इस गांव के बच्चों ने खेतों में काम छोड़ पकड़ी स्कूल की राह
विकास खंड सुमेरपुर के गाँव कुंडौरा की आबादी करीब दो हजार है। यहां के ज्यादातर लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं, इस वजह से पहले वे पढ़ाई की कीमत समझते नहीं थे। लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजने की जगह खेत में काम करने के लिए भेजते थे। विद्यालय प्रबंध समिति के प्रयासों से ग्रामीणों में आई जागरूकता, बच्चों को भेजने लगे स्कूल
हमीरपुर। 'अरे ओ अंबुज, जल्दी से नहा लो स्कूल नहीं जाना है क्या? सब्जी बन गई है रोटी सेंकने जा रही हूं। 'गीता (45 वर्ष) अपने बेटे से कहती हैं। कुछ वक्त पहले गीता की इस पुकार में स्कूल की जगह खेत हुआ करता था लेकिन आज माहौल बदल चुका है। गीता जानती है कि पढ़ाई ही उसके बेटे की जिंदगी संवार सकती है। गीता की तरह कुंडौरा गाँव में सभी मांएं अब बच्चों को स्कूल भेजना अपनी जिम्मेदारी समझती हैं। गांव में यह बदलाव यहां की एसएमसी सदस्यों और प्रधानाध्यापक की मेहनत से आया है।
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विकास खंड सुमेरपुर के गाँव कुंडौरा की आबादी करीब दो हजार है। यहां के ज्यादातर लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं, इस वजह से पहले वे पढ़ाई की कीमत समझते नहीं थे। लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजने की जगह खेत में काम करने के लिए भेजते थे। इसके पीछे सोच थी कि, पढ़-लिखकर क्या होगा। नौकरी तो मिलनी नहीं है। बड़े होकर बच्चों को खेत में ही काम करना है तो इससे अच्छा अभी से शुरू कर दें। लेकिन अब गांव के लोगों की सोच बदलने लगी है। उन्हें इस बात का अहसास हो गया है कि अगर बच्चों को पढ़ाएंगे नहीं तो जिन परेशानियों से वे दो-चार होते आए हैं अगली पीढ़ी को भी उन्हीं मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।
प्रभा (35 वर्ष) के दो बच्चे हैं दोनों स्कूल जाते हैं। प्रभा ने बताया, 'हमारे मां-बाप पढ़े-लिखे नहीं थे इसलिए उन्होंने मुझे पढ़ाया नहीं। अनपढ़ रहने का अहसास मुझे अब होता है। जब किसी कागज पर दस्तखत के लिए लोग कहते हैं तो मुझे अंगूठा लगाना पड़ता है। मैं नहीं चाहती कि मेरे बच्चे भी इस तरह की परेशानी झेलें।'
ग्रामीण नहीं समझते थे पढ़ाई की कीमत
गाँव में यह बदलाव अचानक नहीं आया। एसएमसी के सदस्यों और स्कूल के अध्यापकों की मेहनत की वजह से लोगों की सोच बदलने लगी है। एसएमसी अध्यक्ष नंद किशोर पाल (45 वर्ष) ने बताया, "मैंने बस पांचवीं तक की पढ़ाई की है। उस समय घर की हालत सही नहीं थी इसलिए आगे की पढ़ाई नहीं कर सका। मैं चाहता हूं कि मेरे गांव का हर बच्चा पढ़ लिखकर नौकरी करे। हमारे यहां खेती होती नहीं है और किसी भी नौकरी के लिए पढ़ाई बहुत जरूरी है।'
एसएमसी सदस्य जय करन पाल (40 वर्ष) ने बताया, 'हमारे गाँव के ज्यादातर लोग अशिक्षित हैं इसलिए वे पढ़ाई के महत्व को समझते नहीं हैं। हम लोग ऐसे अभिभावकों में जागरूकता लाने की कोशिशि करते हैं। पहले तो गांव के लोगों ने हमारी बातों को अनसुना कर दिया लेकिन धीरे-धीरे बदलाव दिखने लगा। अब बच्चे खेतों की बजाय स्कूल में नजर आने लगे हैं।"
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कोई जाना चाहता है सेना में तो कोई बनना चाहता है डॉक्टर
