इबादत का पवित्र महीना... रमजान

कहते हैं रमजान वो महीना है जब जन्नत के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं, और दोज़ख के दरवाजों पर ताला लग जाता है, जब इबादतें खुदा तक पहुंचती हैं और जब सारे गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं।

Update: 2018-05-29 13:24 GMT

लखनऊ। अमीनाबाद में दोपहर की अजान, बेहाल कर देने वाली गर्मी, चेहरे को छू कर निकलती गर्म हवा और मार्केट में थोड़ी चहल पहल। ये माहौल है इबादत के सबसे पवित्र महीने.. रमजान का। रमजान इस्लाम धर्म के लोगों के लिए इबादत का महीना है।

कहते हैं रमजान वो महीना है जब जन्नत के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं, और दोज़ख के दरवाजों पर ताला लग जाता है, जब इबादतें खुदा तक पहुंचती हैं और जब सारे गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं। रमजान या रमदान इस्लामी कैलेंडर का नौवा महीना है। इस्लाम धर्म के मुताबिक 1610 ईसा पश्चात पैग़म्बर मोहम्म्द ने एक रेगिस्तान से धार्मिक यात्रा शुरू की, जिसे आज सऊदी अरब के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है की इसी दिन मोहम्मद को अल्लाह ने एक देवदूत गेब्रियल के जरिए क़ुरान के कुछ राज बताए।

इस्लाम विश्व में दूसरा सबसे बड़ा समूह है। भारत की जनसंख्या का 14.2 प्रतिशत हिस्सा इस्लाम धर्म को मानता है।

ये भी पढ़ें : वीडियो : अपनी संतान के लिए माँ के त्याग की पहचान है सकट त्योहार ( भाग - एक ) 

भीषड़ गर्मी और रमजान


रमजान शब्द रामदी या अर-रामद के अरबी मूल शब्द से लिया गया है, जिसका मतलब है गर्मी या सूखापन और इस साल तो मानो रमजान का महीना अपने साथ बैचैन और चिड़चिड़ी कर देने वाली असहनीय गर्मी और सूखापन लेकर ही आया है। लखनऊ में चौक चौराहा हो, निशातगंज में करामात मार्केट हो, या अमीनाबाद मार्केट हो तेज़ धूप और गर्म हवाओं के बीच दोपहर में भीड़ सड़कों पर कम ही नज़र आती है। इस दौरान रोज़ेदारों को आप जल्दी जल्दी अपना काम निपटाते और घर पहुंचने की जल्दी में पाएंगे, वजह होती है कभी गर्मी तो कभी नवाज़ का वक़्त हो जाता है। चिलचिलाती धूप से आपका छोटा सा सफर आपको लंबा लग सकता है। सफर के शुरुआत के कुछ देर बाद ही आप अपने आप को पसीने से भीगा हुआ पाएंगे और तब याद आएगी आपको अपने गमछे या रुमाल की।

ये भी पढ़ें : त्योहार है एक, नाम हैं कई, हर जगह का खाना है ख़ास

लखनऊ का अमीनाबाद, चौक चौराहा और करामात मार्केट

इतनी गर्मी के बीच भी लखनऊ के अमीनाबाद मार्केट में आपको दुकानों पर खरीदारी करते लोग नज़र आएंगे। पुरुषों से ज़्यादा यहां आपको नकाबपोश महिलाएं नज़र आएंगी। कपड़े हो, ज्वेलरी हो, खाने-पीने की चीज़ें हो या सजावट का सामान। मुस्लिम महिलाएं आपको खरीदारी करते नज़र आ ही जाएंगी।

फातिमा भी इन मुस्लिम खरीदारों में से एक हैं। फातिमा एक स्कूल टीचर हैं, शुगर की मरीज होने के वजह से वो रोजा नहीं रखती। फातिमा बताती हैं, "रमज़ान में रूह अफज़ा पिया जाता है। ये ठंडा शरबत आपको गर्मी में राहत देता है। रूह अफज़ा को लाल शरबत भी कहा जाता है। गुलाब की पंखुड़ियों से बना ये शरबत लोगों को बहुत पसंद आता है।"


करामात मार्केट में मुहम्मद आकिल रमजान के दौरान ही अपनी दूकान लगाते हैं। आकिल बताते हैं कि रमजान में खरीदारी बहुत होती है। खजूर और सेवइयां खरीदी जाती हैं। सुबह दुकानदारी में कुछ ख़ास फायदा नहीं होता, लेकिन शाम को रोजा इफ्तार के बाद कस्टमर्स बढ़ जाते हैं।

