कृषि कानूनों के खिलाफ फिर किसानों की हुंकार, पंजाब में राशन लेकर रेलवे ट्रैक और टोल प्लाजा पर गाड़ा तंबू

नए कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब में किसानों ने रेलवे ट्रैक, टोल पर कब्जा किया है तो कई जिलों में बड़ी कंपनियों जैसे वालमार्ट, रिलायंस जैसे स्टोर बंद करवा दिए हैं। 2 अक्टूबर से दूसरे किसान संगठन देश के अऩ्य राज्यों में भी प्रदर्शन करेंगे।

Update: 2020-10-01 12:15 GMT
कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब में प्रदर्शन करते किसान।

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब के किसानों ने एक बार फिर मोर्चा खोल दिया है। किसान संगठनों ने भठिंडा समेत कई जगहों पर रेलवे ट्रैक, टोल प्लाजा पर तंबू लगा दिए हैं। मॉल और वालमार्ट, रिलायंस जैसी कंपनियों के स्टोर पर कब्जा कर लिया है। किसानों का ये चक्का जाम अनिश्चितकालीन है। वे अपने साथ खाने-पीने का सामान भी लेकर आए हैं। वहीं देश के कई दूसरे राज्यों में भी किसान दो अक्टूबर (गांधी जयंती) से आंदोलन शुरु किया है।

इससे पहले किसान 25 सितंबर को भारत बंद कर चुके हैं। देश के अलग-अलग राज्यों के किसान 14 सितंबर से ही कृषि अध्यादेशों का विरोध कर रहे हैं। मानसून सत्र के शुरुआत से ही किसान संगठन कृषि अध्यादेशों में सुधार, न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर कानून बनाए जाने की मांग को लेकर किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी में आंदोलन की आंच सबसे ज्यादा है लेकिन भारत बंद में देश के कई राज्यों के किसान शामिल हुए थे। 

पंजाब में भारतीय किसान यूनियन (स्थानीय संगठन) के कार्यकर्ताओं ने भठिंडा समेत कई जिलों  (सिंधू बॉर्डर के आसपास भी) में अपने तंबू गाड़े हैं। भठिंडा में पेट्रोल पंप, वालमार्ट स्टोर, टोल प्लाजा और रेलवे ट्रैक पर किसान ने तंबू लगा दिया है। ट्रैक्टर-ट्रालियों में खाना और राशन भरकर साथ में लाए हैं।

भारतीय किसान यूनियन एकता उगरहा के प्रधान सिंगारा सिंह मान ने (भठिंडा से) गांव कनेक्शन को फोन पर बताया, "आज से हमने पंजाब में सारी बड़ी कंपनियों के कामकाजों जैसे वालमार्ट, पेट्रोल पंप, रिलायंस माल, स्पेंसर समेत दूसरे सभी बड़े स्टोर बंद करवा दिए हैं। किसान उनके बाहर कब्जा जमाए बैठे हैं। टोल प्लाजा को फ्री कर दिया गया है। रेलवे ट्रैक को जाम कर दिया गया है।"

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किसान संगठनों ने केंद्र की एनडीए सरकार के साथ ही पंजाब की कैप्टन अमरेंदर सिंह सरकार के खिलाफ भी मोर्चा खोल रखा है। सिंगारा सिंह मान कहते हैं, "हमारी लड़ाई किसी एक पार्टी से नहीं है। हमारी लड़ाई हर उस व्यक्ति और पार्टी से है जो किसान और खेती के खिलाफ है और कॉरपोरेट का साथ दे रही है। कैप्टन सरकार भी सिर्फ किसानों के साथ होने का दिखावा कर रही है अगर किसानों के साथ है को इन बिलों को रद्द कराए।"


भठिंडा के किसान मेवा सिंह ने मीडिया से बातचीत में कहा, "आज हम 2,000 बंदों के लिए रोटी बनाकर लाए हैं लेकिन कल से खाना यहीं बनेगा, हमें नहीं पता आंदोलन एक हफ्ता, दो महीना कब तक चलेगा।" किसान वीर सिंह ने कहा, "जब तक सरकार बिल वापस नहीं लेगी हम यहां से हटेंगे नहीं, किसान जान देने को तैयार हैं।"

