आखिरकार देश का किसान छुट्टी पर क्यों जाना चाहता है ?

Update: 2018-04-17 18:10 GMT
कई किसान संगठनों ने मिलकर बुलाया है 1 जून से गांव बंद आंदोलन।

आजादी से लेकर आज तक देश के किसी न किसी कौने में किसान अपने हक़ अधिकार के लिए संघर्ष करता नजर आया, इस कारण कई किसान नेताओं का जीवन, तो किसी नेता की पीढ़ियों ने संघर्ष करते करते बिता दिया मगर किसानों की समस्या का समाधान निकला नहीं इसका मतलब यह नहीं उन्होंने मेहनत नहीं की या उसमे लोग जानकर नहीं थे, उसके बावजूद समस्या इस कदर बड़ी की देश के मेहनतकश किसान ने अपनी जान देना शुरू कर दिया।

परिणाम यह हुआ की देश हर एक घंटे में किसान आत्महत्या होने लगी, देश के 40 प्रतिशत किसान खेती छोड़ना चाहते, 90 प्रतिशत किसान अपने बेटे को किसान नहीं बनाना चाहते, और एक किसान अपनी बेटी की शादी दूसरे किसान के बेटे की जगह चपरासी से करना चाहता है।

पहले देश में किसानों की समस्या बटी हुई थी, क्योंकि शिक्षा कम होने के कारण भाषा की समस्या थी। दूसरा समस्याओं को राजनीति ने सिर्फ रीजनल बनाकर रखा था। मगर जैसे-जैसे देश शिक्षित होता गया भाषा की समस्या ख़त्म होने लगी और किसानों में संवाद शुरू हुआ, जिसके परिणाम स्वरुप देश के 60 जमीनी किसान संगठनों का किसान एकता मंच बना। जहां पर समस्या की जड़ को खोजने का कार्य किया तो सिर्फ एक कारण सामने आया जो था किसानों की फसलों के वाजिब दाम और आय का सुनिश्चित नहीं होना, जिसके कारण किसान कर्ज में आता और गरीबी के दुष्चक्र में फंसा तो जमीन बेचकर मजदूर हो गया।

देश में कई आंदोलन हुए है, सब जगह से आवाज उठती रही जो कभी उग्र भी हुई तो कभी शांति से रही, किसानों के आन्दोलन में कई बार किसानों पर सरकार द्वारा गोली चलाई और किसानों की जान ले ली, जिसमे भट्टा परसौल, बेतूल, मंदसौर जैसे प्रशासनिक अपराध देखे गए, किसानों द्वारा धरना प्रदर्शन सबसे ज्यादा रहे है कई बार हड़ताल, भूख हड़ताल, रैली, सभा, ज्ञापन और शहर या अधिकारियों के ऑफिस बंद कर दिए। मगर फिर भी किसानों का शोषण रुका नहीं जब भी किसानों ने आवाज उठाईं उसको तिरस्कार का सामना करना पड़ा।

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किसान आन्दोलनों में हमेशा किसान को लाठिया और पुलिस केस जैसे हालातों से गुजरना पड़ा, जो भी आन्दोलन हुए वो शक्ति प्रदर्शन के रूप में हुए जिनकी उम्र कुछ दिनों की रही और ख़त्म हो गए, जो आर्थिक समस्या को देश के पटल पर पूर्ण रूप से रखने में कामयाब नहीं हो सके।

किसानों की समस्या को लेकर हर बार आवाज उठती है। एक गरीब किसान अपनी आवाज को सिर्फ गाँव की चौपाल तक ही रख पाता है। उसके कई कारण हैं, मगर आज के युवा इस आवाज को कई माध्यम से देश के सामने ला रहे है। इस आवाज को उठाने में एक सोशल मीडिया का भी कमाल रहा हैं, जिसके कारण आज एक जगह की घटना दूसरी जगह की खबर तुरंत मिल जाती हैं, जबकि यही बात पहले एक क्षेत्र में ही सिमटी रह जाती थी।

