उम्मीदें बजट 2020: कम बजट और उससे भी कम खर्च बिगाड़ रही देश में शिक्षा की स्थिति

देश की शिक्षा व्यवस्था अभी भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि केंद्र सरकार इस क्षेत्र के लिए उतना बजट ही नहीं देती जिससे इसकी सूरत बदल सके। ऐसे में बजट 2020-21 से इस क्षेत्र की क्या उम्मीदें हैं, सरकार बेहतरी के लिए क्या कर सकती है, इस खबर में हम इन्हीं मुद्दों पर बात कर रहे हैं।

Update: 2020-01-25 13:47 GMT

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर के सुदूर दक्षिण में स्थित प्राथमिक विद्यालय राउतपार अपने ब्लॉक का एक मात्र अंग्रेजी माध्यम का विद्यालय है। राज्य सरकार की कायाकल्प योजना के तहत इस विद्यालय को बाहर से बहुत सजाया-संवारा गया है, लेकिन इस स्कूल के छात्र कड़कड़ाती ठंड में टाइल्स पर बिछे टाट पर बैठने को मजबूर हैं क्योंकि विद्यालय में बेंच और डेस्क नहीं हैं। विद्यालय के एक अध्यापक ने नाम ना छापने की शर्त पर गांव कनेक्शन को बताया कि सभी चीजों के लिए बजट आया लेकिन डेस्क-बेंच के लिए बजट नहीं आया, इसलिए निर्माण नहीं हो सका।

राउतपार से लगभग 400 किलोमीटर दूर बिहार के झंझारपुर ब्लॉक स्थित नरुआर गांव के प्राथमिक स्कूल का भी कमोबेश यही हाल है। इस स्कूल में भी डेस्क-बेंच जैसी स्कूल की मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। वहीं, 2019 में आई बाढ़ के दौरान इस स्कूल के भवन को भी नुकसान पहुंचा था। इसलिए अब पास में बने एक दूसरे सरकारी भवन में बच्चों की पढ़ाई चलती है। यहां पर भी ना ब्लैकबोर्ड है और ना ही बच्चों की बैठने की सुविधा। किसी तरह जस-तस गुजारा चल रहा है। स्कूल के प्रधानाचार्य जगदीश प्रसाद ने बताया कि उन्होंने इसके बारे में अधिकारियों को कई बार जानकारी दी है, लेकिन वे लोग भी बजट का अभाव बताते हुए मामले को टाल देते हैं।

वहीं देश भर के आधुनिक मदरसा शिक्षकों को पिछले 50 महीनों से उनका वेतन नहीं मिल पाया है। अधिकारियों से बात करने पर पता चलता है कि केंद्र सरकार का हिस्सा नहीं आने की वजह से वेतन में देर होती है। वहीं उच्च शिक्षा में पढ़ रहे छात्र लगातार फीस बढ़ने की वजह से परेशान हैं और अलग-अलग विश्वविद्यालयों में आंदोलन चल रहा है। कुल मिलाकर यहां पर भी बजट की ही समस्या सामने आती है।

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देश की शिक्षा व्यवस्था बजट की भारी कमी से जूझ रहा है। उच्च शिक्षा हो या स्कूली शिक्षा, हर जगह बजट की कमी है। पिछले एक दशक के दौरान शिक्षा के क्षेत्र में खर्च देश के जीडीपी के 3 प्रतिशत से भी कम रहा है, जबकि प्रस्तावित वैश्विक मानक 6 प्रतिशत है।

2014-15 में जब मोदी सरकार ने पहली बार बजट पेश किया था तो उसमें शिक्षा क्षेत्र को 83000 करोड़ रुपए का बजट दिया गया था। बाद में इसे उसी साल घटाकर 69000 करोड़ रुपए कर दिया गया। इसके बाद शिक्षा बजट उस दर से नहीं बढ़ा, जिस तरह उसे बढ़ना चाहिए था।

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान निर्मला सीतारमण ने जब जुलाई, 2019 में बजट पेश किया तो शिक्षा क्षेत्र को 94,854 करोड़ रुपए का बजट मिला, जो 2014 के बजट से महज 15.68 फीसदी अधिक है। जबकि इस दौरान कुल बजट 55 फीसदी से अधिक बढ़ा। 2014-15 में सम्पूर्ण बजट की राशि 17.95 लाख करोड़ रुपये थी जो 2019-20 में बढ़कर 27.86 लाख करोड़ हो गई।

हाल ही में समाचार वेबसाइट दि प्रिंट में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार सरकार स्कूल एजुकेशन के बजट में 3000 करोड़ रुपयों की कटौती करने का विचार कर रही है। इस रिपोर्ट में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सूत्रों ने बताया था कि वित्त मंत्रालय के पास पैसों की कमी है, इसलिए यह कटौती की जा रही है। हालांकि बाद में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने ऐसे खबरों का खंडन किया।

