ये पैडवुमेन पांच वर्षों से दुनिया के 32 देशों में चला रहीं माहवारी पर ‘चुप्पी तोड़ो अभियान’

Update: 2018-02-09 16:31 GMT
ये पैडवुमेन विश्व के कई देशों में चला रही माहवारी पर चुप्पी तोड़ो अभियान। 

ये पैडवुमेन दुनिया के अलग-अलग देशों में पिछले पांच वर्षों से माहवारी पर चुप्पी तोड़ो अभियान चला रही हैं। उर्मिला चनम बेंगलुरु शहर में भले ही रहती हों लेकिन ये सोशल मीडिया के सहयोग से देश और दुनिया के अलग-अलग राज्यों के गांव में जाती हैं। इस पैडवुमेन की कोशिश है कि महिलाएं माहवारी पर चुप्पी तोड़ें जिससे वो पीरियड के दिनों को आसानी से जी सकें और उनका स्वास्थ्य बेहतर रहे।

मूलरूप से मणिपुर राज्य के इम्फाल जिले की रहने वाली उर्मिला चनम (36 वर्ष) पिछले पांच वर्षों से देश के नौ राज्यों और दुनिया के 32 देशों में माहवारी पर “ब्रेकिंग दि साइलेंस” अभियान चला रही हैं।

उर्मिला किसी संस्था की मालिक नहीं हैं ये अकेले ही सोशल मीडिया और कुछ संस्थाओं की मदद से गांव-गांव जाती हैं। गांव में जाकर माहवारी पर बात करके वापस आना ही उर्मिला का मकसद नहीं है। ये वहां के प्रशासन और मीडिया के सहयोग से माहवारी पर चुप्पी तोड़ो अभियान हजारों लोगों तक पहुंचाती हैं।

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माहवारी पर चुप्पी तोड़ो अभियान के लिए महिलाओं से बात करतीं उर्मिला चनम

उर्मिला चनम गाँव कनेक्शन संवाददाता को फ़ोन पर बताती हैं, “माहवारी पर अलग-अलग राज्यों के गांव में कई तरह के अनुभव रहे हैं। देश की बात रहें या दुनिया के कई देशों की बात करें हर जगह एक बात ज्यादातर सामान्य निकली कि महिलाएं माहवारी विषय पर बात करना ही नहीं चाहती।”

उन्होंने आगे बताया, “गांव की छोड़े हम शहर में ही पीरियड पर अपने घरों में कितना बात करते हैं। हम चाहें जितने आगे बढ़ जाएं, पर इस विषय पर खुलकर चर्चा होने में अभी बहुत साल लगेंगे। माहवारी पर सदियों से बने तमाम तरह के टैबू को खत्म करना इतना आसान नहीं है। इसमें जो जागरूक लोग, सोशल मीडिया से जुड़े हैं, सामाजिक कार्यों में रूचि रखते हैं उन्हें आगे आना होगा।”

इस पैडवुमेन का मानना है कि पीरियड पर चुप्पी तोड़ने का सबसे सशक्त माध्यम हैं सोशल मीडिया। इनका कहना है, “ज्यादा से ज्यादा महिलाएं और लड़कियां स्मार्ट फोन और इंटरनेट का इस्तेमाल करें। जिससे उन्हें घर बैठे देश दुनिया की जानकारी मिलेगी। सोशल मीडिया के माध्यम से माहवारी को लेकर हो रही चर्चा से उनकी समझ बढ़ेगी। इससे तमाम तरह के टैबू टूटेंगे, महिलाएं इस खून को गंदा नहीं मानेंगी।”

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उर्मिला देश के अलग-अलग गांव जाकर माहवारी से लेकर पैड निस्तारण पर खुलकर बातें करती हैं।

उर्मिला अफ्रीका का उदाहरण देते हुए कहती हैं, “जिस प्रकार से वहां की सरकार ने साइबर कैफे बनवाएं हैं, जहां महिलाएं और पुरुष अलग-अलग बैठकर डिजिटल इम्पॉवर से जुड़ सकते हैं। उसी तरह के कैफों की शुरुआत भारत के गाँवों में भी कर सकते हैं। जिससे महिलाएं सीधे डिजिटल मीडिया से जुड़ सकेंगी।”

गांव में काम करने का ये तरीका अपनाती हैं ये पैडवुमेन

उर्मिला को जब किसी देश के गांव में जाना होता है तो वो दो महीने पहले वहां के बारे में पूरा रिसर्च करती हैं। वहां की स्थिति और सरकार की पॉलिसी के बारे में जानने के बाद जो संस्थाएं वहां काम करती हैं उनसे सम्पर्क करती हैं।

उर्मिला मीडिया के सहयोग से इस अभियान को एक साथ हजारों लोगों तक पहुँचाने का प्रयास करती हैं। 

उर्मिला बताती हैं, “संस्थाओं की मदद से हम हर गांव में कम से कम 10 घरों में जरुर जाते हैं। गांव में विजिट के दौरान एक परिवार से 15 मिनट बात करते हैं। हमारा काम यहीं खत्म नहीं होता है। इसी संस्था की मदद से 500 से 800 महिलाओं और बच्चियों के बीच पांच से छह घंटे की एक कार्यशाला करते हैं।” उर्मिला यहां के सम्बन्धित अधिकारी से लोकर लोकल मीडिया तक सम्पर्क करती हैं।

उर्मिला का मानना है, “मीडिया के माध्यम से उनका ये सन्देश एक साथ हजारों लोगों तक आसानी से पहुंच जाता है। हम एक बार में 500 से 800 लोगों को ही ट्रेनिंग दे पाते हैं। इस दौरान उन्हें ये बताते हैं कि माहवारी का खून गंदा नहीं है, ये एक महिला के गर्भवती होने का दायित्व पूरा करता है, सेनेटरी पैड और साफ़ कपड़े के उपयोग से लेकर निस्तारण तक की पूरी प्रक्रिया पर चर्चा करते हैं।”

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इस साल उर्मिला ने अपने अभियान की ये थीम रखी है। 
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