लखनऊ। एशिया को भूखमरी से निजात दिलाने वाले चमत्कारी धान आईआर-8 ने 50 साल की उम्र पूरी कर ली है। पिछले दिनों इसका जन्मदिन बहुत धूमधाम से दिल्ली के एक पंचसितारा होटल में मनाया गया। जिसमें कृषि राज्यमंत्री सुदर्शन भगत समेत देशभर के कृषि वैज्ञानिक शामिल हुए। ऐसा पहली बार हुआ जब किसी फसल का धन्यवाद करने के इतना बड़ा आयोजन हुआ।
साठ के दशक में जब जब एशिया अनाज के संकट से गुजर रहा था उसी समय साल 1967 में आंध्रप्रदेश के 29 साल के किसान नेकांति सुब्बा राव ने असाधरण खूबियों वाले धान की एक ऐसी किस्म की खोज जिसकी तूती पूरी दुनिया में आज भी बोलती है। इस धान ने बहुत सारे देशों के लाखों लोगों के भोजन की समस्या को दूर किया। इस धान की खोज के बारे में जानकारी देते हुए सुब्बा राव ने बताया ''जब मैंने अपने छोटे से खेत में आईआर-8 धान की किस्म विकसित की थी तो उसम समय एक एकड़ में धान की अधिक से अधिक डेढ़ टन पैदा होता था लेकिन आईआर-8 आया तो जैसे क्रांति पैदा हो गई। इससे एक एकड़ में 10 टन तक अनाज पैदा होने लगा।''
उन्होंने बताया कि उनके गांव से इस धान के बीज पूरे देश में भेजे गए। किसानों ने जब इस धान की खेती करना शुरू किया तो उनका उत्पादन एकाएक बढ़ गया। मिस्टर आईआर-8 के नाम से पूरी दुनिया में प्रसिद्ध सुब्बाराव हैं।
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आईआर-8 को विकसित करने वाली टीम का हिस्सा रहे कृषि एवं आनुवंशिकी वैज्ञानिक डा. गुरूदेव सिंह खुश ने बताया कि आईआर-8 की पैदावार में हर साल एक प्रतिशत से लेकर दो प्रतिशत तक का इजाफा हो रहा है। आईआर-8 के बारे में जानकारी देते हुए, उन्होंने कहा कि इंडोनेशिया की पेटा धान की लंबी और चीन में छोटे कद की उच्च उत्पादन वाली डीजीडब्ल्यूजी के संकर से आईआर-8 को विकसित किया गया था।
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1960 में अमेरिकी दो चैरिटी संस्थाएं फोर्ड और राकफेलर ने दुनिया को भूखमरी से निजात दिलाने के लिए फिलीपींस में इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट यानि आईआरआरआई की स्थापना की थी। इसके सहयोग से ही आईआर-8 को विकसित किया गया था। डॉ. गुरूदेव सिंह खुश बताया कि कृषि के विश्व इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ था जब चावल की पैदावार दोगुनी हुयी हो, लेकिन आईआर-8 ने इसको कर दिखाया। परंपरागत धान के मुकाबले आईआर-8 का पूरे एशिया में बहुत प्रसार हुआ और इसकी खेती करके किसान लाभ कमा रहे हैं।
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उत्तर प्रदेश के किसान भी धान की इस किस्म की खेती करके उत्पादन बढ़ा सकते हैं। डॉ. खुश ने बताया कि एशिया की आबादी लगभग साढ़े चार अरब है। यहां के अधिकांश लोग चावल खाते हैं। एक आंकड़े के मुताबिक 1980 में जहां एशिया की 50 फीसदी आबादी भूखी थी, वहीं आज यह आंकड़ा गिरकर 12 प्रतिशत रहा गया है। इसमें आईआर-8 का बहुत योगदान है।
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