सोशल मीडिया में हाल में साड़ियों के पॉलीहाउस के बारे में खबर फैलने के बाद यह पॉलीहाउस किसानों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
हमारे किसानों की लगन देखिए, सरकार से पॉलीहाउस के लिए किसान कर्ज मांग रहा था। काफी मुश्किलों के बाद भी जब किसान को कर्ज नहीं मिला तो उसने खेती की नई तकनीक को अपनाने के लिए खुद पहल करते हुए साड़ियों से न सिर्फ पॉलीहाउस बना डाला, बल्कि वहां अब जैविक खेती भी शुरू कर दी है।
मध्य प्रदेश के हरदा जिले के हंडिया गांव के इस किसान का नाम है जीतेश तिवारी। जीतेश अब इस पॉलीहाउस में तरबूज, शिमला मिर्च, लौकी, भिंडी समेत 11 तरह की सब्जियों और फलों की खेती कर रहे हैं।
'गाँव कनेक्शन' से फोन पर बातचीत में किसान जीतेश बताते हैं, "मेरे साथ-साथ हमारे गांव के कुछ किसानों ने भी पॉलीहाउस के लिए सरकार से कर्ज को आवेदन किया था, मगर शर्तें इतनी ज्यादा थीं कि किसी को भी कर्ज नहीं मिल सका। इसके बाद मैंने खुद ही पॉलीहाउस बनाने की ठान ली।"
आमतौर पर पॉलीहाउस बनाने के लिए कम से कम 10 लाख रुपए का खर्चा आता है, जो बड़े क्षेत्र में 20 लाख रुपए तक जा सकता है। मगर जीतेश ने अपने करीब 7 एकड़ भूमि पर यह पॉलीहाउस 60 से 65 हजार रुपए में तैयार कर लिया।
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जीतेश आगे बताते हैं, "अपने गांव में पॉलीहाउस बनाने के लिए सबसे पहले मैंने गाँव में घर-घर से पुरानी साड़ियों का इकट्ठा करना शुरू किया और करीब 1500 से ज्यादा साड़ियों को इकट्ठा किया गया। इसके साथ बाउंड्री के लिए खंभे के रूप में लंबे समय तक चलने वाले बांस की व्यवस्था की और अपने 7 एकड़ खेत में गांव के लोगों के साथ मिलकर तैयार करना शुरू किया।"
जीतेश ने बताया, "लगभग 8 फीट की लंबाई पर मैंने सूती साड़ियों को तीन-तीन लेयर बनाकर छत बनाई ताकि पौधों को उचित धूप मिल सके। अपने पॉलीहाउस को हवादार बनाने के लिए हमने छोटी-छोटी खिड़कियां भी बनाई और उसमें बाजार से ग्रीन नेट खरीदकर भी लगवाए, ताकि पॉलीहाउस में नमी की उचित मात्रा बनी रहे।"
सिंचाई के बारे में पूछने पर जीतेश बताते हैं, "हमने पॉलीहाउस में बीच-बीच में छोटे-छोटे पाइप बाजार से खरीदकर उनमें छेदकर सिंचाई के उपयुक्त बनाया। इसके अलावा बोतलों में भी छेदकर सिंचाई की व्यवस्था की। सबसे पहले हमने हल्दी और अदरक लगाए ताकि मिट्टी में पर्याप्त नमी बनी रहे।"
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धीरे-धीरे गर्मी के बढ़ने पर पॉलीहाउस पर असर पड़ने के सवाल पर जीतेश बताते हैं, "ज्यादा गर्मी की स्थिति में हमने पॉलीहाउस में पंखे की भी व्यवस्था की है ताकि पॉलीहाउस का तापमान पौधों के अनुकूल हों।"
पिछले साल दिसंबर में जीतेश ने हांडिया गांव में पॉलीहाउस पर काम करना शुरू कर दिया था और अब उनके खेत में पौधों में फल भी आने शुरू हो गए हैं। इस बारे में जीतेश कहते हैं, "हमने अपने पॉलीहाउस में नर्सरी लगाई और अब पौधों पर फल भी आने शुरू हो गए हैं।
जुलाई में बारिश के दौरान पॉलीहाउस की मजबूती के सवाल पर जीतेश आगे बताते हैं, "बारिश में इस तरह का पॉलीहाउस सफल नहीं होगा, मगर अभी हमने गर्मी के लिए सब्जियां और मौसमी फल उगाए हैं, ताकि उनकी उपज बारिश से पहले तक हमें मिल सके।"
आगे बताया, "बारिश के समय हम लोहे के पतले तार खरीद कर छत पर इनका जाल बनाकर घास-फूस और लंबा चारा से पतला-पतला फंसाने के बारे में सोच रहे हैं, या फिर पॉलीथीन की शेड बना सकते हैं, मगर देखना होगा कि यह कितना सफल होता है।"
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