वहीं, हरियाणा में भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी गुट) और दूसरे किसान संगठनों ने कुरुक्षेत्र में 8-9 अक्टूबर को देशभर के किसान संगठनों की बैठक बुलाई है।


बीकेयू हरियाणा के अध्यक्ष गुरुनाम सिंह चढूनी ने गांव कनेक्शन फोन पर बताया, "कृषि कानूनों के खिलाफ अब किसान संगठनों को मिलकर लड़ना होगा। कुरुक्षेत्र में हमने 8 को एक बैठक बुलाई है जिसमें सभी संगठन मिलकर तय करेंगे कि आगे क्या करना है।" हरिनाम सिंह चढ़ूनी के मुताबिक उन्होंने सभी राज्यों के किसान संगठनों को बैठक में शामिल होने को कहा है।

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देश में राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल ( Farmers' Produce Trade & Commerce (Promotion & Facilitation) Bill 2020, कृषक (सशक्ति करण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020 Farmers (Empowerment & Protection) Agreement on Price Assurance & Farm Services Bill 2020 और आवश्यक वस्तु अधिनियम 2020 (The Essential Commodities (Amendment) Bill) 2020 देश में कानून बनकर लागू हो गए हैं। राष्ट्रपति ने संसद मानसून सत्र में दोनों सदनों से पास इन बिलों पर 27 सितंबर को हस्ताक्षर किए थे। हालांकि सरकार लगातार कह रही है कि किसान कानून किसानों के हित में हैं इससे उनकी आमदनी बढ़ेगी और खेती की दशा सुधरेगी।

मानसून सत्र के दौरान से ही 200 से ज्यादा किसान संगठनों के संघ अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति, शेतकरी संघटना, भारतीय किसान यूनियन (टिकैत), भारतीय किसान यूनियन (चढूनी, हरियाणा), राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन, छत्तीसगढ़ किसान सभा, भारतीय कृषक मजदूर संघ, किसान स्वराज, नेशनल साउथ इंडियन रिवर इंटरलिंकिंग किसान एसोसिएशन, आशा किसान, राष्ट्रीय किसान सभा, भारतीय किसान यूनियन (भानू गुट) समेत देशभर के तमाम किसान संगठन विरोध कर रहे हैं। 


अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (AICC) ने 2 अक्टूबर से देशभर के गांवों में अलग तरह के आंदोलन की शुरुआत की घोषणा की है। समिति के संयोजक सरकार वीएम सिंह ने कार्यकर्ताओं को जारी अपने वीडियो संदेश में कहा, "9 अगस्त 1942 को हमारे पूर्वज घरों से बाहर निकले थे, उन्होंने कहा था कि जब तक अंग्रेज देश से बाहर नहीं निकलेंगे हम चैन से नहीं बैंठेंगे, उसी तरह हमने कहा था जब तक कॉरपोरेट को खेती को बाहर नहीं निकालेंगे हम चैन से नहीं बैठेंगे, ये काले कानून वापस नहीं लिए जाते हम संघर्ष करेंगे।"

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उन्होंने आगे कहा कि, किसान संगठनों ने 25 तारीख भारत बंद किया, 28 सितंबर को भगत सिंह की प्रतिमा के पास जाकर किसानों उनसे ताकत मांगी कि देश और धरती माता को बचाने के लिए हम आपकी तरह लड़ाई लड़ेंगे। अब दो अक्टूबर (गांधी जयंती) से आप सभी किसान भाई अपने गांवों के बाहर तख्तियां लगा दो कि को भी बीजेपी नेता गांव में तब घुसे जब बिल वापस ले लिए जाएं। बिल का साथ देने वाले विधायकों-सांसदों का बॉयकाट करो।"

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के मुताबिक इस दौरान धान की कटाई चल रही है, जिसकी कई राज्यों में सरकारी खरीद शुरु हो चुकी है, जबकि कई राज्यों में होनी है। धान खरीद के बाद किसान रबी की फसलों (गेहूं, सरसों, चना की बुवाई) करेंगे उसके बाद एक समय तक करके सभी किसान दिल्ली की तरफ कूच करेंगे।

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