समूह की इन महिलाओं ने सीखा जैविक खेती का हुनर, अब नहीं खरीदती बाजार से कीटनाशक

ये अब बाजार में खाद और बीज खरीदने के लिए चक्कर नहीं लगाती बल्कि घर पर ही केंचुआ खाद और कीटनाशक दवाइयां बनाकर कम लागत में बेहतर उपज ले रही हैं।

Update: 2018-10-11 12:00 GMT

पूर्वी सिंहभूमि/पलामू (झारखंड)। शहर की चकाचौंध से कोसों दूर रहने वाली ग्रामीण क्षेत्र की तीन लाख से ज्यादा महिलाएं समूह से जुड़कर कम लागत में जैविक खेती करने का हुनर सीख रही हैं। ये अब बाजार से खाद और बीज खरीदने के लिए चक्कर नहीं लगाती बल्कि घर पर ही केंचुआ खाद और कीटनाशक दवाइयां बनाकर कम लागत में बेहतर उपज ले रही हैं। इनकी रोजी-रोटी का मुख्य जरिया सब्जी बेचना है इसलिए घर की खाद और दवाइयों का इस्तेमाल करके सब्जियों की बेहतर उपज ले रही हैं।


अगर हम झारखंड के पहाड़ी और सुदूर गाँवों की बात करें तो यहाँ रहने वाले परिवार सदियों से परम्परागत तरीके से खेती करते आये हैं जिससे ये खानेभर की ही उपज ले पाते थे। ये महिला किसान मेहनती तो थीं पर इन्हें खेती करने के आधुनिक तौर-तरीके नहीं पता थे इसलिए ये मेहनतकस किसान बेहतर उपज नहीं ले पाते थे। यहां की महिलाएं बेहतर तरीके से खेती करें जिससे इनकी आय बेहतर हो और ये आर्थिक रूप से सशक्त महसूस कर पायें इस दिशा में झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी द्वारा महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना के तहत इन्हें कम लागत में बेहतर उपज के तौर-तरीके सिखाए जा रहे हैं। ये महिला किसान खेती के साथ-साथ बागवानी भी कर रही हैं। जिससे इन्हें खेती के साथ बागवानी से भी इजाफा हो रहा है।

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"जब जानकारी नहीं थी तब खेतों में सालभर खाने की पूर्ति हो जाए तो बड़ी बात होती थी। अब तो खाते भी हैं और बेचते भी हैं। पिछले साल पांच एकड़ खेत में श्री विधि से धान लगाई थी 72 कुंतल पैदा हुई। ढाई सौ ग्राम अरहर बोया तो तीन कुंतल पैदा हुआ। खेत में कुल लागत 30 हजार रुपए आयी और नौ लाख 78 हजार रुपए का अनाज बेचा।" अकली टूडो (35 वर्ष) अपने धान के खेत में खड़ी बता रहीं थीं, "कुल छह एकड़ जमीन है हमारी। जिसमें पांच एकड़ में धान लगाईं थी बाकी एक एकड़ में अरहर और सब्जियां (बैगन, मिर्च, टमाटर) लगाई थी। इतनी अच्छी उपज होगी हमें भी नहीं पता था। अगर समूह से न जुड़ते न तो हमें खेती करने की अच्छी जानकारी मिल पाती और न हम इतना कम पाते।"



अकेली टूडो झारखंड के पूर्वी सिंहभूमि जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर नक्सल प्रभावित क्षेत्र गुड़ाबाँदा ब्लॉक के सूंड़गी गाँव के गड़ियाडीह टोला की रहने वाली हैं। ये 'किया झरना महिला समिति' की अध्यक्ष हैं। अकली टूडो की तरह राज्य में तीन लाख से ज्यादा महिला किसान श्री विधि से धान की खेती करके अपनी उपज को तीन गुना बढ़ा रही हैं। सखी मंडल से जुड़ी महिलाओं की विशेषता ये है कि सिर्फ एक फसल पर निर्भर नहीं रहती। खेत ज्यादा न होने की वजह से ये जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों में कई तरह की मौसमी सब्जियां उगाते हैं जिससे इनकी रोज की आमदनी हो सके।

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जब ये महिलाएं सामूहिक तरीके से मिलकर कम लागत में खेती करने का हुनर सीखती हैं तो इनका आत्मविश्वास बढ़ता है और ये मिलकर काम करती हैं। इनमे से अगर किसी एक महिला की अच्छी पैदावार हो जाती तो दूसरी महिलाएं देखादेखी खुद भी अच्छे तरीके से खेती करने लगती हैं। खेती का हुनर सीखने के बाद अब ये महिलाएं सब्जी बेचकर अपने रोज के खर्चे के साथ फसल बेचकर मुनाफा भी कमा लेती हैं जिससे ये अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला पा रही हैं।



अकली टूडो की तरह राज्य के हर जिले की हजारों महिलाएं खेती का प्रशिक्षण लेकर सब्जियों के साथ विभिन्न तरह की फसलें ले रही हैं। पलामू जिले के मेदिनीनगर ब्लॉक के खनवां गाँव में विकास स्वयं सहायता समूह की सदस्य अपने जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों में सब्जियां उगाती हैं और वहीं एक हिस्से में केंचुआ खाद, गोबर खाद भी बनाती हैं। कई किसानों ने अजोला भी लगाया है जिससे खेत को खाद मिल सके। ये महिला किसान खेत में सब्जियां उगाने से लेकर बेचने तक का काम खुद करती हैं। ये खेतों में मजदूर नहीं लगाती खुद मेहनत करती हैं और सब्सिडी में सरकार की तरफ से जो कृषि यंत्र मिले हैं उसका इस्तेमाल समूह में मिलकर करती हैं।

