वीडियो : निराई गुड़ाई का खर्च बचाने के लिए बना डाली ‘जुगाड़’ की मशीन

Update: 2017-12-04 17:49 GMT
मंदसौर के मिस्त्री हातिम कुरैशी द्वारा बनाया गया कृषि यंत्र।

किसान खेती को लेकर धीरे-धीरे ही सही जागरूक और सजग हो रहे हैं। कम लागत की जैविक खेती करने के साथ ही अब किसान कई तरह के देशी जुगाड़ भी अपनाते हैं। ऐसे ही किसानों के लिए मंदसौर के एक मिस्त्री हातिम कुरैशी ने निराई-गुड़ाई के लिए एक जुगाड़ मशीन इजाद की है, जिससे किसानों की लागत कम आती है और बाजार से खर पतवार नासक दवाइयों का छिड़काव नहीं करना पड़ता है।

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मंदसौर जिला मुख्यालय से लगभग 65 किलोमीटर दूर सुवासरा गाँव में रहने वाले हातिम कुरैशी (42 वर्ष) पेशे से मिस्त्री हैं। जुगाड़ मशीन बनाने को लेकर अपना अनुभव साझा करते हुए फोन पर बताते हैं, “हर वक्त मुझे कुछ नया बनाने का शौक रहता है। करीब सात साल पहले मन में ख्याल आया, अगर खर पतवार की निराई गुड़ाई करनी है, तो कुछ ऐसा बनाया जाए जिससे कम समय में और कम खर्च में निराई गुड़ाई हो सके।”

मंदसौर के मिस्त्री हातिम कुरैशी द्वारा बनाया गया कृषि यंत्र।

वो आगे बताते हैं, “एक साल मुझे इस जुगाड़ को बनाने में लगा। जब बनाना सीख गया तबसे छह साल से लगातार हजारों जुगाड़ मशीने तैयार कर चुका हूं। खरीफ की बोआई के बाद इस मशीन की किसानों को जरूरत होती है, इसलिए जून महीने में इसे बनाकर रख लेते हैं। अधिक क्षमता वाली बाइक में जुगाड़ लगा दी जाती है। इसमें दो पहिए और लगा दिए जाते हैं। फसल के बीच में कुछ बोना हो तो निराई-गुड़ाई के साथ ही बुवाई कर देते हैं। ये जुगाड़ बीज और खाद भी खेतों तक पहुँचाने का काम करती है।”

यहां के ज्यादातर किसान फसल की निराई-गुड़ाई करने के लिए अब मजदूरों के सहारे नहीं रहते हैं और न खर पतवार नासी दवाइयां बाजार से खरीदते हैं। यहां के किसान अपनी अधिक क्षमता वाली बाइक में हातिम भाई से जुगाड़ फिट करवा लेते हैं। खेत में निराई-गुड़ाई से लेकर किसान खाद बीज ले जाने तक इसका इस्तेमाल करते हैं। इसे बनाने में लागत 14000 रुपए आती है।

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सुवासरा के ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी दशरथ नंदन पाण्डेय इस जुगाड़ के बारे में बताते हैं, “अगर खर पतवार मजदूरों से साफ़ करवाएंगे तो समय भी ज्यादा लगेगा और पैसे भी, एक एकड़ में एक बार निराई-गुड़ाई कराने पर दो हजार रुपया खर्चा आ जाता है। तीन-चार बार निराई-गुड़ाई करनी पड़ी तो आठ दस हजार खर्चा हो जायेगा, अगर इस जुगाड़ को बनवाते है तो एक बार में 14 हजार रुपए ही खर्चा आता है। जबतक खेतों में काम हो इसका प्रयोग करें इसके बाद इसे हटा कर रख दें और फिर बाइक का इस्तेमाल करें।”

वो आगे बताते हैं, “हमारे मंदसौर जिले में हजारों किसान इस जुगाड़ तकनीकि का इस्तेमाल कर रहे हैं, बरसात में खरपतवार ज्यादा होती हैं यहाँ सोयाबीन, उड़द, मक्का, मूंग की बोआई बारिश के बाद शुरू हो जाती है, फसल जमने के कुछ दिनों बाद इस जुगाड़ की किसानो को सबसे ज्यादा जरूरत रहती है, मजदूरों की कमी की वजह से लोग इसी जुगाड़ का इस्तेमाल करते हैं।”

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