जो पगडंडियां गांव से बाहर जाती हैं वे लौटा भी तो लाती हैं न… तो लौटो गांव की ओर

मनीषा कुलश्रेष्ठ हिंदी की लोकप्रिय कथाकार हैं। गांव कनेक्शन में उनका यह कॉलम अपनी जड़ों से दोबारा जुड़ने की उनकी कोशिश है। अपने इस कॉलम में वह गांवों की बातें, उत्सवधर्मिता, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकार और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर चर्चा करेंगी।

Update: 2018-08-23 08:42 GMT

कहते हैं पचास पार कर लेने पर आपको आपकी माटी की जड़ें पुकारती हैं। यकीनन, पुकारती हैं, मगर गंभीरता से कितने लोग सुनते हैं? कौन लौटता है उन पगडंडियों की ओर? विरले ही लोग। बाकि लोग सुविधाओं की ग़ुलामी में, मन मसोस कर शहरों में, देस के बाहर बने रहते हैं।

क्या ही अच्छा हो जब गांव से जा चुके लोग रिटायरमेंट के बाद लौट आएं जड़ों और अपनी मिट्टी की ओर। आजकल रिटायरमेंट के बाद भी लोग तंदुरुस्त, ऊर्जावान रहते हैं। इससे दो भली बातें होंगी। शहरों में जनसंख्या संतुलित होगी, गांव में अनुभवी, दुनिया देखे लोग लौटेंगे तो गांव का समग्र विकास होगा। पलायन से मुर्दा हो रहे गांव गुलज़ार हो उठेंगे। माता-पिता गांव में रहेंगे तो, बच्चे लौटेंगे और नई पीढ़ियों का एक जुड़ाव विकसित होगा।


वह कहते हैं न कि उम्मीद पर दुनिया क़ायम है। मुझे न जाने क्यों लगता है कि एक दिन जब पर्यावरण बुरी तरह नष्ट होने लगेगा, शहर दम घोंटू हो जाएंगे तो लोग ग्रामीण जीवन की तरफ से लौटेंगे। तो जब ऐसा आगे आने वाले किसी समय में करना ही है तो, आज क्यों नहीं? मुझे शिद्दत से महसूस होता है कि रिटायरमेंट के बाद व्यक्ति को अपने गांव, कस्बे के बारे में जरूर सोचना चाहिए। एक सक्रिय जीवन शहर में बिताने के बाद हर व्यक्ति को अपने गांव लौट जाना चाहिए।

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शहरों में नौकरी करके ज्ञान अर्जित किए हुए व्यक्ति के संपर्क में आकर गांव वाले शिक्षित होंगे। शिक्षा, रोजगार, पर्यावरण, रूढ़िवादी मान्यताओं के प्रति सजगता बढ़ेगी। शहरी जीवन से लौटकर वह अपने गांव में कोई न कोई प्रोजेक्ट तैयार कर रोज़गार के अवसर बढ़ा सकते हैं। मसलन कोई रिटायर्ड टीचर कोचिंग शुरू कर सकता है। रिटायर्ड इंजीनियर कोई ट्रेनिंग सेंटर खोल सकता है। वैज्ञानिक कृषि में सहायक हो सकते हैं। बैंकर गांव के लोगों को आर्थिक लाभ, लोन, फसल के बीमे के बारे में लोगों को शिक्षित कर सकता है। कोई बिज़नेस मॉडल तैयार कर सकता है। इस तरह गांव के युवकों को पलायन से बचा सकेंगे और गांव में वापसी सार्थक हो सकेगी। शहरों में बढ़ती जनसंख्या का भी एक संतुलन बन जाएगा। गांव से युवक पलायन करेंगे तो अनुभवी लौटेंगे।

यह एक सपना सा ही है, जो सच हो भी सकता है नहीं भी। अलख तो जगाई ही जा सकती है। जो पगडंडियाँ गांव से बाहर जाती हैं, वे लौटा भी तो लाती हैं न? गांव का पुराना पोस्ट ऑफिस जिसके लाल डिब्बे में तुमने हजारों आवेदन भरे थे, उस पोस्ट ऑफिस में ही आख़िरकार तुम्हारी नौकरी की चिट्ठी आई थी। वही बूढ़ा पोस्टमास्टर तुम्हें अपनी बातों में याद करता है। तुम्हारे स्कूल की गिरती इमारत, तुम्हारी बाट जोहती है। अभाव जो कभी तुम्हारे दामन में मुट्ठी भर चबैना बन बंधे थे, आज याद के किसी मोड़ से पुकारते हैं तुम्हें। यह गांव अब भी अभाव ढ़ोता है, लौटो किसी रोज़ और इस गांव में चिराग़ रौशन कर जाओ।

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दरकता है वह आंगन, जहां मां स्कूल जाने से पहले मुंह पकड़ कर काढ़ती थी बाल। पौंछती थी दामन से मिट्टी से सना मुंह, स्कूल से लौटने पर। आज मां के बालों की सफेद-पतली चुटिया बिना संवरे लटकी रहती है, सफेद आंचल के नीचे। ढह गई है, पीछे वाली कुठरिया, जहां जन्मे थे तुम। बार बार बुलाते हो शहर मां को, तुम ही हमेशा के लिये लौट आओ। संभाल लो अपनी जमीन और बिकते खेत।

क्योंकि ये मिट्टी अनमोल है, धरती मां है। बचा लो गांवों की जमीन को किसी धुंआ उगलते कारख़ाने के लिए बंजर होते हुए। यह मिट्टी जीवन है। इसमें करवटें लेती हरियाली प्राण। शिवमंगल सिंह सुमन की कविता अकसर मन में गूँजती है इन दिनों क्योंकि मैं भी तो इस बरस पचास पार कर लूंगी।

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मिट्टी की महिमा मिटने में

मिट मिटकर हर बार संवरती है

मिट्टी मिट्टी पर मिट्टी है

मिट्टी मिट्टी को रचती है

मिट्टी में स्वर है संयम है

होनी अनहोनी कह जाए

हंसकर हलाहल पी जाए

छाती पर सब कुछ सह जाए  

(मनीषा कुलश्रेष्ठ हिंदी की लोकप्रिय कथाकार हैं। इनका जन्म और शिक्षा राजस्थान में हुई। फौजी परिवेश ने इन्हें यायावरी दी और यायावरी ने विशद अनुभव। अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों, सम्मानों, फैलोशिप्स से सम्मानित मनीषा के सात कहानी कहानी संग्रह और चार उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। मनीषा आज कल संस्कृति विभाग की सीनियर फैलो हैं और ' मेघदूत की राह पर' यात्रावृत्तांत लिख रही हैं। उनकी कहानियां और उपन्यास रूसी, डच, अंग्रेज़ी में अनूदित हो चुके हैं।)

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