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खनवां गाँव की हसरत बानो (38 वर्ष) अपने पपीते के पेड़ को दिखाते हुए बता रहीं थी, "समूह में जेएसएलपीएस की तरफ से ये पेड़ आये थे जिसको 100 महिलाओं ने लगाया था। तीन हजार के करीब पपीता लगाये थे इसके नीचे जगह में टमाटर और हरी मिर्च लगा दी। खेत में कोई भी जगह हम खाली नहीं छोड़ते उसका कुछ न कुछ उपयोग कर लेते हैं।" उन्होंने बताया, "सब्जियों के साथ पपीता और केला भी बाजार में बेच लेते हैं। लाइन से लाइन जबसे धान लगा रहे हैं तबसे पैदावार अच्छी हो रही है। अब समूह की दीदी घर पर ही खाद और दवा बनाती है। समूह की दीदी अदरक, ओल, मिर्च, टमाटर, लुबिया रोज बाजार में बेचती हैं जिससे रोजाना 150-200 रुपए कमा लेती हैं जिससे इनके रोजाना के खर्चों में दिक्कत नहीं आती।"


समूह की महिलाएं आपस में एक दूसरे से बीज भी बाँट लेती हैं जिससे इन्हें बाजार में बीज खरीदने भी नहीं जाना पड़ता। कुलवंती देवी (40 वर्ष) ने बताया, "घर का खर्चा चलाने के लिए सब्जी ही एक जरिया है। इसलिए हम लोग मेहनत से खेती करते हैं। कोशिश रहती है कि बाजार में पैसा खर्च करके खेती में न लगाएं इसलिए घर पर ही खाद और दवा बना लेते हैं।"

इन दवाइयों का ये करते हैं अपने खेतों में इस्तेमाल

सब्जियों में उनकी बढ़ोत्तरी से लेकर कीड़ो से छुटकारा पाने के लिए ये महिलाएं कीटनाशक दवाइयां खुद बनाती हैं। सब्जियों में लगने वाले छोटे कीड़े के लिए नीमास्त्र और बड़े कीड़े के लिए ब्रह्मास्त्र का उपयोग करती हैं। तना छेदक कीड़ा के लिए थेथर टॉनिक, फूल झड़ने के लिए फिश टॉनिक, पोषक तत्वों के लिए द्रव जीवा अमृत, फसल में यूरिया और नाइट्रोजन के लिए अजोला का उपयोग करते हैं।

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नीमास्त्र बनाने की विधि

फसल में छोटा कीड़ा मारने के लिए इसका उपयोग करते हैं। पांच किलो नीम का पत्ता कूटकर लेना है और 10 लीटर देसी गाय का गोमूत्र लेकर 15 दिन के लिए एक बर्तन में रख देते हैं। 50 डिसमिल खेत में इतनी दवा का दो बार में छिड़काव करते हैं। एक बार छिड़काव करने के लिए 40 लीटर पानी मिलाना है।


ब्रह्मास्त्र बनाने की विधि-

फसल में बड़ा कीड़ा मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का उपयोग करते हैं। दो किलो नीम के पत्ता, दो किलो सीताफल, आधा किलो तीखी लाल मिर्च, दो किलो करेला पत्ता, आधा किलो लहसुन। पूरी सामग्री को कूचकर 10 किलो देसी गाय की पेशाब में खौलाना है।

ये आग पर तबतक खौलाना है जबतक पेशाब पांच किलो तक न बचे। इसके बाद इसे छानकर रख लेंगे। इतनी दवा एक एकड़ के लिए पर्याप्त है। सात दिन में 200 ग्राम ब्रह्मास्त्र को 40 लीटर पानी के साथ छिड़काव करना है।

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तना छेदक कीड़ा बनाने की विधि (थेथर टॉनिक)-

10 किलो थेथर पत्ता (बेसरम पत्ता) को 10 लीटर देसी गोमूत्र में तबतक खौलायेंगे जबतक कि दो लीटर न बचे। एक बार में 20 लीटर पानी में 100 ग्राम मिलाकर 50 डिसमिल खेत में छिड़काव करेंगे।

बैगन और टमाटर के फूल झड़ने के लिए फिश टॉनिक-

दो किलो मछली का अवशेष और दो किलो गुड़ को मिलाकर दो लीटर पानी में 15 दिन के लिए रखेंगे। 100 ग्राम टॉनिक को 20 लीटर पानी में मिलाकर 50 डिसमिल खेत में सात दिन के अंतराल पर करेंगे। इसका छिड़काव करने से फल चमकदार होते हैं और फूल नहीं झड़ते हैं।

द्रव जीवा अमृत (पोषक तत्व) बनाने की विधि-

दो किलो गुड़, दो किलो बेसन, पांच किलो बेसन, 10 लीटर गोमूत्र, एक किलो दीमक वाली मिट्टी। सभी सामान को लेकर 40 लीटर पानी में 15 दिन सड़ने के लिए रख देंगे। एक एकड़ खेत में पानी लगाते समय पानी की धार से खेत में बहाव कर देंगे। इससे पौधे बढ़ते हैं।  

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