तबाही का सामान : 67 साल में बना डाली 100 करोड़ हाथियों के बराबर प्लास्टिक  

Update: 2017-07-21 13:24 GMT
1950 से लेकर अभी तक पूरी दुनिया में 8 अरब 30 करोड़ मीट्रिक टन नई प्लास्टिक बनाई जा चुकी है।

लखनऊ। अब पृथ्वी को भूल जाइए, जल्द ही अगर इस गृह का उपनाम प्लास्टिक प्लैनेट रख दिया जाए तो आश्चर्यचकित होने वाली बात नहीं होगी। अमेरिकी वैज्ञानिकों के एक समूह ने पहली बार आंकड़े जारी किए हैं जिनमें बताया गया है कि 1950 से लेकर अभी तक कितनी प्लास्टिक हमारी दुनिया में बनाई जा चुकी है। आंकड़ों के मुताबिक, 1950 से लेकर अभी तक पूरी दुनिया में 8 अरब 30 करोड़ मीट्रिक टन नई प्लास्टिक बनाई जा चुकी है। ये 25,000 महलों के बराबर या 100 करोड़ हाथियों के बराबर भारी है।

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नेशनल पब्लिक रेडियो (एनपीआर) से बात करते हुए कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के इंडस्ट्रियल इकोलॉजिस्ट और मुख्य शोधकर्ता रोलैंड गेयर ने कहा कि, यह वाकई में चौंकाने वाला आंकड़ा है। अगर आप इस सारी प्लास्टिक को एंड़ी की ऊंचाई तक फैला दें तो भारत का लगभग 85 प्रतिशत हिस्सा ढक जाएगा। गेयर और उनके साथियों ने अपनी इस रिसर्च के आंकड़ों को साइंस एडवांस जर्नल में प्रकाशित कराया। शोध में वैज्ञानिकों ने बताया है कि पिछले कुछ सालों में ये आंकड़ा किस तरह तेज़ी से बढ़ रहा है। कुल प्लास्टिक का आधा हिस्सा पिछले 13 सालों के दौरान ही निर्मित हुआ है।

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गेयर ने एनपीआर से बात करते हुए कहा, क्योंकि ज़्यादातर प्लास्टिक प्राकृतिक तरीके से खत्म होने वाली नहीं है इसलिए यह सैकड़ों साल तक यूं ही रहती है और हमारे आस-पास के क्षेत्र में पड़ी रहती है या समुद्रों में तैरती रहती है। और हम अभी भी ठीक से यह नहीं जानते हैं कि यह प्लास्टिक अपशिष्ट हमारे स्वास्थ्य तंत्र और अन्य जीवों के स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है।

प्लास्टिक एक सस्ता, कठोर और कई कामों में इस्तेमाल होने वाला मैटेरियल है और इसका उपयोग चिकित्सा उपकरणों से लेकर हवाई जहाज के हिस्सों, हमारे कपड़ों में फाइबर बनाने तक के लिए किया जाता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, कई कामों में इसकी उपयोगिता ही इसकी बढ़ती लोकप्रियता का कारण है। लेकिन समस्या यह है कि ये प्लास्टिक खत्म नहीं हो सकती। शोध के मुताबिक, इसमें से सिर्फ 9 प्रतिशत प्लास्टिक ही रिसाइकिल हो सकती है। इसमें से 12 प्रतिशत प्लास्टिक को जला दिया जाता है। बाकी बची हुई प्लास्टिक या तो ज़मीन पर पड़ी रहती है या फिर समुद्रों और बाकी प्राकृतिक वातावरण को प्रदूषित करती है।

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2015 में एक शोध में पर्यावरण इंजीनियर जेन्ना जैमबेक ने पाया था कि दुनिया में हर साल 19 बिलियन पाउंड प्लास्टिक समुद्र में बहा दी जाती है। अगर हमने प्लास्टिक के इस तेज़ी से बढ़ते निर्माण को रोकने की कोशिश नहीं की तो 2025 तक अभी के मुकाबले इन आंकड़ों में दोगुना बढ़ोतरी हो सकती है।

इस विषय में शुरुआती रिसर्च भी काफी गंभीर तस्वीर दिखाती हैं। महासागर संरक्षण के मुताबिक, प्लास्टिक से कम से कम 600 विभिन्न वन्यजीव प्रजातियों के जीवन पर ख़तरा है। कुछ अध्ययनों में यह बात भी सामने आई है कि हम सी फूड यानि समुद्री खाने के ज़रिए भी प्लास्टिक का उपभोग कर रहे हैं। गेयर और उनकी टीम ने कहा कि वे उम्मीद करते हैं कि उनका नया शोध प्लास्टिक की समस्या के दायरे पर कुछ परिप्रेक्ष्य पेश करेगा और लोगों को इससे होने वाली परेशानियों को ख़त्म करने की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करेगा।

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