इस गोशाला में नहीं है कोई चाहरदीवारी, खुले में घूमती हैं गाय 

Update: 2018-04-28 16:29 GMT
मुहम्मद अतीक ने शुरू की ये गोशाला

जोधपुर। एक तरफ लोग बेकार गायों को छोड़ दे रहे हैं, वहीं पर राजस्थान में एक ऐसी भी गोशाला है जो इन छुट्टा गायों के लिए आश्रय बन रही है। इस गोशाला में हर गाय की है अपनी अलग पहचान और नाम है।

राजस्थान के जोधपुर शहर में रेलवे स्टेशन से करीब 14 किमी. की दूरी पर बुझावड़ गांव में मारवाड़ मुस्लिम एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसायटी द्वारा इसे संचालित किया जाता है। वर्ष 2004 में शुरू हुई इस अनोखी गौशाला में कोई चारदीवारी नहीं है, गाएं खुले में मन मुताबिक घूमती हैं।

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अपंग, असहाय, परित्यक्त, बांझ और वृद्ध गायों को आश्रय देने के इरादे से जोधपुर के अग्रणी शिक्षा संस्थान मारवाड़ मुस्लिम एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसायटी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मुहम्मद अतीक की ओर से इस आदर्श गौशाला की स्थापना की गई।

मुहम्मद अतीक बताते हैं, "बिना किसी सरकारी अनुदान के सोसायटी ने गायों की सेवा के लिए पूरा 'फण्ड' दिया है। अब तो आस पास के कई गांव कस्बों से गौ-प्रेमी हरा चारा सहायता स्वरुप भेजने लगे हैं।"

शुरूआत में करीब 70 गायें रखी गईं, एकबार तो 150 से भी ज्यादा गायें हो गईं। तब सोसायटी के लिए इतना खर्च उठाना मुश्किल होने लगा, सोसायटी ने स्वस्थ और ब्याहनें वाली गायों को स्थानीय किसानों को निःशुल्क सौंप दिया, ताकि गौशाला का संचालन सही से किया जा सके। आज इस गौशाला में 225 से अधिक गायें पल रही हैं।

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मुहम्मद अतीक ने बताया कि इस गौशाला के निकट, अनेक गांवों में शहर और गाँवों की आवारा गायें किसान भाइयों के खेतों में नुकसान करती थीं। बदले में कुछ गायों को चोटें भी झेलनी पड़तीं। कुछ लोग इन गायों को पकड़कर बेच भी देते। मैंने संस्था में प्रस्ताव रखकर गौशाला की योजना बनाई। हमने चारा-पानी और छाया की सुविधाएं जुटाकर ऐसी बेसहारा गायों को गौशाला में दाखिल किया।

शुरूआती कठिनाइयों के बाद हमने स्थानीय किसान भाइयों से भी चारा-पानी खरीदना शुरू किया, बाद में एक टैंकर की व्यवस्था की। पहले करीब साठ हजार रूपये प्रतिमाह खर्चा पड़ता था, जो बढकर 75-80 हजार हो गया है। गायों की बढ़ती संख्या को देखते हुए हमने यह नीति भी अपनाई की जो कोई गृहस्थ इन्हें पालना-चाहता हो, हम बिना किसी मूल्य के सिर्फ उसकी जांच पड़ताल के आधार पर उसे गाय सौंप देंगे।

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बुझावड़ गांव की इन पहाड़ियों में स्थित इस गौशाला का संचालन आसान नहीं। पानी का प्राकृतिक स्त्रोत नजदीक नहीं, चारे परिवहन व्यवस्था भी मंहगी है, साथ ही बीमार गायों के इलाज में बड़ी दिक्कतें आती हैं, लेकिन समाजसेवी और शिक्षाविद मुहम्मद अतीक ने इन सब परेशानियों से मुक्ति पाने की भी समुचित व्यवस्था की है।

पीपाड़ से आए हकीम खान, उनकी पत्नी अल्लाहरक्खी, अब्दुल सत्तार और शहाबुद्दीन इन गायों की सेवा में 24 घंटे हाजिर रहते हैं। अल्लारक्खी तो इन गायों को अपना परिवार मानकर हरपल निगरानी रखती हैं। मुहम्मद अतीक खुद इस गौशाला का नियमित निरीक्षण करते हुए हरा चारा, सूखा चारा, पानी और दवाओं की व्यवस्था करते हैं।

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मुहम्मद अतीक ने दूरदर्शिता अपनाते हुए कृषि मण्डी, सब्जी मण्डी में व्यक्तिशः संपर्क करके यह व्यवस्था भी जुटाई कि पुरानी फेंकने लायक सब्जीयों को वे गौशाला की गाड़ी में लादकर भेज दें। यह वाहन प्रतिदिन बिलाड़ा से रिजका भी लाता है।

गौशाला प्रभारी अब्दुल सत्तार बड़े हर्ष के साथ बताते हैं कि प्रतिदिन गायों को चरवाहे के साथ खुला चरने के लिए भी भेजा जाता है। इससे गायें स्वस्थ रहती हैं। इन गायों में गौशाला के प्रति इतना लगाव है कि बिना कहीं पर इधर उधर भटके हुए शाम के वक्त गौशाला लौट जाती हैं। इन गायों के नाम भी रोचक हैं, गंगा, अंजलि, शिवड़ी, कालकी, धोलकी, मिसना, मरगड़ी आदि। गायों का नियत समय पर लौट आना, इस गौशाला के सुचारू प्रबंधन का सबूत है। आपको जानकर हैरानी होगी कि यह ऐसी गौशाला है जिसके कोई भी चारदीवारी या दरवाजा नहीं है, सभी व्यवस्थाएं खुले में आसमान के नीचे की गई हैं।

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अतीक साहब भारतीय परंपरा के पुराने रिवाज की पालना में आज भी गौशाला की गायों के दूध को बेचने के खिलाफ हैं, उन्होंने व्यावसायिक दृष्टिकोण नही अपनाया। शायद यही वजह है कि यहां के बछड़े भी स्वस्थ हैं और माएं भी बच्चों को पूरा दूध पिलाते हुए स्वस्थ अनुभव करती हैं।

मोईनुद्दीन चिश्ती

(लेखक कृषि एवं पर्यावरण पत्रकार हैं)

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