आज देश और पूरे विश्व में जो लड़ाई हो रही है, वो आर्थिक सम्पन्नता की हो रही है। किसान के लिए भी केंद आर्थिक ही है, किसी भी समस्या को देखे संघर्ष आर्थिक मामलों को लेकर हो रहे है इसलिए आज देश का किसान भी अपनी आर्थिक महत्वता देश और बाजार को दिखने के लिए गाँव बंद आन्दोलन करने जा रहा है। देश में करीब 85 करोड़ लोग गाँव के हैं, जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण उपभोक्ता और उत्पादक हैं खास बात यह कि दोनों जगह भाव करने का अधिकार किसानों के पास नहीं जबकि दूसरे व्यवसाय में एक जगह मूल्य तय करने का अधिकार होता है।

किसान आंदोलन के दौरान सब्जियों को सड़क पर बरबाद करते कार्यकर्ता। फोटो: साभार डीएनए

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इस आन्दोलन के माध्यम से किसान अपना महत्व उपभोक्ता होने का बाजार से कुछ भी नहीं खरीदकर दिखायेगा क्योंकि भारत में 6.5 लाख गाँव हैं, जिसमे 85 करोड़ लोग रहते है जो देश की कुल जनसंख्या का 70 प्रतिशत हिस्सा है, जो देश के बाजार के लिए महत्वपूर्ण है अगर देखा जाए तो दैनिक उपयोग की वस्तुओं का 2025 तक 15 से 16 लाख करोड़ का ग्रामीण बाजार होगा, ट्रैक्टर बाजार करीब 30 से 40 हजार करोड़ का, वही करीब एक लाख करोड़ का मोटर साइकिल और कार का ग्रामीण बाजार है। विधुत सम्बंधित उपकरणों का 2022 तक 25 से 30 लाख करोड़ का बाजार होगा, जिसमे 50 प्रतिशत हिस्सेदारी ग्रामीण बाजार की होगी क्योंकि शहरी बाजार में स्थिरता रहेगी।

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2020 तक बीमा का बाजार 20 से 25 लाख करोड़ का होगा, जिसमें ग्रामीण बाजार वरदान होगा, जबकि अभी बीमा की प्रीमियम से कम्पनियों को एक लाख करोड़ की कमाई हो रही हैं, जो आगे चलकर गाँव में बढेगा तो यह दुगने से तीन गुना होने की सम्भावना है वही हेल्थ केयर का बाजार 2020 तक करीब 20 लाख करोड़ का होना हैं, जिसमे सबसे बड़ा योगदान ग्रामीण भारत का होगा यदि इस बाजार में किसान अपने उपभोक्ता होने का आभास करवा देगा तो सभी का ध्यान किसानों की समस्या पर केंदित होगा, क्योकि कार्पोरेट कभी भी अपने उपभोक्ता ख़त्म नहीं होने देंगे और नहीं किसानो के लघु उद्योग खड़े होने देंगे।

आज देश के 650 जिलो में से 500 जिलो के बाजार पूर्णतः गाँव पर आधारित है, यदि 15 दिन किसान बाजार में नहीं जायेगा तो जो लोग किसानों की अहमियत नहीं जानते है उनको भी ग्राहक भगवान है और किसान उनका ग्राहक है मालूम हो जायेगा बाकि आम लोगों को जीने के लिए भोजन चाहिए जो किसानो के द्वारा ही मिल सकता है।

आज देश में अनाज का 270 मिलियन टन का उत्पादन है और करीब 250 मिलियन टन का अन्य फसलों का उत्पादन है बाकि 150 मिलियन टन दूध का उत्पादन हैं, जो की देश अर्थव्यवस्था को करीब 30 से 40 लाख करोड़ का व्यापार देते है। जब इतने बड़े बाजार का प्राइमरी प्रोडूस बाजार में नहीं जायेगा तो डिमांड और सप्लाई में अंतर आएगा जो किसानों की फसलों की वास्तविक मूल्य का निर्धारण करने में सहयोग करेगा।

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यह पहला आन्दोलन होगा, जिसमे हिंसा की जगह शांति होगी, न पुलिस की जरुरत, और न ही प्रशासन की जरुरत होगी क्योंकि सभी किसान अपने-अपने गाँव को बंद करेंगे, बंद का मतलब आर्थिक लेन-देन बंद रहेगा। इस लेन-देन के बंद से किसानों की अहमियत मालूम होगी और लोगों को किसानों के जो उत्पाद हैं उनका वास्तविक मूल्य का आभास होगा।

