बाल दिवस : यूपी के स्कूलों में चल रहे मीना मंच ने बदल दी हजारों की जिंदगी
लखनऊ। कसमंडी खुर्द गाँव में लोग अपनी बेटियों को स्कूल नहीं भेजते थे। लेकिन मीना मंच से जुड़े बच्चों ने कई लोगों को समझा-बुझा कर उन्हें अपनी बेटियों को स्कूल भेजने के लिए राज़ी करवा लिया।
मलिहाबाद ब्लॉक का कममंडी खुर्द गाँव मुस्लिम बाहुल्य है। यहां पर अधिकतर घरों में लड़कियों की शादी कम उम्र में ही कर दी जाती है। गाँव की अधिकतर लड़कियों को स्कूल पढ़ने भी नहीं भेजा जाता है। लेकिन गाँव के ही सरकारी स्कूल में कक्षा -आठ में पढ़ने वाली अर्शिया (13 वर्ष) ने अपने दम पर गाँव की कई लड़कियों को स्कूल जाने के लिए उनके घर वालों को माना लिया।
अर्शिया बताती हैं,'' मैंने अपने गाँव में ही चार घरों के बच्चों का दाखिला स्कूल में करवाया है। पहले इनके घरवालों ने मेरी बात नहीं मानी फिर मैंने इन्हें बताया कि जब मैं पढ़ सकती हूं, तो फिर ये लड़कियां क्यों नहीं। मीना मंच के सदस्यों की बात सुनकर गाँव के कई लोगों ने अपने बच्चों का नाम स्कूल में लिखवाया है।"
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अर्शिया अपने स्कूल के मीना मंच की अध्यक्ष भी है। अर्शिया के साथ मीना मंच में गाँव के फिरोज़, बबलू ,रोशनी,शरीफ और सबा भी है। ये बच्चे स्कूल में पढ़ाई के साथ-साथ गाँव में जाकर सर्वे भी करते हैं। इस सर्वे में मीनामंच के छात्र-छात्राएं गाँव में घर घर जाकर लोगों को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। पूर्व माध्यमिक विद्यालय, कसमंडी खुर्द में मीनामंच का गठन तीन वर्ष पहले हुआ था।
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सरकारी स्कूलों में बनाए गए मीना मंच के बारे में यूनीसेफ के जिला समन्वयक ( मीना मंच) नासिर बताते हैं,'' यूनिसेफ के मदद से प्रदेश के छह जिलों में सरकारी स्कूलों में मीना मंच का गठन किया गया है। मीना मंच में प्रति विद्यालयों पर छह से सात बच्चों की टीम बनाई गई है। ये बच्चे गाँव में जाकर घरों का सर्वे करते हैं और लोगों को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित भी करते हैं।''