भारतीय ग्रामीण विद्यालय : गांव के होनहारों का बोर्ड परीक्षा में शानदार प्रदर्शन

Update: 2018-05-04 18:17 GMT
यूपी बोर्ड के एग्जाम में 12वीं में शत प्रतिशत रहा रिजल्ट। 

कुनौरा (लखनऊ)। यूपी बोर्ड के इस वर्ष के नतीजों में गांव के छात्र-छात्राएं छाए रहे। नकल पर नकेल के बीच आए रिजल्ट से ग्रामीण बच्चे और स्कूल प्रबंधन भी खुश हैं। शिक्षाविदों का मानना है ये रिजल्ट और बेहतर हो सकते हैं, अगर स्कूलों में खाली पड़े शिक्षकों के पदों पर नियुक्ति हो जाए।

पूर्व भूगर्भ वैज्ञानिक और शिक्षाविद डॉ. एसबी मिश्र बताते हैं, “गांव की शिक्षा के लिए सरकार प्रयास कर रही है, लेकिन उसमें थोड़े सुधार की जरुरत है। शहरों के मुकाबले गांवों में प्रति शिक्षक पर छात्रों की संख्या काफी ज्यादा है। बिल्डिंग भले न बनें, लेकिन शिक्षकों की जो तमाम जगहें खाली पड़ी हैं वहां नए शिक्षकों की भर्ती हो। ये दुर्भाग्य रहा है कि पिछले 3-4 वर्षों में इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। गांव के बच्चों को भी अच्छे कंप्यूटर लैब, खेलकूद के साधन आदि मिलें तो वो अभी अच्छे नतीजें देंगे।’

डॉ. एसबी मिश्रा लखनऊ जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में कुनौरा गांव में स्थित भारतीय ग्रामीण विद्यालय के संस्थापक हैं। विद्यालय में इस बार का रिजल्ट भी शत प्रतिशत रहा है। इंटर में यहां 28 छात्र-छात्राएं थे, जिनमें से 16 प्रथम श्रेणी, 11 द्तियी और 1 छात्र तृतीय श्रेणी में पास हुआ है। जबकि हाईस्कूल में 40 छात्र बोर्ड में शामिल हुए थे, जिसमें से 35 पास हुए हैं। बारहवीं में 70 फीसदी अंक पाने वाली अयोध्या नगर की अराधना सिंह बताती हैं, “ मैं तो पहली कक्षा से यहां पढ़ रही हूं। यहां की पढ़ाई और अनुशासन दोनों अच्छे हैं। साल भर में इतनी बार स्कूल में ही टेस्ट (घरेलू परीक्षा) हो जाती है कि परीक्षा का डर खत्म हो जाता है।’

कंप्यूटर लैब में ग्रामीण छात्राएं।

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अराधना एक किसान की बेटी है। इस स्कूल में पढ़ने वाले ज्यादातर छात्र-छात्राएं किसान और गरीब घरों के हैं। चार दशक पहले कनाडा में भूगर्भ वैज्ञानिक की नौकरी छोड़कर इस विद्यालय की स्थापना करने वाले भूगर्भ वैज्ञानिक डॉ. एसबी मिश्र बताते हैं, “जब मैंने ये स्कूल खोला था उस वक्त यहां 15 किलोमीटर के दायरे में कोई स्कूल नहीं था। इस इलाके की 75 फीसद आबादी पिछड़ी और अनुसूचित जाति की है। लड़कियों की शिक्षा न के बराबर थी, लड़कों की भी कम थी। लेकिन आवागमन के साधन बढ़ने से लड़के तो बाहर जाने लगे थे, लेकिन लड़कियों की राह आसान नहीं थी। हमने उन्हें इस स्कूल से जोड़ा।”

डॉ. मिश्र आगे बताते हैं, “विद्यालय भले ही गांव में है लेकिन सुविधाएं वहीं हैं जो शहर के स्कूलों में मिलती हैं। प्रशिक्षित शिक्षक, कंप्यूटर लैब, लाइब्रेरी और अनुशासन ने बेहतर नतीजे दिए। यहां के पढ़े सैकड़ों छात्र-छात्राएं अलग-अलग क्षेत्रों में इलाके का गौरव बढ़ा रहे हैं।’

कभी एक छप्पर में कुछ छात्रों के साथ शुरू हुए इस विद्यालय में आज 700 से ज्यादा छात्र-छात्राएं    पढ़ाई कर रहे हैं। 12वीं तक मान्यता प्राप्त भारतीय ग्रामीण विद्यालय कुनौरा में लगभग हर कक्षा में 60 फीसदी से ज्यादा छात्राएं हैं। स्कूल की संस्थापिका निर्मला मिश्रा बताती हैं, “ जब स्कूल खुला था तब गांवों की बहुत कम लड़कियां स्कूल जाती थीं। मैं उनके घर गई माता-पिता को समझाया तो उन्हें लगा कि शायद हमारा कोई निजी हित होगा, लेकिन कुछ अभिभावक समझे और फिर लड़कियों की संख्या बढ़ती गई। इसकी एक वजह यहां का अनुशासन भी रहा। पढ़ाई के अलावा हमने इस पर बहुत जोर दिया। पिछले 40 वर्षों में कभी कोई घटना नहीं हुई, अभिभावक हम पर भरोसा करते हैं।’

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