अभी तक कृषि उत्पाद को सरकार द्वारा इतना सस्ता दिया जा रहा है कि उसका महत्व ही लोगों में ख़त्म हो गया है। जब तक वस्तु का महत्व पता चलता हैं तब तक उसका वास्तविक मूल्य का आभास नहीं होता हैं। पिछले वर्ष के आन्दोलन मे लोगों ने ख़ुशी से किसानों से 100 रूपए लीटर तक दूध ख़रीदा था, सब्जियां 50 रूपए से ज्यादा में बिकी थी, इसका मतलब साफ है कि इन वस्तुओं का यह भाव है।

इस गाँव बंद आन्दोलन से किसानों की समस्या को आम जन तक पहुंचेगी क्योंकि अभी आम जन राजनेताओं की घोषणा और भाषण से लोगों को लगता हैं कि सरकार अपना खजाना सिर्फ किसानों पर लुटा रही हैं जबकि इसका उल्टा है। आज किसानों के गाँवो में पीने के पानी की सुविधा, शिक्षा, स्वास्थ्य की मूलभूत सुविधा अभी भी नहीं। किसानों की खेती सम्बंधित समस्या में फसलों के लागत के आधार पर दाम, कर्ज, आय सुनिश्चित, सहकारिता, राजस्व, कृषि और मंडी को लेकर है।

गाँव बंद से क्या होगा? गाँव बंद के दौरान किसान अपना मूल्यांकन करेंगे, अपनी आर्थिक हालातों पर चर्चा करेंगे जब भी चर्चा होती हैं तो समाधान निकलता हैं। गाँव बंद के दौरान गाँव में एकता और संगठन बनेगा जो आगे चलकर एफपीओ के रूप उभरकर एक कम्पनी बन सकता और बंद के दौरान वैल्यू एडीशन का काम करेंगे, जिससे एक नया प्रोडक्ट और मार्केट बनेगा।

पिछले वर्ष पंजाब में किसानों के विरोध प्रदर्शन को संबोधित करते कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा।

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इस बंद से देश में किसानों के स्वालंबी बनने और ग्रामीण उद्योग की नीव रखाएगी। इस आन्दोलन से एक सन्देश जायेगा की जीने के लिए सिर्फ किसान महत्वपूर्ण है और हमें अच्छे से जीना हैं तो किसानों को बचाना होगा यह जन भाव जागने से किसानों की समस्या के समाधान के लिए सरकार को खड़े होना पड़ेगा।

देश की राजनीति ने हमेशा किसानों को बांटने का काम बड़ी बखूबी से किया एक तो किसानों को पार्टियों में बाट दिया, दूसरा जातियों में तो तीसरा धर्म में और चौथा फसलों के नाम पर बाट दिया गया, जिसके कारण एक होते हुए भी किसान संगठित नजर नहीं आया। इसी तरह किसानों को मजदूरों का दुश्मन बना दिया गया, जबकि देश में सबसे ज्यादा रोजगार देने का काम किसानों ने किया है।

इसी तरह व्यापारियों को किसानो का दुश्मन बना दिया जबकि व्यापार देने वाला किसान ऐसे ही शहर के लोगों को मंहगाई का वास्ता देकर किसानों से दूर कर दिया, जबकि अन्न के बिना कोई जिन्दा नहीं रह सकता है। सरकार ने हमेशा लोगों को सस्ता खिलाने का वास्ता देकर किसान की उम्मीदों पर पानी फेरा, जिसके परिणाम आज किसान स्वयं भूखा बैठा है।

देश में जब जब किसान अपनी समस्या को लेकर आता है, तो राजनीति कहती हैं संगठित नहीं हो इसलिए आवाज नहीं सुनी जबकि वहीं किसानों के जातीय आन्दोलन जैसे गुर्जर, जाट, मराठा, राजपूत, पाटीदार अपने बल बूते करते है तो सरकार हिला देते है वही सभी लोग एक साथ खड़े होंगे तो इस बार देश में आर्थिक आन्दोलन का आगाज होगा। इस आन्दोलन से जो सरकारों के कागजी विकास हैं वो सबके सामने होंगे।

(लेखक आम किसान यूनियन से जुड़े हैं, ये उनके निजी विचार हैं।)

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