इस गाँव के बच्चों में कोई सेना में जाना चाहता है तो कोई डॉक्टर बनकर गरीबों का मुफ्त में इलाज करना चाहता है। आठवीं में पढ़ने वाला बृजेश सेना में जाना चाहता है। बृजेश ने बताया, 'मुझे पढ़ना बहुत अच्छा लगता है। पहले खेत में काम करता था। जानवरों को चराने जंगल में ले जाता था। स्कूल आने का वक्त ही नहीं मिलता था। लेकिन मास्टर साहब के समझाने पर मेरे माता-पिता अब रोज स्कूल भेजते हैं। मैं बड़ा होकर सेना में जाना चाहता हूं। इसके लिए मैं अभी से तैयारी में जुट गया हूं। सप्ताह में दो दिन स्टेडियम जाकर अभ्यास करता हूं।'
पांचवीं में पढ़ने वाली राधा पहले घर के काम में उलझी रहती थी। मां के साथ घर के काम में हाथ बंटाना उसके बाद एक साल के भाई को संभालना। राधा की बस यही दिनचर्या थी। राधा ने बताया, 'मां मुझे स्कूल नहीं जाने देती थी। घर का काम और जानवरों के लिए चारा लाने की बात कहती थी। लेकिन मेरा मन स्कूल जाने को करता था। मैं भी चाहती थी कि स्कूल जाकर पढ़ाई करूं और दोस्तों के साथ खूब मस्ती करूं। एक दिन मास्टर साहब घर आए और मेरी अम्मा को समझया तबसे अम्मा मुझे रोज स्कूल भेजती है।'
विद्यालय प्रबंध समिति की कोशिशों से स्कूलों में आया बदलाव
इस गांव के प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक रघुनंदन ने बताया, 'पहले स्कूल में बहुत कम बच्चे आते थे। जो पंजीकृत थे वे भी कभी कभार ही आते थे। लोग पढ़ाई के महत्व को नहीं जानते थे। अपने बच्चों को स्कूल भेजने की जगह खेत भेजते थे। एसएमसी सदस्यों के साथ मिलकर और प्रधान के सहयोग से लोगों की यह सोच बदलने के लिए हमने बहुत मेहनत की। लोगों को समझाया कि अगर आपका बच्चा पढ़ेगा नहीं तो उसका भविष्य कभी नहीं संवर पाएगा। जिन मुश्किलों से आप लोग गुजरे हैं वही परेशानी वह भी झेलेगा। लोगों को हमारी बात समझ में आई और अब लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजने लगे हैं।"
---आंकड़े---
माध्यमिक विद्यालय कुंडौरा में कुल बच्चे:104
छात्र: 56
छात्राएं: 48
जनपद का हाल
माध्यमिक विद्यालय: 798
पूर्व माध्यमिक विद्यालय: 375
कस्तूरबा गांधी विद्यालय: 07
परिषदीय विद्यालाय: 07
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'एक बार मैं बस से महोबा जा रहा था। कंडक्टर को मैंने सौ रुपए दिए। कंडक्टर ने टिकट काटकर दे दिया। मैंने कंडक्टर से पूछा, भाई सौ रुपए दिए थे, जो बचे हैं उसे लौटा दो। कंडक्टर ने चिल्ला कर कहा, अनपढ़ हो क्या, टिकट पर लिखा तो है की 40 रुपए हुए , 60 बाकी हैं। कंडक्टर की इन बातों ने मेरे नजिरये को बदल दिया। मैंने उसी दिन सोच लिया कि अपने बच्चे को इस शर्मिंदगी का अहसास कभी नहीं होने दूंगा। आज मेरा बच्चा रोज स्कूल जाता है।'
राम प्रकाश, अभिभावक
जागरूकता रैली का दिखा असर
'मेरे गांव में अधिकांश लोग या तो किसान हैं या पशुपालक । लोगों के मन में यह बात घर कर गई थी कि नौकरी तो मिलेगी नहीं इसलिए पढ़कर हमारा बच्चा क्या करेगा। लोगों की इस सोच को बदलने के लिए एसएमसी सदस्यों और स्कूल के अध्यापकों के साथ मैंने गांव में जागरूकता रैली निकलवाई। अनपढ़ और पढ़े लिखे लोगों में क्या अंतर होता है यह बात समझाई। हमारी कोशिशों का असर लोगों में दिखने लगा है।'
अवधेश कुमार, ग्राम प्रधान