मौत सिर पर मंडरा रही, लेकिन ऑपरेशन के लिए एम्स में छह साल की वेटिंग

ह्रदय रोग से पीड़ित एक महिला को सर्जरी के लिए एम्स ने कहा कि 2025 तक तारीख नहीं, किसी दूसरे अस्पताल में दी सर्जरी कराने की सलाह

Update: 2019-08-22 05:45 GMT

"मुझे दिल की ऐसी बीमारी है कि आपरेशन तुरंत जरूरी है। लेकिन एम्स में सर्जरी के लिए वर्ष 2025 तक की वेटिंग चल रही है। वहां के डॉक्टरों ने किसी दूसरे अस्पताल में जाकर ऑपरेशन कराने की सलाह दी है। पता नहीं जब तक मेरा ऑपरेशन होगा तब तक मैं जिंदा भी रहूंगी या नहीं," इतना बोलते ही नसरीन सुबकने लगती हैं।

दिल की बीमारी से जूझ रही नसरीन का देश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने यह कह कर ऑपरेशन करने से मना कर दिया कि वर्ष 2025 तक अस्पताल में ऑपरेशन की तारीखें पहले से बुक हैं। यही नहीं, डॉक्टर ने पर्चे पर इस गरीब महिला को किसी दूसरे अस्पताल में इलाज कराने की सलाह तक दे डाली।

उत्तर प्रदेश में मेरठ में रहने वाली नसरीन (31 वर्ष) के सिर पर इस वक्त मौत मंडरा रही है। उसका पिछले 13 साल से एम्स दिल्ली में इलाज चल रहा है, और ऑपरेशन जल्द से जल्द होने की जरूरत है। नसरीन ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया, "दिल्ली में एम्स के डॉक्टरों ने कहा कि मेरे हार्ट के वॉल्व सिकुड़ चुके हैं। बिना सर्जरी के ठीक नहीं होंगे।" 

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गरीब परिवार की रहने वाली नसरीन के पास इतने पैसे नहीं हैं कि वो किसी प्राइवेट अस्पताल में जाकर अपना इलाज करा सकें।

नसरीन के पति शहजाद (33 वर्ष) बताते हैं, "ऊपर वाले को हम गरीब लोगों को कोई बीमारी नहीं देनी चाहिए। बीवी की बीमारी ने हमें और गरीब बना दिया। अलग-अलग अस्पतालों के चक्कर काटकर थक गया हूं। अगर पैसे होते तो किसी प्राइवेट में इलाज कर अपनी पत्नी को मौत के मुंह से बचा लेता।"

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वर्ष 2017-18 में एम्स दिल्ली में 1,93,034 मरीजों के आपरेशन किए गए। अगर प्रतिदिन के हिसाब से आंकड़ा निकाला जाए तो एम्स में रोजाना 528 मरीजों के छोटे-बड़े आपरेशन हुए।


"बड़ी उम्मीद से एम्स में इलाज के लिए गए थे। वर्ष 2015 में एम्स के एक डाक्टर ने कहा था कि तुम्हारी बीवी का ऑपरेशन करना पड़ेगा, करीब 70 हजार रुपए का खर्चा आएगा। मैं ठहरा मजदूर, इतने पैसे कहां से लाता, लेकिन मैंने हार नहीं मानी और मजदूरी करके चार साल में 70 हजार रुपए इकट्ठे कर लिया," नसरीन के अब तक के इलाज के बारे में उनके पति शहजाद ने बताया।

शहजाद ने आगे कहा, "पैसे लेकर डॉक्टर के पास पहुंचा तो ओपीडी वाले डॉक्टर ने सर्जरी करने वाले डॉक्टर के पास रेफर कर दिया। जब सर्जरी वाले डॉक्टर के पास पहुंचा तो उन्होंने 2025 तक की वेटिंग की बात कही। साथ ही, उन डॉक्टर ने पर्चे पर लिख के सलाह दे डाली कि दिल्ली के कुछ और अस्पताल हैं जहां यह सर्जरी हो सकती है।"

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इस बीमारी की गंभीरता और इलाज मिलने के बारे में लखनऊ स्थित डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के ह्रदयरोग विशेषज्ञ डॉ. भुवन चंद तिवारी कहते हैं, "ऐसे मामलों में कुछ स्पष्ट नहीं कहा जा सकता। यह भी हो सकता है कि पीड़िता दवाइयों के सहारे जिंदा रह जाए और यह भी हो सकता है कि स्थिति और खराब हो सकती है। जितनी जल्दी हो सर्जरी हो जानी चाहिए। यह एक जटिल बीमारी है, जिसका इलाज सिर्फ सर्जरी है।"

इस सबंधं में जब एम्स प्रशासन से बात करने की कोशिश की गई तो न तो फोन पर न ही, न भेजी गई मेल का जवाब आया। जबकि एम्स के पर्चे पर मुहर भी लगी होती है कि मरीज अपना फीडबैक शेयर करें ताकि अस्पताल की सुविधाओं को बेहतर किया जा सके।


एम्स में सर्जरी या इलाज का खर्चा बाकी सरकारी अस्पतालों से काफी कम है। जहां एम्स में बाइपास सर्जरी का कुल खर्च 60 हजार रुपए आता है, वहीं निजी अस्पताल में इसका खर्च दो लाख रूपये से भी अधिक हो जाता है। स्पाइन सर्जरी एम्स में जहां 15 हजार रुपए में होती है, वहीं निजी अस्पताल इसके लिए एक लाख रुपये तक ऐंठ लेते हैं।

सर्जरी के लिए 2025 तक की वेटिंग के संबंध में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. शांतनु सेन ने फोन पर बताया, "किसी भी मरीज को हर हाल में बेहतर इलाज मिलना चाहिए। कुछ दिन या कुछ महीने का इंतजार चल सकता है, लेकिन छह वर्ष तक सही नहीं है। जिस डॉक्टर ने इतनी लंबी डेट दी है उसने गलत किया है। उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। "

वहीं, दिल्ली में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों की मदद करने वाली कमेटी के सदस्य अशोक अग्रवाल कहते हैं, "नसरीन का मामला मेरे संज्ञान में है। मैंने प्रबंधन को पत्र भी लिखा है।" आगे कहते हैं, "सरकारी अस्पतालों की स्थिति बेहद खराब है। यहां लोगों को महत्वपूर्ण सर्जरी के लिए भी छह-छह साल की वेटिंग मिलती है। इसके बावजूद दावे सबसे बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने के होते हैं। पता नहीं जब तक वेटिंग खत्म होगी, तब तक नसरीन की हालत कैसी हो जाएगी।"

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