वीडियो : 'हमारे यहां बच्चा भी मजबूरी में शराब पीता है'

यूपी और उत्तराखंड में ये पहली बार नहीं है जब शराब ने जान ली है। वर्ष 2017 में आजमगढ़ में 30 लोगों की मौत हुई थी, उस दौरान गांव कनेक्शन ये यहां के लोगों से जो कहा वो कई सवाल खड़े करता है

Update: 2019-02-11 11:25 GMT
केवटहिया गाँव की एक तस्वीर।

आजमगढ़। "हम शराब बनाकर न बेचें तो हमारे बच्चे भूखे मर जाएंगे। अपने बच्चों का मुंह देखकर हमें यह काम करना पड़ता है।" यह कहना है आजमगढ़ के केवटहिया गाँव की माया देवी (35 वर्ष) का। बता दें कि आजमगढ़ में जहरीली शराब के सेवन से 18 लोगों की मौत हुई है, जिसमें से 10 लोग इसी गांव के थे।

केवटहिया गाँव में जो शराब बनती है, उसे गाँव में कटहवा कहते हैं। यह शराब गुड़ से बनती है और इसकी कीमत मात्र 10 रुपये होती है। गाँव के गरीब लोग ही इस कच्ची शराब को पीते हैं और इसी से ही गाँव में कई लोगों का गुजर बसर भी चलता है। स्थानीय लोगों की मानें तो ये यहां का कुटीर उद्योग है।

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आजमगढ़ जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर थाना रौनापुर इलाके के केवटहिया गाँव की मीरा (34 वर्ष) बताती हैं, "हमारे छह बच्चे हैं। हम कहाँ जाएं, कैसे अपना गुजारा चलाएं। मेरा पति नशे में रहता है। हम अपने बच्चों को जैसे-तैसे करके पाल रहे हैं। गांव में पुलिस, डीएम , मंत्री, नेता सब मतलब से आते हैं। कोई हमारे लिए नहीं आता, यहां बस पैसे या वोट लेने सब आते हैं।''

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मीरा आगे बताती हैं, "हमारे पास सिर्फ 2 बीघा जमीन है। उसमें ज्यादा कुछ होता नहीं। और बाढ़ में तो पूरा खेत ही डूब जाता है। हम किसको सुनाएं अपनी समस्या। हमारे यहां बच्चा भी मजबूरी में शराब पीता है। मेरे गाँव में 30 लोग मेरे सामने मर गए। मुझे पता है कि एक दिन हम भी मर जायेंगे, लेकिन तब तक जीने के लिये कुछ तो करना ही पड़ेगा।

गांव के कुछ बच्चे ही स्कूल पहुंचते हैं

मूलभूत सुविधाओं को तरसते इस गांव में सुनीता के चार बच्चे हैं, इनके बच्चे स्कूल नहीं जाते। इसी गांव की माया देवी ( 35 वर्ष) बताती हैं, "मेरे पांच बच्चे हैं, कहां से लाऊं राशन, हमारा पति भी मजदूरी के नाम पर नाम मात्र ही कमाता है। वो ईंट भठ्ठे पर मजदूरी करता है। राशन हमको मिलता नहीं, कार्ड कभी बना ही नहीं। ना पीला कार्ड है, न नीला कार्ड है। हम किसके पास जाएं। हम भी चाहते हैं कि हम अच्छा काम कर गुजारा करें, लेकिन इस गांव में आज तक कोई योजना नहीं आयी। ग्रामीणों के मुताबिक गांव के कुछ बच्चे ही स्कूल जाते हैं वो भी मिड डे मील के लिए।

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