यहां की महिलाएं माहवारी के समय अगर किसी को गलती से भी छू लें तो उन्हें चिमटे से पीटा जाता है
पिथौरागढ़। माहवारी में किसी को छूने पर चिमटे की मार...सुनकर विश्वास नहीं हो रहा होगा न। पहली बार सुनने पर मेरे लिए भी भरोसा करना मुश्किल था पर ये सच है। पिथौरागढ़ के कुछ क्षेत्रों में आज भी माहवारी के दौरान यदि कोई महिला किसी को छू ले तो उसकी चिमटे से पिटाई होती है।
“हम चाहकर भी बुजुर्गों की बनाई इस परम्परा को नहीं तोड़ सकते। महीने के चार दिन घर के एक कोने में बैठा दिया जाता है। घर के लोग दूर से खाना परोस देते हैं। अकेले में खाना पड़ता है। हम किसी से बात नहीं कर सकते, किसी को छू नहीं सकते ये सब हमें बहुत बुरा लगता है।” ये बताते हुए पिथौरागढ़ की गीता बनियाल (30 वर्ष) के चेहरे पर उदासी थी और वह माहवारी के दौरान पहाड़ों पर होने वाली बदसलूकी को कोस रही थी।
गीता से आज तक कभी किसी ने माहवारी जैसे विषय पर बात नहीं की थी पर वो इतना जरूर जानती थीं कि इन दिनों चिमटे की मार गलत थी, ठंडे पानी से नहाना गलत था, दूर से खाना परोसना, अलग कमरे बैठाना ये सब गलत है, पर फिर भी उसकी तरह सैकड़ों महिलाएं ये खामोशी से सहन कर रही हैं।
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जब उससे ये पूछा गया कि वह अपनी बेटी के साथ भी यही करेगी जो उसके साथ हो रहा है, तो उसने अपनी बेबसी जाहिर करते हुए कहा, “हम चाहकर भी बुजुर्गों के बनाए नियम कानून नहीं तोड़ सकते हैं। अगर आज भी माहवारी के दौरान हम किसी को खाना परोसकर दे दें तो हमें चिमटे से मार बड़ती है, और कहा जाता है की देवता नाराज हो गये हैं इसलिए ऐसा हो रहा है।”
गीता बनियाल पिथौरागढ़ जिले के धारचूला ब्लॉक के नागलिंग गांव की रहने वाली हैं। जो नेपाल से सटा हुआ है। संसाधनों के अभाव में गीता की तरह सैकड़ों महिलाओं को कभी किसी ने बताया नहीं कि उसे माहवारी के दौरान होने वाली कुप्रथाओं को दूर करना चाहिए। इसलिए ये सदियों से इस बदसलूकी को सहती आयी हैं।
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टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस द्वारा वर्ष 2016 में 97.000 लड़कियों कराए गये एक स्टडी के अनुसार आधी लड़कियों को अपनी पहली माहवारी के बारे में कोई जानकारी नहीं होती। 10 में से 8 लड़कियों को माहवारी के दौरान धार्मिक स्थलों पर जाने की मनाही है। इनमें 10 में से छह को किचन में नहीं जाने दिया जाता, खाना नहीं छूने दिया जाता। जबकि 10 में तीन लड़कियों को अभी भी अलग कमरों में रहना पड़ता है।
पिथौरागढ़ जिले की मुख्य विकास अधिकारी वंदना का कहना है, “यहां के लोग देवी देवताओं को बहुत मानते हैं। इसलिए छुआछूत बहुत माना जाता है, पर चिमटे से भी पिटाई होती है इसकी मुझे जानकारी नहीं थी। माहवारी विषय को लेकर इनके मिथक दूर हो ये खुलकर बात करें इसको लेकर हम समय-समय पर कई अभियान चलाते रहते हैं। स्कूल में छात्राओं को जागरूक किया जा रहा है जिससे ये अपने घर में जाकर इस विषय पर बात करें।
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माहवारी पर लोग खुलकर बात करें इसलिए हर वर्ष 28 मई को विश्व माहवारी दिवस मनाया जाता है। कई अभियान चलाए जा रहे हैं, सरकार इस पर करोड़ों रुपए का बजट खर्च कर रही है। लेकिन इन महिलाओं के लिए इस अभियान और बजट का कोई मतलब नहीं है। यहां रहने वाली इंद्रा देवी (35 वर्ष) ने बड़े संकोच से कहा, “हमने तो ये कुप्रथाएं सह ली हैं लेकिन हमारी बेटियां इस दौर से न गुजरें ऐसा हम चाहते हैं। महीनें के चार दिन आज भी नर्क लगते हैं, अगर इन्हें खत्म करने की बात कर दें तो चिमटे की मार खानी पड़ेगी, इसलिए विरोध जताने की हिम्मत नहीं पड़ती है।”
बाल विकास परियोजना अधिकारी हेमा कुंवर बताती हैं, “हम सब भी इस दौर से होकर गुजरे हैं। लोगों को बहुत समझाने की कोशिश करते हैं पर उनकी धार्मिक मान्यता इतनी ज्यादा है जिसे तोड़ने में समय लगा। नई पीड़ी की बेटियां थोड़ा बहुत विरोध करने लगी है लेकिन महिलाएं अभी भी अपनी सास का विरोध करके अपमान नहीं करना चाहती हैं।”