लखनऊ चौक चौराहे पर पिछले एक साल से जूस की दुकान चलाने वाले इमरान बताते हैं, "इस साल रमजान में बहुत ज्यादा गर्मी पड़ गई है। जूस पीने के लिए कस्टमर्स की भीड़ ज्यादातर रात में ही होती है, दिन में तो बुरा हाल होता है, गर्मी की वजह से पब्लिक भी बाहर नहीं निकलती। रमजान साल में एक बार आता है और हमारे लिए ये सबसे अव्वल महीना होता है इबादत का।"

चौक चौराहे पर भले आपको गर्मी के बीच कस्टमर्स कम दिखें पर फुटपाथ पर लगी दुकानें सुबह से अपने ग्राहकों के इंतज़ार में दिखेंगी। इनमें से कुछ दुकानें रमजान के ख़ास मौके के लिए लगाई जाती हैं, तो कुछ रोजाना लगती हैं। यहां मार्केट में आपको छोटे-छोटे बच्चे अपने अब्बू या अम्मी का हाथ थामे भीड़ में नज़र आएंगे या फिर गोश्त की दुकान पर लगी आदमियों की भीड़ नज़र आएगी, सड़क के उस पार फलों के ठेले नज़र आएंगे और सुहाल का स्वाद लेते कुर्सी पर बैठे कुछ बुजुर्ग भी।

ये भी पढ़ें : 110 साल पुरानी है मुंबई में दही हांडी की परंपरा, जानिए क्यों खास है ये त्योहार 

रमजान... आप समझते हैं, ये क्यों है ख़ास

आदिल अपने परिवार के साथ अमीनाबाद में रहते हैं। रमजान के पाक महीने के बारे में आदिल बताते हैं, "रमजान इबादत का महीना है। इस दौरान हम अल्लाह के लिए भूखे रहते हैं। ये हमारा इम्तिहान होता है। हर व्यस्क मुस्लिम रोजा रखता है पर जो बीमार हैं, शारीरिक या मानसिक रूप से, बहुत बूढ़े हैं या जिनके शरीर में रोजा रखने के क्षमता नहीं है उनके लिए रोजा माफ़ है। अगर बच्चे भी चाहे तो मन से अल्लाह के लिए रोजा रख सकते हैं। इस दौरान हम ज़कात भी देते हैं। ज़कात में दान दिया जाता है।"

अमीनाबाद में ही रहने वाले इस्माइल मोहम्मद जो हार्डवेयर बिज़नेस करते हैं, वो कहते हैं, "रोजा के दौरान भूखे प्यासे रहकर हम अपनी पांच इन्द्रियों पर काबू पाते हैं- देखना, सुनना, छूना, सूघंना और स्वाद लेना। इस दौरान कोई भी चीज़ जो नैतिक रूप से सही ना हो हम उसे नहीं करते, जो कुछ भी इंसानियत के खिलाफ हो हम उससे तौबा करते हैं।"


"अल्लाह को हमारा ध्यान रखने की कोई जरुरत नहीं है, पर फिर भी अगर वो हमारा ध्यान रखते हैं तो ये हमारी खुशकिस्मती है, "इस्माइल ने आगे बताया।

लखनऊ के पलका गाँव के मदरसे के मौलाना रिजवान बताते हैं, "इस्लाम के लिए रमजान ख़ास है क्योंकि रमजान के दौरान रोजा रखने से हमारा मन और दिल साफ़ होता है, सारी बुराइयां मिट जाती हैं और इससे हमारे आस-पास का माहौल भी स्वच्छ होता है। रमजान के दौरान दिए जाने वाले ज़कात से गरीब तबके, विधवाओं और जरुरतमंदो की मदद होती है। चांद नज़र आने पर रमजान शुरू होता है। रमजान का महीना कभी 29 दिन का तो कभी 30 दिन का।"

ये भी पढ़ें : मकर संक्रान्ति और पतंगबाजी 

"सेहरी रोजा शुरू करने से पहले सुबह सुबह का खाना होता है। सेहरी और रोजा खोलने के बाद जो खाना खाते हैं उसे इफ्तार कहते हैं। इसके बीच न हमें कुछ खाना है और न ही पीना है, इस दौरान हमें मुंह से कोई गलत बात नहीं निकालनी होती, झूठ नहीं बोलना होता। रमजान का महीना एक मुबारक महीना है या यूं कहें पवित्र महीना है। रमजान को 610 ईस्वी में पैगंबर मोहम्मद पर कुरान प्रकट होने के बाद मुसलमानों के लिए पवित्र घोषित किया गया था। पैगंमर मोहम्मद ने अपना रोजा खजूर से ही खोला था। हर मुस्लिम जो उम्र में अट्ठारह साल या उससे अधिक हो और साथ ही स्वस्थ हो ,उसके लिए जरूरी है की वो रोजा रखे। ये रोजा रखने के प्रथा बहुत पुरानी है, "उन्होंने आगे बताया।

