400 करोड़ का ‘ट्रामा-2’, 40 मरीजों का भी नहीं हो पाता रोज इलाज 

Update: 2017-07-17 21:38 GMT
अभावाें में ट्रामा 2 का संचालन।

लखनऊ। 40 लाख की आबादी वाली प्रदेश की राजधानी में गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए ट्रामा सेंटर का कोई विकल्प ही नहीं है। ट्रामा सेंटर में आग लगने के तीन दिन बीतने पर भी आकस्मिक इलाज के लिए रोगियों को भटकना पड़ रहा है। बावजूद इसके ट्रामा सेंटर का विकल्प रायबरेली रोड की वृंदावन कालोनी में 400 करोड़ रुपये की लागत से बने 'ट्रामा सेंटर-2' को अभी तक पूर्ण रूप से शुरू नहीं किया जा सका है।

बिल्डिंग बन कर तैयार है। फर्नीचर भी हैं, मगर स्टाफ और अन्य संसाधनों की कमी के चलते यहां एक साथ 40 गंभीर मरीजों का इलाज भी संभव नहीं है। जानकारों की माने तो अगर इस ट्रामा सेंटर में पर्याप्त संख्या में स्टाफ व संसाधन होते तो पहले ट्रामा सेंटर में आगजनी जैसी स्थिति में मरीजों को भटकना नहीं पड़ता।

ट्रामा 2 का संचालन होता तो मरीजों को भटकना नहीं पड़ता

ट्रामा सेंटर में आग लगने की दशा में ट्रामा सेंटर में अधिकांश मरीजों को ले जाया जा सकता था। मगर यहां कमियों के चलते मरीज शताब्दी अस्पताल में भर्ती किए गए। इस बारे में केजीएमयू प्रशासन का कहना है कि संचालन के लिए ट्रामा-2 को पीजीआई को ट्रांसफर किया जा चुका है। मगर पीजीआई संचालन क्यों नहीं कर रहा है, इसकी जानकारी नहीं है।

उल्लेखनीय है कि 'ट्रामा-2' का निर्माण पीजीआई, रायबरेली रोड और शहीद पथ के पास बहुत ही अच्छी लोकेशन पर किया गया है। जहां से मरीजों और गंभीर घायलों को बहुत आसानी से ट्रामा सेंटर तक पहुंचाया जा सकता है। मगर लोकार्पण के बाद से ही ट्रामा-2 में इलाज शुरू हो ही नहीं पाया। यहां सामान्य ओपीडी भी बहुत दिनों तक नहीं चलाई जा सकी। गंभीर इलाज किया जाना तो बहुत दूर की बात है।

पीजीआई ने मांगा था 'ट्रामा-2' मगर शुरू नहीं किया

केजीएमयू के कुलपति प्रो. एलएमबी भट्ट का कहना है कि रायबरेली रोड स्थित ट्रॉमा-2 के संचालन का जिम्मा केजीएमयू के हाथों से लेकर पीजीआई को सौंपा गया है। दरअसल, केजीएमयू प्रशासन खुद यह जिम्मा छोड़ना चाहता था। इस बीच पीजीआई प्रशासन ने सीएम को पत्र भेजकर ट्रॉमा-2 टेकओवर करने की इच्छा जताई। ट्रॉमा-2 के निर्माण से पहले ही इसका संचालन पीजीआई को सौंपे जाने की बात चल रही थी, लेकिन केजीएमयू के तत्कालीन कुलपति प्रो. रविकांत ने इसे कम बजट में चलाने का दावा किया। इसी कारण शासन ने यह जिम्मा केजीएमयू को सौंप दिया था।

ट्रॉमा-2 की औपचारिक शुरुआत जनवरी-2016 में हो भी गई, लेकिन डेढ़ साल बाद भी यहां मरीजों को सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। पहले तय हुआ था कि यहां आने वाले गंभीर मरीजों को भर्ती करने के बाद 24 घंटे तक मुफ्त इलाज मिलेगा, लेकिन यह सुविधा तो दूर यहां डाक्टर और दवाओं तक की कमी है। सुविधाएं न होने से कई मरीजों को बिना इलाज ही लौटा दिया जाता है।

नहीं मिला बजट

'ट्रॉमा-2' के संचालन के लिए अब तक बजट नहीं आया है। यहां अभी केजीएमयू से ही दवा और सर्जिकल आइटम की सप्लाई हो रही है। इसी कारण केजीएमयू प्रशासन खुद दवा कम्पनियों का पुराना बकाया नहीं लौटा पा रहा। इसके अलावा केजीएमयू ने रेजिडेंट डॉक्टरों समेत पैरामेडिकल स्टाफ का इंटरव्यू भी पूरा कर लिया था, लेकिन बजट न आने के कारण तैनाती नहीं हो पाई। केजीएमयू वीसी प्रो. एमएलबी भट्ट का कहना है कि ट्रॉमा-2 पीजीआई के नजदीक बना है। इस कारण पीजीआई प्रशासन बेहतर तरीके से इसका संचालन कर सकता है। ट्रॉमा-2 पीजीआई को सौंप दिया जा चुका है। मगर पीजीआई इलाज क्यों नहीं कर रहा है। इसकी कोई जानकारी नहीं है।

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