इसके बावजूद भारत में शिक्षा पर खर्च काफी कम है। अभी भारत शिक्षा पर अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3 प्रतिशत से भी कम खर्च करता है, जबकि वैश्विक मानक 6 प्रतिशत है। शिक्षा नीति का निर्धारण करने के लिए 1964 में बने कोठारी आयोग का सबसे प्रमुख सुझाव था कि देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 6 प्रतिशत शिक्षा के मद में खर्च किया जाए। प्रथम राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1968) में इसे एक राष्ट्रीय लक्ष्य भी बनाया गया था। लेकिन इस राष्ट्रीय लक्ष्य को आज 40 साल बाद भी नहीं प्राप्त किया जा सका है।

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अगर हम वैश्विक आंकड़ों की बात करें तो वैश्विक आंकड़ें भारत से कहीं बेहतर हैं। शिक्षा पर खर्च का वैश्विक औसत जीडीपी औसत 4.7 % है। अमेरिका अपनी जीडीपी का 5.6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करता है। जबकि नार्वे और क्यूबा जैसे छोटे देश अपनी जीडीपी का क्रमशः 7 और 13 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करते हैं। भारत के समान अर्थव्यवस्था वाले देश ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका दोनों शिक्षा पर लगभग अपनी जीडीपी का 6 प्रतिशत खर्च करते हैं।

भारत में जहां एक तरफ शिक्षा के क्षेत्र में बजट काफी कम है, वहीं इसका वितरण भी काफी असमान सा है। 2019-20 की बजट के अनुसार शिक्षा के क्षेत्र में जो 94,854 करोड़ जारी किए गए, उसमें स्कूली शिक्षा का बजट 56,536.63 करोड़ रुपए और उच्च शिक्षा का बजट 38,317.36 करोड़ रुपए है।

उच्च शिक्षा के 38,317.36 करोड़ रुपए में से देश के लगभग 1000 विश्वविद्यालयों का हिस्सा 6843 करोड़ रुपए है। वहीं देश में 50 से भी कम संख्या में स्थित आईआईटी और आईआईएम का बजट विश्वविधालयों के बजट से कहीं अधिक है। देश भर के 23 आईआईटी कॉलेजों का बजट 6410 करोड़ रुपए जबकि देश के 20 आईआईएम कॉलेजों को 445 करोड़ रुपया मिलता है। यही कारण है कि भारत की विश्वविद्यालयीय शिक्षा बेहद नाजुक स्थिति में है।

बजट के असमान वितरण के अलावा एक और समस्या यह है कि शिक्षा के क्षेत्र में जितना बजट प्रस्तावित किया जाता है, उतना खर्च नहीं हो पाता। सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 10 सालों में 8 बार ऐसा मौका आया जब शिक्षा पर प्रस्तावित बजट खर्च नहीं हो सका। इस रिपोर्ट के अनुसार 2014 से 2019 के दौरान लगभग 4 लाख करोड़ रुपये प्रस्तावित बजट शिक्षा के क्षेत्र में खर्च नहीं हो सका।

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                                                                                                                                                                           यह चार्ट बताता है कि कैसे साल दर साल शिक्षा पर खर्च प्रस्तावित बजट से भी कम हो रहा है। ग्रॉफ सोर्स- Flourish Data Visualisation

शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड विजेता संदीप पांडेय कहते हैं, "सरकार शिक्षा के प्रति कतई भी गंभीर नहीं है। इसका आंकलन हम शिक्षा बजट और शिक्षा पर होने वाले खर्च से आसानी से कर सकते हैं। जीडीपी का 6 फीसदी खर्च करने की बात तो अलग है, हम पिछले एक दशक में 3 फीसदी के आंकड़े से भी आगे नहीं बढ़ पाए हैं। यह काफी निराशाजनक है।"

संदीप पांडेय उन लोगों में से हैं जिनका मानना है कि लोकतंत्र में शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं मुफ्त नहीं तो न्यूनतम होनी चाहिए। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि देश के कई विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों में जो आग लगी है, उसका कहीं ना कहीं कारण शिक्षा बजट पर होने वाला कम खर्च है। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि विश्व के शीर्ष शिक्षण संस्थानों में आज भी भारतीय शिक्षण संस्थानों के नाम ढूंढ़ने से कहीं मिलते हैं।

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के पास आरंग में ग्रामीण गरीब बच्चों के लिए स्कूल चलाने वाली गिरीजा शुक्ला (60) कहती हैं, "शिक्षा के महत्व को सभी जानते हैं लेकिन इस पर कोई भी नीति-नियंता बात करने को तैयार नहीं है। मैंने अपने 40 साल के करियर में कभी किसी भी नेता को शिक्षा के बारे में बात करते नहीं सुना। हां, अपनी भाषणों में वे जरूर कहते हैं कि शिक्षा से भविष्य का निर्माण होता है।"

हालांकि कई समाचार पत्रों में चल रही खबरों के अनुसार केंद्र सरकार इस साल की शिक्षा बजट में पांच से आठ फीसदी तक की बढ़ोतरी कर सकती है। ऐसा प्रस्तावित नई शिक्षा नीति के कारण हो सकता है, जिसमें शिक्षा पर खर्च बढ़ने की सिफारिश की गई है। इस नीति में 2030 तक शिक्षा पर खर्च को पूरे बजट के खर्च का 20 प्रतिशत तक करने का लक्ष्य रखा गया है। अब देखना यह होगा कि अनुमानों के मुताबिक सरकार शिक्षा बजट में बढ़ोतरी करती है या नहीं।

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