रमजान में स्पेशल क्या खाएं

रमजान के दौरान मार्केट में आपको रमजान स्पेशल खाने पीने की बहुत सी चीज़ें देखने को मिलती हैं, जैसे बालूशाही, खजिया, लच्छा या दूध फेनी, नमकीन सोहाल और मिठाइयां। रमजान हो और खजूर न हो ऐसा तो मुमकिन ही नहीं है। ऐसा माना जाता है की पैगंबर मुहम्मद ने तीन खजूर खाकर ही अपना रोजा खोला था। खजूर खाने के साइंटिफिक फ़ायदे भी हैं। खजूर में मौजूद नुट्रिएंट्स हमारी बॉडी को हेल्दी रखते हैं। दिन भर के भूखे पेट के लिए ये सबसे सही फल है, ये पेट साफ़ रखने में भी मदद करता है। लाल शरबत या रुह अफ़ज़ा आपको चिलचिलाती धूप में ठंडक देने का काम करेगा।


अमीनाबाद में मोहम्मद सलीम बीस वर्षों से मिठाई की दुकान चला रहे हैं। ऐसा कम ही होता है कोई भूखा प्यासा सलीम की दुकान से चला जाए। सलीम मेहमान नवाज़ी में यकीन रखते हैं। सलीम की दूध की बर्फी का स्वाद आपको हमेशा याद रह जाएगा, शायद यही वजह है की सलीम की दुकान बीस सालों से अपने स्वाद का जादू दिखा रही है। बाकी दुकानों के पकोड़े, कबाब पराठे, स्नैक्स, सेवइयां भी आपको आपकी उंगलियां चाटने के लिए मजबूर कर देंगे।

ये भी पढ़ें : विशेष : दीपावली का त्यौहार एक , दंत कथाएं अनेक 

रोजे के दौरान कामकाजी घंटे

  • कुवैत में रमजान के दौरान लेबर लॉ के अंतर्गत हर हफ्ते (सप्ताह के छह दिन) 48 घंटे काम करने के टाइम को घटाकर 36 घंटे कर दिया जाता है।
  • मालदीव में सरकारी काम करने वालों के टाइम को रमजान के दौरान सुबह 10 बजे से दोपहर 2 बजे तक कर दिया जाता है।
  • पाकिस्तान में रमजान के दौरान बैंक्स को पब्लिक डीलिंग के लिए सुबह 8 बजे से दोपहर 1:45 तक (सोमवार से गुरूवार) खोल दिया जाता है। शुक्रवार को ये सुबह 8 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक खुले रहते हैं।
  • यूएई में लेबर लॉ के अंतर्गत प्राइवेट सेक्टर्स में वर्किंग हॉर्स को रमजान के दौरान 2 घंटे कम कर दिया जाता है। ये रूल हर मुस्लिम या अन्य धर्म के लोगों पर लागू होता है। वहीँ प्राइवेट सेक्टर्स के वर्किंग हॉर्स को सुबह 9 बजे से दोपहर 2 बजे तक कर दिया जाता और स्कूलों को पांच घंटे के लिए चलाया जाता है।

कुरान में कहा गया है -

''ऐ ईमान लाने वालों! तुम पर रोज़े अनिवार्य किये गए, जिस तरह तुम से पहले के लोगों पर किये गए थे, शायद की तुम डर रखने वाले और परहेज़गार बन जाओ।''

रमजान के आखिर में होती है ईद उल फ़ित्र और इसी के साथ इबादत के सबसे पवित्र महीने का अंत हो जाता है। उम्मीद है इस बार ईशा की नमाज़ के बाद (जब सूरज डूब जाये) एक ऐसा सूरज निकले जो अपने साथ सभी मुस्लिम और अन्य धर्म के लोगों के दिलों में ईमानदारी, सच्चाई और काबिलियत की रोशनी जगाये। जब हर दिन इस विश्वास के साथ इबादत की जाए की ये अल्लाह तक पहुंच रही होगी ।  


 

Similar News