बहुत खास है कतर्नियाघाट के जंगल में चलने वाला मोगली स्कूल, जहां के टीचर हैं एसटीपीएफ के जवान

यहां शाम को संचालित कक्षाओं में करीब 150 से ज्यादा बच्चे आते हैं। कई बच्चे तो 10 किलोमीटर दूर जंगल के दूसरे सिरे से भी पढ़ने आते हैं।

Update: 2018-10-03 09:16 GMT

बहराइच। जंगल के बीचों-बीच चलने वाला ये स्कूल बहुत खास है, क्योंकि यहां के टीचर कोई आम टीचर नहीं बाघों के संरक्षण के गठित स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स (एसटीपीएफ) के जवान हैं। ये जवान बाघों की सुरक्षा तो कर ही रहे हैं, साथ ही वन क्षेत्र में रहने वाले बच्चों को भी पढ़ा रहे हैं।

दुधवा कतर्निया वन क्षेत्र के फील्ड निदेशक डॉ. रमेश पाण्डेय बताते हैं, "एसटीपीएफ का गठन मूलतः बाघों और वन्यजीवों की सुरक्षा और मानव वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए हुआ है। इस बल के उपनिरीक्षक सतेन्द्र कुमार ने मोतीपुर रेंज में तैनाती के दौरान इलाके में निवासरत कर्मचारियों तथा गाँव वासियों के बच्चों को कुछ दिन पहले पढ़ाना शुरू किया था।"


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उन्होंने आगे बताया, "कुमार ने वन क्षेत्र में रहने वाले नागरिकों की काउंसिलिंग की और उन्हें जागरूक करते हुए बच्चों को जंगल में लकड़ी बीनने के बजाय, उनका भवष्यि सुरक्षित करने के उद्देश्य से वद्यिालय भेजने को प्रेरित किया। इस मकसद से खुले ह्यमोगली वद्यिालयह्य नामक स्कूल के बच्चों के लिए पठन पाठन सामग्री डब्ल्यूडब्ल्यूएफ मुहैया करा रहा है।

पाण्डेय ने बताया कि मोतीपुर ईको पर्यटन परिसर में संचालित मोगली विद्यालय का अभिनव प्रयोग सफल होता दिख रहा है। यहां शाम को संचालित कक्षाओं में करीब 150 से ज्यादा बच्चे आते हैं। कई बच्चे तो 10 किलोमीटर दूर जंगल के दूसरे सिरे से भी पढ़ने आते हैं।

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विद्यालय में आने वाले अधिकतर बच्चे ऐसे भी हैं जो कि रोजमर्रा के कार्यों में अपने परिवार का हाथ बटाते हैं और समय निकाल पढ़ाई के लिए भी जाते हैं। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के परियोजना अधिकारी दबीर हसन ने बताया कि रूडयार्ड किपलिंग की कालजयी रचना जंगल बुक के सभी काल्पनिक पात्र यदि किसी एक समय में अपने हाथों में कापी पेन लेकर एक स्थान पर एकत्र हो जायें, तो वह नजारा कैसा होगा। ऐसे नजारों की चाह रखने वाला कोई भी व्यक्ति दिन के तीसरे पहर वन क्षेत्राधिकारी मोतीपुर ईको पर्यटन परिसर में आकर यह देख सकता है। 

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