज मिट्टी के इन दीयों की वजह से हम जैसे कुम्हारों को नयी पहचान मिली है।"

असल में यह दिया पूर्ण रूप से वैज्ञानिक सिद्धांतों पर काम करता है। दिये के साथ एक अलग तरह का स्टैंड भी बनाया गया है जिसके ऊपर मिट्टी का ही एक गोल आकार का एक गुम्बद होता है। इसमें ऊपर तक तेल भर कर उसी स्टैंड में पलट कर रख दिया जाता है। इसी गुम्बद में एक टोंटी भी होती है और जैसे ही दीये में तेल ख़त्म होने लगता है, वैसे ही उस गुम्बद की टोंटी से तेल निकलता है और इस तरह दीया एक बार फिर भर जाता है। ऐसे में दीया लम्बे समय तक जल सकता है।


सिर्फ चौथी कक्षा पास अजय इस दीये के बारे में बताते हैं, "मैं करीब 35 साल पहले एक बार भोपाल गया था, तो वहां पर कई प्रकार के दीये देखे थे, वहां एक बुजुर्ग ने ऐसा ही कुछ दिया बनाया था तो वो मुझे अभी भी याद था। तब मेरे दिमाग में ऐसे दिये बनाने का ख्याल आया जो ज्यादा समय तक जल सकें, कई बार बनाने का प्रयास किया मगर सफलता नहीं मिली, मगर अंत में आखिरकार मैं यह दीया बनाने में सफल हो गया।"

हालांकि अब अशोक चक्रधारी के इन दीयों की डीमांड कहीं ज्यादा बढ़ चुकी है। अशोक के मुताबिक, इन दीयों को बनाने के लिए उनके साथ आठ से दस और कुम्हार भी काम कर रहे हैं, मगर फिर भी वे मिट्टी के इन ख़ास दीयों की मांग पूरी नहीं कर पा रहे हैं।

अशोक बताते हैं, "एक वक़्त था जब हमारे मिट्टी के बनाए सामान बहुत कम लोग खरीदते थे, इस वजह से मेरे साथ के कई लोग यह काम छोड़ कर चले गए थे, मगर आज बड़े-बड़े अधिकारी इन दीयों को खरीदने आते हैं, हमारे पास दूसरे राज्यों से भी भारी डीमांड आ रही है।"

इससे पहले अशोक कई राज्यों में मिट्टी की इस कला को सीखने के लिए भी गए। यही वजह है कि अशोक ने बस्तर क्षेत्र के अपने गाँव में पारंपरिक शिल्प झिटकू-मिटकी के नाम से कार्यशाला भी स्थापित की है। पिछले दिनों केंद्रीय मंत्रालय ने इसके लिए अशोक को नेशनल मेरिट अवार्ड प्रशस्ति पत्र से भी सम्मानित किया है।

अशोक कहते हैं, "हमारे देश की इस पारंपरिक कला को बचाए रखने के लिए सरकार को हम जैसे कुम्हार जाति के लोगों की मदद करनी चाहिए, जैसे छत्तीसगढ़ सरकार ने हमारे कई बार अनुरोध करने पर माटी कला बोर्ड का गठन किया जहाँ नयी चीजें सीखी जा सकती हैं और हमारे काम को बढ़ावा दिया जा सकता है।"

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