500 रुपए लेकर दिल्ली आई थीं कृष्णा यादव, आज हैं अचार फैक्ट्री की मालकिन, जीते कई अवार्ड
करौंदे का अचार और कैंडी बनाने के शुरूआती दिनों के बाद आज वो कई तरह की चटनी, अचार, मुरब्बा आदि कम से कम 87 प्रकार के उत्पाद तैयार करती हैं। आज के समय में उनकी फैक्ट्री में तकरीबन 500 क्विंटल फलों और सब्जियों का प्रसंस्करण होता है, जिसका सालाना व्यापार तकरीबन एक करोड़ रुपये से ऊपर का है
लखनऊ। कृष्णा यादव आज 'श्री कृष्णा पिकल्स' की मालकिन हैं और दिल्ली के नजफगढ़ में रहती हैं और वो एक सफल खाद्य प्रसंस्करण उद्यमी हैं। उन्हें ये सफलता इतनी आसानी से नहीं मिली है, इसके लिए उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, ज़िन्दगी में कई उतार चढ़ाव आए, तब जाकर वह आज इस मुकाम पर हैं।
कृष्णा उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर की रहने वाली हैं, उनका परिवार 1995-96 में अपने निराशाजनक दौर से गुजर रहा था जब उनके बेरोजगार पति गोवर्धन यादव मानसिक रूप से बेहद परेशान हो चुके थे। लेकिन यह कृष्णा यादव की दृढ़ता और साहस ही था कि जिसने उनके परिवार को इस कठिन दौर को सहने की ताकत दी, और फिर उन्होंने अपने एक मित्र से 500 रुपया उधार लेकर परिवार के साथ दिल्ली आने का फैसला किया। दिल्ली में उन्हें जब कोई काम नहीं मिला तो उन्होंने कमांडेट बीएस त्यागी के खानपुर स्थित रेवलाला गाँव के फार्म हाउस के देख-रेख की नौकरी शुरू की।
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कमांडेट त्यागी ने अपने फार्म हाउस में कृषि विज्ञान केंद्र, उजवा के वैज्ञानिकों के निर्देशन में बेर और करौंदे के बाग लगाए थे। बाजार में इन फलों की कीमत अच्छी नहीं मिलती थी, जिस वजह से कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने कमांडेट त्यागी को मूल्य संवर्धन और खाद्य प्रसंस्करण (Value addition and food processing) के बारे में बताया। यह उद्यम के विचार के जन्म लेने का दौर था और इसी क्रम में श्रीमती कृष्णा यादव ने 2001 में कृषि विज्ञान केंद्र, उजवा में खाद्य प्रसंस्करण (food processing) तकनीक का तीन महीने का प्रशिक्षण लिया। प्रशिक्षण के बाद उन्होंने पहली बार तीन हजार रुपये लगाकर 100 किलो करौंदे का अचार और पांच किलो मिर्च का अचार तैयार किया, जिसे बेच कर उन्हें 5250 रुपये का मुनाफा हुआ।
उनकी जीवन की कठिनाइयां यहीं समाप्त नहीं हुईं। जब काम में कुछ सफलता मिली तो उन्हें कुछ किलो करौंदा कैंडी बनाने का ख्याल आया। लेकिन उनके बनाए कैंडी में फंगस लग गया और वो बर्बाद हो गए। पर उन्होंने हार नहीं मानी और उन्होंने इसका निदान निकालने के लिए वैज्ञानिकों और खाद्य विशेषज्ञों से सलाह ली और उत्पाद की संरक्षण प्रक्रिया का पूरी तरह से पालन करते हुए बेहतर उत्पाद सामने लेकर आईं।
उनके द्वारा बनाए गए उत्पाद को बेचने का काम उनके पति करते थे जिन्होंने नजफगढ़ की सड़क के किनारे ठेले से चलने वाली अपनी रेहड़ी लगा ली थी। करौंदा कैंडी उस इलाके के लिए नया उत्पाद था, लिहाज़ा इसको लेकर लोगों की प्रतिक्रिया बेहद सकारात्मक रही और लाभप्रद रही। उनके इस अनुभव ने उनमें पूरी तरह से मूल्य संवर्धन उद्यम की ओर आगे बढ़ने की प्रेरणा जगाई और तब से फिर उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा।
करौंदे का अचार और कैंडी बनाने के शुरूआती दिनों के बाद आज वह कई तरह की चटनी, अचार, मुरब्बा आदि कम से कम 87 प्रकार के उत्पाद तैयार करती हैं। आज के समय में उनकी फैक्ट्री में तकरीबन 500 क्विंटल फलों और सब्जियों का प्रसंस्करण होता है, जिसका सालाना व्यापार तकरीबन एक करोड़ रुपये से ऊपर का है। उनके व्यापार ने कई अन्य लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया है। 2006 में उन्होंने आईएआरआई में पोस्ट हार्वेस्ट प्रौद्योगिकी में प्रशिक्षण लिया जहां उन्होंने बगैर रासायनिक परिरक्षकों के प्रयोग के फलों से तैयार होने वाले पेय के बारे में जानकारी हासिल की। इसके बाद उन्होंने आईएआरआई के साथ जामुन, लीची, आम और स्ट्रॉबेरी आदि के पूसा पेय बनाने के एक समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किये। सड़क के किनारे रेहड़ी लगाने से एक फैक्ट्री के मालिक बनने तक के सफर में उन्होंने एक लंबी दूरी तय की है। चार मंजिला उनकी फैक्ट्री खाद्य प्रसंस्करण के नए उपकरणों से सजी हुई है।
कृष्णा यादव को अब तक मिल चुके हैं कई अवार्ड
कृष्णा यादव को 8 मार्च 2016 को भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से दिए जाने वाले नारी शक्ति सम्मान 2015 के लिए चुना गया।
2014 में हरियाणा सरकार ने कृष्णा यादव को इनोवेटिव आइडिया के लिए राज्य की पहली चैंपियन किसान महिला अवार्ड से सम्मानित किया था।
इससे पहले उन्हें सितंबर 2013 में वाइब्रंट गुजरात सम्मेलन में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें किसान सम्मान के रूप में 51 हजार रुपए का चेक दिया था।
2010 में राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने भी एक कार्यक्रम के तहत कृष्णा यादव को बुलाकर उनकी सफलता की कहानी सुनी थी।