कोरोना वॉरियर्स: खुद दो बार हुए कोरोना पॉजिटिव, 50 से ज्यादा शवों का कराया अंतिम संस्कार

कोरोना के आगे मेडिकल साइंस लाचार नजर आ रही थी, सरकारी इंतजाम नाकाफी हो रहे थे। अपने तक शवों का साथ छोड़ रहे थे ऐसे में कुछ लोग इंसानियत की नई मिसाल कायम कर रहे थे। "आपदा के मददगार" सीरीज में इन्हीं की कहानियां हैं। आज के कोरोना वॉरियर्स हैं लखनऊ के रणजीत सिंह।

Update: 2021-06-02 11:21 GMT

आपदा के मददगार लखनऊ के रणजीत सिंह।

लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। खुद दो बार कोरोना पॉजिटिव हुए रणजीत सिंह की रिपोर्ट जैसे ही निगेटिव आती थी वो अपना काम शुरु कर देते थे। कोरोना काल में उनका काम था अपनी जीप से शवों को अस्पताल से श्मशान घाट, या उनके घर, गांवों तक पहुंचाना। कई शव ऐसे भी थे जिनका अंतिम संस्कार करने वाला कोई नहीं था, रणजीत खुद से उनका अंतिम संस्कार भी करते थे। रणजीत कोरोना की दूसरी लहर में 50 से ज्यादा शवों अंतिम संस्कार करवा चुके हैं।

"6 मई को मेडिकल कॉलेज (KGMU) में भर्ती मेरे पिता जी खत्म हो गए। शव को ले जाने के लिए 6000 रुपए मांग रहे थे, पैसे की दिक्कत तो थी ही। फिर एक परिचित पत्रकार ने रणजीत सिंह का नंबर दिया। वो 20 मिनट में अपनी गाड़ी लेकर आ गए। बोले सुबह (श्मशान घाट) के लिए जरुरत हो तो बुला लेना।" सुजीत कुमार (30वर्ष) बताते हैं। वो लखनऊ में फैजुल्लागंज इलाके में रहते है।

सुजीत आगे कहते हैं, "ऐसे वक्त में जब अपने मुंह चुरा रहे थे एक ऐसे इन्सान ने मदद की जिसे हम पहले कभी नहीं मिले। मुसीबत में जो काम आये वही अपना है। रणजीत जी ने जो किया हम कभी नहीं भूलेंगे।"

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कोरोना की दूसरी लहर में कई परिवारों में ऐसा हुआ तब पूरे के पूरे परिवार कोविड से संक्रमित हो गए थे। कई परिवारों में ऐसा हुआ जब घर के सदस्य अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती भी हुए। लखनऊ के राजाजीपुरम में रहने वाले सरकारी शिक्षक अविनाश त्रिवेदी (बदला नाम) खुद, उनकी मां, बेटा और बहू कोविड पॉजिटिव थे। मां और अविनाश का घर पर इलाज जारी था बेटा और बहू अस्पताल में भर्ती थे। इसी दौरान उनकी मां की मौत हो गई।

रणजीत गांव कनेक्शन को बताते हैं, "उन्होंने (अविनाश) मुझे फोन करके मदद मांगी। उनकी मां के अंतिम संस्कार में सिर्फ मास्टर साहब थे। हम दोनों ने मिलकर माताजी का अंतिम संस्कार तो किया। ऐसे कई केस हैं।"

रणजीत सिंह गाँव कनेक्शन को बताते हैं, " कोरोना ने ऐसी तबाही और डर मचाया है कि कई ऐसे शवों का अंतिम संस्कार कराना पड़ा,जिनके करीबी रिश्तेदार तक अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हुएI इतनी जिन्दगी में पहली बार मैंने और तहजीब के शहर लखनऊ ने शायद पहली बार ऐसा वक्त देखा होगा की जब अर्थी /मिटटी के पीछे चलने वालों लोगों की संख्या 4 से भी कम हुई होगीI"

रणजीत सिंह पुराने लखनऊ के डालीगंज वार्ड के पूर्व पार्षद हैं लेकिन उनकी पहचान इससे कहीं ज्यादा सामाजिक कार्यों को लेकर है। वो लखनऊ में गोमती नदी की सफाई, पूरे शहर में पीपल और बरगद के पेड़ के नीचे छोड़ दी जाने वाली मूर्तियों का विसर्जन अभियान चला रहे हैं। ताकि लोग पूजा के बाद मूर्तियों को ऐसे सड़क किनारे न छोड़े।

रणजीत सिंह मार्च के आखिरी हफ्ते में कोरोना पॉजिटिव हुए थे, 14 दिन होमआईसोलेशन में रहने के बाद जांच कराई और रिपोर्ट निगेटिव आ गई। इस दौरान लखनऊ कोरोना केस काफी बढ़ चुके थे। लोग अस्पताल, ऑक्सीजन, बेड के लिए भटक रहे थे और श्मशान घाटों में अंतिम संस्कार के लिए कतार लगनी शुरु हो गई थी।

