गोवा के स्टेडियम में फंसे करीब 5000 मजदूर, सात दिन बाद भी नहीं मिली ट्रेन

ताजा मामला गोवा से सामने आया है जहाँ मोबाइल पर मेसेज मिलने के बाद ट्रेन पकड़ने के लिए स्टेशन पहुंचे मजदूरों को ट्रेन मुहैय्या कराने की बजाए उन्हें स्टेडियम में ठहराया जा रहा है।

Update: 2020-06-01 13:48 GMT
गोवा के करमाली रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़ने के लिए आये प्रवासी मजदूरों को बम्बोलियम फुटबॉल स्टेडियम में ठहराया जा रहा।

लॉकडाउन के दो महीने बीतने के बाद भी घर वापसी के लिए प्रवासी मजदूरों की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं।

ताजा मामला गोवा से सामने आया है जहाँ मोबाइल पर मेसेज मिलने के बाद ट्रेन पकड़ने के लिए स्टेशन पहुंचे मजदूरों को ट्रेन मुहैय्या कराने की बजाए उन्हें स्टेडियम में ठहराया जा रहा है। ऐसे में गोवा में काम के लिए गए और लॉकडाउन में फँस कर रह गए झारखण्ड, पश्चिम बंगाल और बिहार के करीब 5000 प्रवासी मजदूर अब गोवा के स्टेडियम में फंस कर रह गए हैं। प्रशासन की ओर से सात से दस दिन बाद भी उनके लिए ट्रेन की व्यवस्था नहीं की जा सकी है।

"हम लोगों को स्टेशन से स्टेडियम में लाकर रख दिया गया है, यहाँ कोई मजदूर 25 तारीख से फंसा है तो कोई 23 तारीख का आया हुआ है, कुछ मजदूर तो 10 दिन से यहीं फँसे हुए हैं, मगर अभी तक हम लोगों को ट्रेन नहीं मिल सकी है, पुलिस वालों से ट्रेन के लिए पूछते हैं तो हम लोगों को डंडा दिखाता है, कोई कुछ बताता भी नहीं है," गोवा के बम्बोलिम फुटबॉल स्टेडियम में फंसे झारखण्ड के मजदूर सुरेन्द्र महतो कहते हैं।

झारखण्ड के गिरिडीह जिले के जामताड़ा गाँव के रहने वाले सुरेन्द्र महतो गोवा के एक होटल में मजदूरी करते थे, मगर लॉकडाउन में गोवा में ही फँस कर रह गए। झारखण्ड में अपनी घर वापसी के लिए उन्होंने गोवा से ट्रेन से रजिस्ट्रेशन कराया था। 

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कई दिनों तक रुकने के बाद भी मजदूरों को घर वापसी के लिए नहीं मिल रही ट्रेन।

सुरेन्द्र बताते हैं, "मेरे पास मोबाइल में 29 मई को मेसेज आया कि आप करमाली स्टेशन पांच बजे पहुँचिये, रात में 9.30 बजे आपका ट्रेन है, हम स्टेशन चार बजे पहुँच गए, अब वहां से हमको स्टेडियम में लाकर रखा गया है, इधर पांच से छह हज़ार मजदूर फंसा हुआ है, इतने लोगों के लिए न बाथरूम है, न खाने की व्यवस्था है।"

इन्हीं मजदूरों में झारखण्ड की महिला मजदूर परमाली मिंज भी शामिल हैं जो घर जाने के लिए करमाली स्टेशन पहुंची थीं, मगर वो भी अब स्टेडियम में आकर फंस चुकी हैं।

परमाली बताती हैं, "हम लोग यहाँ चार दिन से फँसे हुए हैं, मेरे साथ और भी झारखण्ड की महिलाएं हैं, वो भी यहीं फँस गयी हैं, यहाँ खाना-पीना भी ढंग का नहीं मिल रहा है, जो मिल भी रहा है तो बहुत थोड़ा मिलता है, किसी का पेट भी नहीं भर पाता। अब स्टेडियम में इतने मजदूरों को रखा है तो कैसे कर पाएंगे। इतना पैसा भी नहीं है जो कुछ खरीद कर खा सकें।" 

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स्टेडियम में फँसे मजदूरों को खाना दिया जा रहा है, मगर पर्याप्त नहीं। 

स्टेडियम में फंसे झारखण्ड के पाकुर जिले के चोताकल्दम गांव के रहने वाले एक और मजदूर पौश मलतो बताते हैं, "हमें यहाँ सात दिन हो गए हैं, हम 25 मई को मडगांव से करमाली स्टेशन पहुंचे थे, मगर पुलिस वाले हमें यहाँ स्टेडियम में ले आये, ट्रेन के लिए पूछते हैं तो कहते हैं कि एक-दो दिन में चलेगी, ऐसे करते-करते एक हफ्ता गुजर चुका है, अभी तक हम लोगों को ट्रेन नहीं मिली है।"

गोवा के बम्बोलिम फुटबाल स्टेडियम में बड़ी संख्या में झारखण्ड, पश्चिम बंगाल और बिहार के मजदूर फँस चुके हैं। हजारों की संख्या में फँसे इन मजदूरों के लिए बाथरूम और खाने-पीने की भी दिक्कतें बढ़ रही हैं। 

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स्टेडियम के ग्राउंड में रहकर भी नहीं हो पा रहा सोशल डिसटंसिंग का पालन। 

स्टेडियम में फँसे पश्चिम बंगाल के कोरिया जिले के चित्मु ग्राम पंचायत के मजदूर मंगल सरन बताते हैं, "हम लोग 29 मई को स्टेशन पहुंचे थे जहाँ से हम लोगों को स्टेडियम में लाकर रख दिया है, यहाँ पश्चिम बंगाल के ही करीब 800 से 900 मजदूर फँसे हुए हैं, केवल हमारे गाँव के ही करीब 15 से 20 लोग हैं। ट्रेन के बारे में अफसरों से पूछो तो कोई बताता भी नहीं है, पता नहीं हम लोग कब जा सकेंगे।"

स्टेडियम आए इन मजदूरों में बड़ी संख्या ऐसे मजदूरों की भी है जो ट्रेन पकड़ने के लिए 100 से 150 किलोमीटर की यात्रा करके करमाली स्टेशन पहुंचे हैं। अब ये वापस भी नहीं जा सकते हैं और प्रशासन की ओर से अब तक ट्रेन की व्यवस्था न किये जाने से इनकी मुश्किलें और बढ़ चुकी हैं।

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