उरुग्वे के पूर्व राष्ट्रपति जोस मुजीका ने कहा था कि मैं सबसे गरीब राष्ट्रपति कहलाता हूं, लेकिन मैं समझता हूं कि मैं गरीब नहीं हूं। गरीब तो वो होते हैं जो अपना पूरा जीवन खर्चीली जीवशैली के लिए काम करने में बिता देते हैं और अधिक से अधिक कमाने की इच्छा रखते हैं।
लखनऊ। भारत में इन दिनों नए राष्ट्रपति के लिए मतदान हो चुके हैं। जल्द ही भारत के नए राष्ट्रपति की घोषणा भी हो जाएगी, लेकिन आपको ये पता है कि दुनिया में ऐसे भी राष्ट्रपति हैं जो खेती करते हैं जिन्होंने अपने पूरे कार्यकाल में मिलने वाली सैलरी को दान किया और देश को नई ऊंचाइयों पर ले गए। आज भी ये फूलों की खेती में होने वाले मुनाफे को दान करते हैं।
दक्षिण अमेरिका के दक्षिणीपूर्वी हिस्से में स्थित एक देश उरुग्वे है। उरुग्वे की बात करें तो वहां के 40वें राष्ट्रपति जोस मुजिका (82 वर्ष) का नाम सबसे पहले आता है। मुजिका एक ऐसे नेता है जिन्हें बेहद गरीब माना जाता है। जो पेशे से एक किसान हैं। वर्ष 2015 के मार्च महीने में उन्होंने ये कहते हुए राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया कि उन्हें अपने तीन पैर वाले दोस्त मैनुअल और चार पैर की बीटल के साथ बिताने के लिए समय की जरूरत है। मैनुअल उनका पालतू कुत्ता और बीटल गाड़ी है। मुजिका ने अपने पांच साल के कार्यकाल में देश को तो अमीर बना दिया लेकिन खुद ‘कंगाल’ बने रहें।
राष्ट्रपति होने के बावजूद नहीं ली वीआईपी सुविधा
उरुग्वे के पूर्व राष्ट्रपति मुजिका को दुनिया का सबसे गरीब राष्ट्रपति माना जाता है क्योंकि उन्होंने हमेशा फकीरों जैसा जीवन जिया। जोस अपने कार्यकाल में भी राष्ट्रपति भवन के बजाय अपने दो कमरे के मकान में रहते थे और सुरक्षा के नाम पर बस दो पुलिसकर्मियों की सेवाएं लेते थे।
खुद संभलते हैं खेती-किसानी का काम
मुजिका आम लोगों की तरह खुद कुएं से पानी भरते हैं और अपने कपड़े भी धोते हैं। मुजिका पत्नी के साथ मिलकर फूलों की खेती करते हैं ताकि कुछ ऊपरी आमदनी हो सके। खेती के लिए ट्रैक्टर भी वे खुद ही चलाते हैं। ट्रैक्टर खराब हो जाए, तो खुद ही मैकेनिक की तरह ठीक भी करते हैं। मुजिका कोई नौकर-चाकर भी नहीं रखते। अपनी पुरानी फॉक्सवैगन बीटल को खुद ड्राइव कर ऑफिस जाते थे। ऑफिस जाते समय वह कोट-पैंट पहनते थे, लेकिन घर पर बेहद सामान्य कपड़ों में रहते थे।
दान कर देते थे वेतन
एक देश के राष्ट्रपति को जो भी सुविधाएं मिलनी चाहिए, मुजिका को सुविधाएं दी गई, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। वेतन के तौर पर उन्हें हर महीने 13300 डॉलर मिलते थे, जिसमें से 12000 डॉलर वह गरीबों को दान दे देते थे। बाकी बचे 1300 डॉलर में से 775 डॉलर छोटे कारोबारियों को भी देते थे।
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सीने पर खाई थी छह बार गोलियां
1960-70 में उरुग्वे में गुरिल्ला संघर्ष के सबसे बड़े नेता के नाम से उभरे थे जोस मुजीका। इन्होंने गुरिल्ला संघर्ष के दौरान अपने सीने पर छह बार गोलिया खाई और चौदह साल जेल में काटे। जोस को 1985 में तब जेल से रिहा किया गया जब देश में लोकतंत्र की वापसी हुई।
गरीब देश नहीं है उरुग्वे
अगर आपको ऐसा लगता है कि उरुग्वे एक गरीब देश है, इसीलिए यहां का राष्ट्रपति भी गरीब है, तो यह बात बिल्कुल गलत है। उरुग्वे में प्रति माह प्रति व्यक्ति की औसत आय 50,000 रुपए है।
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