रणजीत सिंह ने दोबारा रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद अपनी निजी गाड़ी को अंतिम यात्रा के वाहन में बदला और लोगों की मदद के लए निकल पड़े। वो कोरोना काल में कई इलाकों में टैंकर के साथ सैनेटाइजेशन का काम करवा रहे हैं। जिसके लिए प्रदेश के डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा, विधायक नीरज बोरा समेत कई जनप्रतिनिधि और अधिकारी उनकी सराहना कर चुके हैं। 



वो मनकामेश्वर वार्ड ही नहीं पुराने लखनऊ में टैंकर लेकर सैनेटाइजेशन का भी काम कर रहे हैं और इसके लिए उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा , विधायक डॉ नीरज बोरा , भाजपा नेता अभिजात मिश्रा ने रणजीत की सार्वजानिक मंच से प्रशंशा की हैI

रणजीत सिंह बताते हैं, "मैं मार्च महीने से ही कालोनियों में बराबर सैनेटाइजेशन का काम कर रहा था। इसी दौरान जांच कराई तो पता चला कोरोना हो गया है। तो घर में खुद को आईसोलेट कर लिया। इस दौरान लखनऊ तो छोड़ो मेरे ही वार्ड में जाने कितने लोगों की मौत हो गई।"

वो आगे बताते हैं, "मरीजों के अस्पताल तक ले जाने, शवों को लाने ले जाने के लिए मनमाने पैसे वसूले जा रहे थे। एक तो बीमारी ऊपर से ऐसी खबरें मन परेशान कर रही थी। इसलिए जैसे ही मेरी तबीयत ठीक हुई। मैं अपनी जीप को शव वाहन में बदला और काम शुरु कर दिया।"

रणजीत के मुताबिक कुछ घटनाएं ऐसी हुई हैं तो भूली नहीं जाएंगी। वो कहते हैं, "अभी कुछ रोज पहले लखनऊ के मोहनलालगंज के उतरठिया निवासी प्रवीन शुक्ला (बदला हुआ नाम) की 14 साल की बेटी को तेज बुखार आया और घरवालों ने उसे सिविल अस्पताल में भर्ती कराया इलाज के दौरन उसकी मौत हो गयी। परिवार बेहद गरीब था। परिवार की इच्छा के अनुसार हमने उसका बैकुंठ धाम में अंतिम संस्कार करवा दिया। बाद में उन्हें घर तक छोड़कर आया।"

ऱणजीत के मुताबिक उन्होंने सिविल अस्पातल में एक वॉर्ड ब्वॉय को अपना नंबर दे रखा था कि अगर कोई जरुरतमंद लगे तो उसे नंबर देना। उतरठिया केस की जानकारी उन्हें इसी वॉर्ड ब्वॉय के जरिए उन्हें हुई थी।

कुछ हिसाब नहीं लगाया कितने पैसे खर्च हुए। न मेरे पास उनकी जानकारी है जिन्हें मदद की। मेरा कोई एनजीओ या सरकारी योजना तो है नहीं तो हिसाब किताब रखा जाए। इसलिए जो बन पाया, जो सामने आता गया वो करते गए।- रणजीत सिंह, पूर्व पार्षद और समाजसेवी

अब तक इन सब कामों में कितना खर्च हुआ? इस सवाल के जवाब में वो कहते हैं, " कुछ हिसाब नहीं लगाया। न मेरे पास उनकी जानकारी है जिन्हें मदद की। मेरा कोई एनजीओ या सरकारी योजना तो है नहीं तो हिसाब किताब रखा जाए। इसलिए जो बन पाया, जो सामने आता गया वो करते गए।"

शव पहुंचाने से लेकर अंतिम संस्कार कराने में ज्यादातर काम वो अकेले करते थे। रणजीत के मुताबिक वो नहीं चाहते कि कोई दूसरा उनकी तरह जान जोखिम में डाले।

रणजीत बताते हैं एक दिन उपमुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा ने कहा," रणजीत तुम्हारे टेम्परामेंट का आदमी मिलना मुश्किल है।"

लखनऊ के सिविल डिफेन्स के डिविजनल वार्डेन विष्णु तिवारी गाँव कनेक्शन को बताते, "हर सामाजिक कार्य में रणजीत का सहयोग सबसे ज्यादा होता है लेकिन इस बार बीमारी से उठने के बाद जिस तरह रणजीत ने काम किया वो भावुक कर देने वाला है मेरे ही मन में नहीं आमतौर पर लोगों के मन में रणजीत के प्रति सम्मान बढ़ गया है।"

लोगों से मिल रही सराहना पर वो कहते हैं, "ऐसे शब्दों से खुशी होती है और संतुष्टि मिलती है कि चलो कुछ लोगों के काम तो आया लेकिन मैं नहीं चाहता कि जो त्रासदी हमने देखी है हमारी आने वाली पीढ़िया भी देंगे। हमें जागना होगा, प्रकृति अनूकूल जीवन और प्रकृति को समझना होगा।"

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