किसान संगठनों की बैठक में फैसला- कृषि कानूनों के विरोध में 3 नवंबर को देश के हाईवे पर होगा चक्का जाम

Update: 2020-10-08 15:41 GMT

कृषि कानूनों के विरोध में किसान संगठन 3 नवंबर को देशभर में हाईवे जाम करेंगे। हरियाणा के कुरुक्षेत्र में बृहस्पतिवार (8अक्टूबर) को कई राज्यों के किसान संगठनों की सामूहिक बैठक में ये फैसला लिया गया। किसान संगठन तीनों अध्यादेशों को वापस लेने, एमएसपी को लेकर कानून बनाने, किसानों का कर्ज़ा माफ करने और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक सी-2 लागत देने की मांग कर रहे हैं।

भारतीय किसान यूनियन (चढूनी) के अध्यक्ष गुरुनाम सिंह चढूनी ने गांव कनेक्शन को फोन बताया, सभी राज्यों के संगठनों ने मिलकर फैसला किया है कि 3 नवंबर को सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक हाईवे जाम करेंगे। इस बीच कृषि कानूनों के खिलाफ स्थानीय स्तर पर हमारी लड़ाई जारी रहेगी। " 

आज हुई बैठक में हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, महाराष्ट्र, तमिलनाडु समेत कई राज्यों के किसान संगठनों के मुखिया और उनके प्रतिनिधि पहुंचे थे। बैठक में शामिल हुए राष्ट्रीय किसान संगठन के प्रदेश अध्यक्ष (हरियाणा) जसवीर सिंह भाटी ने बताया, "कृषि कानूनों का असर अभी से दिखने लगा है। हरियाणा में धान खरीद में बहुत दिक्कत हो रही है। हम लोग स्थानीय स्तर पर तो लगातार धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। आगे भी मंडियों का घेराव करेंगे। लेकिन काले कृषि कानूनों का वापस लेने के राष्ट्रीय दबाव बनाना जरुरी है इसलिए देशभर के किसान संगठनों को बुलाया गया था, करीब 12 राज्यों के किसान संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे, जिसमें हाई जाम का निर्यण लिया गया है।"

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कृषि कानूनों को किसान विरोधी बताते हुए पंजाब और हरियाणा के किसानों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। पंजाब में एक अक्टूबर से कई स्थानीय किसान संगठनों ने चक्का जाम कर रखा है। हरियाणा में भी स्थानीय स्तर पर लगातार विरोध, मोर्चे और रैलियों का आयोजन किया जा रहा है। छह अक्टूबर को किसान संगठनों ने सिरसा में डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला और ऊर्जा मंत्री के घर का घेराव करने की कोशिश की थी। सिरसा के दशहरा मैदान में हुई रैली में हरियाणा की 17 किसान यूनियन समेत कई दूसरे संगठन शामिल हुए थे, डिप्टी सीएम के घर का घेराव करने जा रहे किसानों पर पुलिस ने वाटर कैनन का इस्तेमाल और आंसू गैस के गोले भी छोड़े थे। दूसरे दिन स्वराज किसान के संयोजक योगेंद्र यादव समेत 100 से ज्यादा किसानों को हिरासत में लिया गया था, जिन्हें बाद में छोड़ दिया गया था।

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पंजाब में 30 किसान यूनियन कृषि बिलों का विरोध कर रही हैं। बीजेपी नेताओं ने इन किसान नेताओं की दिल्ली में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से वार्ता कराने की कोशिश की, लेकिन किसान संगठनों ने बिल पर कोई फैसला हुए बिना मिलने से इनकार कर दिया। हरियाणा में भी विरोध जारी है लेकिन इन संगठनों को स्थानीय बीजेपी संगठन या सरकार की तरफ से बातचीत कोई बुलावा नहीं आया है।

हरियाणा में किसान नेता गुरुनाम सिंह चढूनी ने गांव कनेक्शन को बताया, "हमें तो कोई बातचीत का बुलावा नहीं आया, लेकिन पंजाब में जिन्हें आया था उन्होंने भी इनकार कर दिया है। पंजाब में कांग्रेस की सरकार है तो हालात दूसरे हैं, लेकिन हरियाणा में भी किसानों का आंदोलन लगातार जारी रहेगा। अभी हमारा किसान जीरी (धान) बेचने में फंसा है। हरियाणा में मंडियों के बाहर धान के ढेर लगे हैं सरकार सही से खरीद नहीं कर रही है। किसान अपने काम में उलझे हैं। इसीलिए हमने राष्ट्रीय आंदोलन के लिए 3 नवंबर की तारीख तय की है।"

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ये तीन कृषि कानून देश हुए हैं लागू

राष्ट्रपति रामनाथ गोविंद के हस्ताक्षर 27 सितंबर से देश में तीनों नए कृषि कानून लागू हो गए हैं। कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल ( Farmers' Produce Trade & Commerce (Promotion & Facilitation) Bill 2020, कृषक (सशक्ति करण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020 Farmers (Empowerment & Protection) Agreement on Price Assurance & Farm Services Bill 2020 और आवश्यक वस्तु अधिनियम 2020 (The Essential Commodities (Amendment) Bill) 2020 देश में अब कानून बन गए हैं।

सरकार का कहना है नए कानून देश में किसानों और कृषि की दशा में अमूलचूल परिवर्तन लाएंगे, किसानों की आमदनी बढ़ाएंगे, कृषि में निजी निवेश होगा जबकि किसान संगठनों और विपक्ष का कहना है कि इससे किसान का हक एमएसपी खत्म हो जाएगी, मंडी व्यवस्था पीछे के रास्ते से खत्म की जाएगी और खेती पर बड़ी कंपनियां हावी हो जाएंगी। हालांकि सरकार सभी आरोपों को निराधार और किसान संगठनों के विरोध को राजनीति से प्रेरित बताती है।

क्या है सी-2 और एमएसपी का गणित

सी-2 वो लागत होती है जिसमें फसल उत्पादन में नगदी और नकदी के साथ ही जमीन का किराया, कृषि उपकरणों का किराया, कृषि पूजियों पर लगने वाला ब्जाज भी शामिल होता है। केंद्र सरकार ने साल 2018 में वादा किया था कि उन्होंने स्वामीनाथन आयोग कि सिफारिशों के मुताबिक लागत से डेढ़ गुना एमएसपी दी है लेकिन किसान संगठन नकारते आ रहे हैं। उनका कहना है सरकार सिर्फ नगद लागत को जोड़ रही है वो भी नाकाफी है। एमएसपी से संबंधित पूरी खबर यहां पढ़ें- 

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